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नालंदा के मारी गांव में हिंदू करते हैं मस्‍जिद की देखभाल, अज़ान भी होती है।

बीरबल महतो, सारस न्यूज़, किशनगंज।

तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। साहिर लुधियानवी के लिखे इस गीत को हम सभी ने बचपन में खूब सुना है। धर्म से ऊपर इंसानियत की सीख। गीत की पंक्‍त‍ियों का किस पर कितना असर हुआ और आज मंदिर-मस्‍ज‍िद के शोर में हम कहां पहुंच गए, यह एक अलग बहस है। लेकिन बिहार के नालंदा जिले में एक गांव ऐसा है, जो इंसानियत की मिसाल पेश करता है।
सिर्फ देखभाल नहीं, अज़ान भी:-
नालंदा के मारी गांव के लोगों ने ‘सौहार्द’ और ‘समानता’ जैसे शब्‍दों को किताबों तक ही नहीं छोड़ दिया। इसे असल जिंदगी में भी उतारा। इस गांव में एक मस्‍ज‍िद है। खास बात यह है कि इस मस्‍ज‍िद की देखभाल, सुरक्षा से लेकर इसमें अज़ान तक की जिम्‍मेदारी गांव के हिंदू उठाते हैं।
गांव में नहीं बचा कोई मुस्‍ल‍िम परिवार।:-
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गांव में समय के साथ मुस्लिम आबादी नहीं है। काम और बेरोजगारी के कारण गांव से लोग पलायन कर गए। लिहाजा, मस्‍ज‍िद की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा। ऐसे में गांव के हिंदू परिवारों ने ही आगे बढ़कर मस्‍ज‍िद की जिम्‍मेदारी उठा ली। मस्‍ज‍िद बहुत पुराना है, इसलिए इसको लेकर लोगों में आस्‍था है।
सन् 1920 से है यह मस्‍ज‍िद:-
बताया जाता है कि यह मस्‍ज‍िद साल 1920 में बनकर तैयार हुआ था। गांव वालों ने बताया कि बंटवारे के समय तक यहां 50 मुस्लिम परिवार रहते थे। कुछ विभाजन के बाद पाकिस्‍तान चले गए। कुछ काम के सिलसिले में दूसरे शहर को पलायन कर गए हैं।
हर दिन पेन ड्राइव से अज़ान:-
खास बात यह है इस मस्‍जदि में हर दिन ऑडियो प्‍लेयर और पेन ड्राइव की मदद से अज़ान होती है। यही नहीं, गांव में जब किसी की शादी होती है तो नविवाहित जोड़े इस मस्‍ज‍िद में जाकर इबादत भी करते हैं। पूरे गांव के लोग इसमे बढ़ चढक़र सहयोग करते हैं। मस्जिद की सफाई का जिम्मा गौतम महतो, अजय पासवान, बखोरी जमादार व अन्य के जिम्मे है।

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