सारस न्यूज, गलगलिया, किशनगंज।
मन के रुप मन के हारे हार है मन के जीते जीत, मन ही मन का शत्रु है मन ही मन का मीत। मन बौराए जगत में मन ही शांत करे, मन ही सजाये महफिलें मन एकांत करे। मन बसन्त की डाली मन नील गगन की छाँव, मन काँटों की बगिया मन फूलों का गाँव। मन की थाह कोई ना जाने ना जाने मन का वेग, मुस्कराती मन की आँखें मन ही मन को देख। मन का वेग पवन से ज्यादा मन भूले-याद कराये, मन का पंछी बिना परों के गगन में उड़ता जाय। मन ना जाने कोई बंधन ना कोई दीवार, मन की बातें मन ही जाने "मन के रूप हजार" बिंदु अग्रवाल किशनगंज बिहार
