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गलगलिया में सुहागिनों ने वट सावित्री पर्व मनाकर बरगद के पेड़ में देवत्व का किया दर्शन।

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

गलगलिया में शुक्रवार को सुहागिनों का महापर्व वट सावित्री मनाया गया। वट सावित्री पर्व को लेकर बाजारों में एक दिन पूर्व ही चहल – पहल देखी गई। खास कर नव विवाहिताओं में वट सावित्री पर्व को लेकर उमंग व उत्साह का माहौल था। वट सावित्री पर्व को पर्यावरण संरक्षण का पर्व भी माना जाता है। क्योंकि, इस दिन सुहागिन बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। वहीं, पेड़ में रक्षा सूत्र भी बांधती हैं। एक तरीके से महिलाएं बरगद के पेड़ में देवत्व का दर्शन करती हैं। वहीं, इस पर्व के मौके पर सावित्री सत्यवान कथा का भी सुहागिन अनुश्रवण करती हैं। वट सावित्री पूजा के संबंध में सुहागिन महिलाओं ने बताया की यह पूजा महिलाएं सामूहिक रूप से करती है। इस पूजन के समय महिलाएं वट वृक्ष में जल, फूल, प्रसाद को अर्पण कर रक्षा सूत्र बांधती हैं। इस क्रम में महिलाएं देशज भक्ति गीत गाते हुए आस्था के इस पूजनोत्सव में शामिल होती । पूजन के क्रम में वट सावित्री पूजन कथा का वाचन भी किया जाता है। जिसमें पतिव्रता सावित्री द्वारा पति के लिए यमराज से संघर्ष की कहानी है। इसके पश्चात उपस्थित लोगों के बीच चना, शक्कर, पकवान, मिष्ठान्न आदि प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। वट सावित्री पूजन कथा जिसमें बताया गया है कि अश्वपति राजा की पुत्री सावित्री का विवाह राजा ध्रुमसेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था। जबकि नारद मुनि ने सत्यवान के बारे में सावित्री को पहले बता चुके थे कि यह लड़का अल्पायु है। फिर भी सावित्री हठ कर अल्पायु सत्यवान से शादी की। अल्पायु होने के कारण सत्यवान की मृत्यु शादी के कुछ ही दिनों बाद हो गई। इसके उपरांत यमराज सत्यवान के आत्मा को ले जाने लगा। तब सावित्री पति के कारण यमदूत के पीछे – पीछे चलने लगी। बहुत दूर बाद यमराज ने देखा कि सावित्री भी उसके पीछे चल रही है। यमराज उसे लौट जाने को कहा। वह एक ना मानी तो यमराज ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसे वरदान मांगने के लिए कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने अंधे ससुर अश्वपति की आंख की खोई ज्योति के साथ अपना खोया राज वापस मांग लिया। उसके बाद यमराज आगे बढ़ा और बढ़ते चला तो देखा कि सावित्री फिर भी उसके पीछे ही चल रही है। यमराज रुका और कहा सावित्री अब तुम लौट जाओ। फिर भी वह एक न मानी। तब यमराज ने कहा एक और वरदान मांग कर सावित्री तुम लौट जाओ। सावित्री ने अपने लिए पुत्र प्राप्ति की मांग की। यमराज ने यह वरदान भी दे दिया। तब सावित्री ने यमराज से कहा आपने मुझे पुत्र का वरदान दिया है और मैं पतिव्रता नारी हूँ। अपने पति के बगैर मैं कैसे पुत्र प्राप्त कर सकती हूँ। तब यमराज दिए वरदान को ले संशय में फंस गया और यमराज ने कहा सावित्री तुम्हारे पति व्रत का फल है कि मैं तुझे पति वापस कर रहा हूं। इसको लेकर संसार तुम्हारी पतिव्रत की पूजा सदैव करता रहेगा। इसीलिए वट – सावित्री की पूजा सौभाग्यवती महिलाएं ज्येष्ठ मास के अमावश के दिन प्रत्येक वर्ष बरगद पेड़ के नीचे बैठकर करती हैं। ताकि उनके पति वटवृक्ष की तरह लंबी आयु प्राप्त कर सके।

वट वृक्ष का महत्व

इस व्रत में वट वृक्ष का बहुत खास महत्व होता है जिसका अर्थ है बरगद का पेड़। इस पेड़ में काफी शाखाएं लटकी हुई होती है जिन्हें सावित्री देवी का रूप माना जाता है। पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

इसलिए की जाती है चने के पूजा

वट सावित्री व्रत कथा के रूप में सत्यवान और सावित्री की कथा कही जाती है। ऐसा कहा जाता है यमराज ने सत्यवान को चने के रूप में प्राण सौंपे थे। सावित्री प्राण रूपी चने को लेकर अपने पति सत्यवान के शव के पास गई और अपने मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया। सावित्री द्वरा ऐसा करने पर सत्यवान जीवित हो गए। तभी से वट सावित्री के व्रत- पूजन में चने को भी पूजने का नियम है। इस दिन वट (बरगद) वृक्ष को जल और दूध से सींचने का प्रचलन है।

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