जन सुराज पदयात्रा के 214वें दिन की शुरुआत वैशाली के महुआ प्रखंड अंतर्गत समसपुरा पंचायत स्थित पदयात्रा शिविर में सर्वधर्म प्रार्थना से हुई। उसके बाद प्रशांत किशोर ने स्थानीय पत्रकारों के साथ संवाद किया। पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने अपने पदयात्रा का अनुभव साझा किया। इसके बाद प्रशांत किशोर सैकड़ों पदयात्रियों के साथ समसपुरा पंचायत से पदयात्रा के लिए निकले। जन सुराज पदयात्रा महुआ नगर परिषद, गौसपुर चक मजाहिद, हसनपुर ओस्ती, मिर्जानगर, ताजपुर बुजुर्ग होते हुए राजापाकर प्रखंड के राजापाकर उत्तरी पंचायत स्थित मीना बाक्सित राय कॉलेज मैदान में रात्रि विश्राम के लिए पहुंची। प्रशांत किशोर वैशाली के अलग-अलग गांवों में पदयात्रा के माध्यम से जनता के बीच गए। उनकी स्थानीय समस्याओं को समझ कर उसका संकलन कर उसके समाधान के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने की बात कही।
दिनभर की पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने 4 आमसभाओं को संबोधित किया और 7 पंचायत के 12 गांवों से गुजरते हुए 12.7 किमी की पदयात्रा तय की। जन सुराज पदयात्रा के दौरान वैशाली के महुआ प्रखंड में मीडिया संवाद के दौरान आनंद मोहन की रिहाई से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार ने राजनेता और प्रशासक के तौर पर सम्पूर्ण रूप से सरेंडर कर दिया है। नीतीश कुमार की ये स्थिति हो गई है कि मैं मुख्यमंत्री बना रहूं बाकी बिहार में जिसको जो करना है वो कर सकता है। नीतीश कुमार की ये स्थिति आनंद मोहन की रिहाई से नहीं हुई है, उससे पहले जब महागठबंधन की सरकार बनी थी उस समय से नीतीश कुमार इस तरह के फैसले ले रहे हैं। महागठबंधन के मंत्रीमंडल में 4 ऐसे मंत्री हैं जिनका नाम राजद की तरफ से 2015 में भी प्रस्तावित किया गया था, लेकिन उनकी दागदार छवि को देखते हुए मंत्रीमंडल में उन्हें शामिल नहीं किया गया था। वही 4 लोग आज मंत्रीमंडल में नीतीश कुमार के अगल-बगल में बैठे हुए हैं।
आगे उन्होंने कहा कि आनंद मोहन की रिहाई से एक बात ये स्पष्ट हो रही है कि नीतीश कुमार जाति की राजनीति करते हैं, जिसकी हत्या हुई वह दलित समाज के गरीब परिवार का व्यक्ति था। नीतीश कुमार जो दलितों और पिछड़ों की राजनीति करने का दावा करते हैं, ये उस समाज के सामने बिलकुल बेपर्दा हो गए हैं। जब आपको वोट का लाभ दिखता है तब आप गरीब, पिछड़ा और दलित सब को भूल जाते हैं। ये जो दलितों की राजनीति है वो सिर्फ अपने लाभ तक है, और ये अपने परिवार और वोट तक ही सीमित रह जाती है
सारस न्यूज, किशनगंज।
जन सुराज पदयात्रा के 214वें दिन की शुरुआत वैशाली के महुआ प्रखंड अंतर्गत समसपुरा पंचायत स्थित पदयात्रा शिविर में सर्वधर्म प्रार्थना से हुई। उसके बाद प्रशांत किशोर ने स्थानीय पत्रकारों के साथ संवाद किया। पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने अपने पदयात्रा का अनुभव साझा किया। इसके बाद प्रशांत किशोर सैकड़ों पदयात्रियों के साथ समसपुरा पंचायत से पदयात्रा के लिए निकले। जन सुराज पदयात्रा महुआ नगर परिषद, गौसपुर चक मजाहिद, हसनपुर ओस्ती, मिर्जानगर, ताजपुर बुजुर्ग होते हुए राजापाकर प्रखंड के राजापाकर उत्तरी पंचायत स्थित मीना बाक्सित राय कॉलेज मैदान में रात्रि विश्राम के लिए पहुंची। प्रशांत किशोर वैशाली के अलग-अलग गांवों में पदयात्रा के माध्यम से जनता के बीच गए। उनकी स्थानीय समस्याओं को समझ कर उसका संकलन कर उसके समाधान के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने की बात कही।
दिनभर की पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने 4 आमसभाओं को संबोधित किया और 7 पंचायत के 12 गांवों से गुजरते हुए 12.7 किमी की पदयात्रा तय की। जन सुराज पदयात्रा के दौरान वैशाली के महुआ प्रखंड में मीडिया संवाद के दौरान आनंद मोहन की रिहाई से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार ने राजनेता और प्रशासक के तौर पर सम्पूर्ण रूप से सरेंडर कर दिया है। नीतीश कुमार की ये स्थिति हो गई है कि मैं मुख्यमंत्री बना रहूं बाकी बिहार में जिसको जो करना है वो कर सकता है। नीतीश कुमार की ये स्थिति आनंद मोहन की रिहाई से नहीं हुई है, उससे पहले जब महागठबंधन की सरकार बनी थी उस समय से नीतीश कुमार इस तरह के फैसले ले रहे हैं। महागठबंधन के मंत्रीमंडल में 4 ऐसे मंत्री हैं जिनका नाम राजद की तरफ से 2015 में भी प्रस्तावित किया गया था, लेकिन उनकी दागदार छवि को देखते हुए मंत्रीमंडल में उन्हें शामिल नहीं किया गया था। वही 4 लोग आज मंत्रीमंडल में नीतीश कुमार के अगल-बगल में बैठे हुए हैं।
आगे उन्होंने कहा कि आनंद मोहन की रिहाई से एक बात ये स्पष्ट हो रही है कि नीतीश कुमार जाति की राजनीति करते हैं, जिसकी हत्या हुई वह दलित समाज के गरीब परिवार का व्यक्ति था। नीतीश कुमार जो दलितों और पिछड़ों की राजनीति करने का दावा करते हैं, ये उस समाज के सामने बिलकुल बेपर्दा हो गए हैं। जब आपको वोट का लाभ दिखता है तब आप गरीब, पिछड़ा और दलित सब को भूल जाते हैं। ये जो दलितों की राजनीति है वो सिर्फ अपने लाभ तक है, और ये अपने परिवार और वोट तक ही सीमित रह जाती है
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