दिघलबैंक में नेपाल के जंगल से आने वाले हाथियों के उत्पात से सीमावर्ती ईलाकों के किसानों सहित आमलोगों की परेशानी रोज-रोज बढ़ती जा रही है। लेकिन हाथियों का झुंड वापस नेपाल नहीं लौट रहा है और हर बढ़ते हुए दिन के साथ दो चार एकड़ तक मक्के की फसल को रौंद डालता है।
पिछले तीन सप्ताह से लगातार हाथियों का झुंड अलग-अलग जगहों पर एकड़ का एकड़ मक्का फसल को बर्बाद करते हुए मक्का के खेतों में डेरा डाले हुए है। सप्ताह भर पहले झुंड के एक हाथी के मौत के बाद तो हाथियों का उत्पात और अधिक बढ़ गया है।
हाथियों के कारण हो रहे मक्के कि बर्बादी से त्रस्त किसान सहित वन विभाग के कर्मी व वोलेंटियर्स अपने अपने स्तर से हाथियों को नेपाल की ओर ड्राइव करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन बड़े हो चुके मक्के के पौधों के बीच हाथियों को सैकड़ों एकड़ में लगे मक्के कि खेतों से निकालकर सीमापार करवा पाना इन लोगों के लिए संभव दिख नहीं रहा है। वहीं हाथियों को अपने अपने खेतों से भगाने के चक्कर में लोग अपना और आसपास का ही ज्यादा नुकसान कर रहे हैं।
मौके पर अपने सहकर्मियों व वोलेंटियर्स के साथ कैंप डाले वनपाल राजीव कुमार कि मानें तो किसी तरह कुछ हाथियों को नेपाल की ओर डाईव कर भी दिया जाता है तो दो चार घंटे में वे हाथी फिर से लौट आते हैं। ऐसे में परेशानी बढ़ गई है। फिर भी वनकर्मी इस बात पर ज्यादा ध्यान दिये रहते हैं कि हाथियों के झुंड को रिहाईशी इलाकों से दूर ही रखा जाय। वहीं दूसरी ओर ग्रामीण रतजगा को मजबूर है। कब हाथी आ जाए कहना मुश्किल है।
सारस न्यूज, किशनगंज।
दिघलबैंक में नेपाल के जंगल से आने वाले हाथियों के उत्पात से सीमावर्ती ईलाकों के किसानों सहित आमलोगों की परेशानी रोज-रोज बढ़ती जा रही है। लेकिन हाथियों का झुंड वापस नेपाल नहीं लौट रहा है और हर बढ़ते हुए दिन के साथ दो चार एकड़ तक मक्के की फसल को रौंद डालता है।
पिछले तीन सप्ताह से लगातार हाथियों का झुंड अलग-अलग जगहों पर एकड़ का एकड़ मक्का फसल को बर्बाद करते हुए मक्का के खेतों में डेरा डाले हुए है। सप्ताह भर पहले झुंड के एक हाथी के मौत के बाद तो हाथियों का उत्पात और अधिक बढ़ गया है।
हाथियों के कारण हो रहे मक्के कि बर्बादी से त्रस्त किसान सहित वन विभाग के कर्मी व वोलेंटियर्स अपने अपने स्तर से हाथियों को नेपाल की ओर ड्राइव करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन बड़े हो चुके मक्के के पौधों के बीच हाथियों को सैकड़ों एकड़ में लगे मक्के कि खेतों से निकालकर सीमापार करवा पाना इन लोगों के लिए संभव दिख नहीं रहा है। वहीं हाथियों को अपने अपने खेतों से भगाने के चक्कर में लोग अपना और आसपास का ही ज्यादा नुकसान कर रहे हैं।
मौके पर अपने सहकर्मियों व वोलेंटियर्स के साथ कैंप डाले वनपाल राजीव कुमार कि मानें तो किसी तरह कुछ हाथियों को नेपाल की ओर डाईव कर भी दिया जाता है तो दो चार घंटे में वे हाथी फिर से लौट आते हैं। ऐसे में परेशानी बढ़ गई है। फिर भी वनकर्मी इस बात पर ज्यादा ध्यान दिये रहते हैं कि हाथियों के झुंड को रिहाईशी इलाकों से दूर ही रखा जाय। वहीं दूसरी ओर ग्रामीण रतजगा को मजबूर है। कब हाथी आ जाए कहना मुश्किल है।
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