Post Views: 306
विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
मत बाँधों मेरे पंखों को
मुझे उन्मुक्त गगन में उड़ने दो
मत बांधों मेरे पँखों को,
मुझे उन्मुक्त गगन में उड़ने दो।
अभी जरा बचपन है बाकी,
मदमस्त पवन सी बहने दो।
अभी उमर चौदह की केवल,
अभी मुझे पढ़ना है।
अभी तो चलना सीखा मैंने,
अभी हिमालय चढना है।
मत बाँधो रिश्तों के बंधन में,
मैं तो नाजुक डोर हूँ।
जो काट सकूँ अन्याय की जड़ को,
वो धार मुझे बनना है।
नमक-तेल को मैं क्या जानूँ,
अभी गुड़ियों के दिन है।
नाज़ुक कलि हूँ मैं उपवन की,
अभी मुझे खिलना है।
मुझे है हक जीवन जीने का,
मुझे जहर नही पीना है।
औरों को जीवन दान दे सकूँ,
वह अमृत मुझे बनना है।
अपने मार्ग की बाधाओं से लड़,
निर्झर सरिता सी बहना है।
बढ़ना है जीवन के पथ पर,
कुंदन सा दमकना है।
बिंदु अग्रवाल
विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
मत बाँधों मेरे पंखों को
मुझे उन्मुक्त गगन में उड़ने दो
मत बांधों मेरे पँखों को,
मुझे उन्मुक्त गगन में उड़ने दो।
अभी जरा बचपन है बाकी,
मदमस्त पवन सी बहने दो।
अभी उमर चौदह की केवल,
अभी मुझे पढ़ना है।
अभी तो चलना सीखा मैंने,
अभी हिमालय चढना है।
मत बाँधो रिश्तों के बंधन में,
मैं तो नाजुक डोर हूँ।
जो काट सकूँ अन्याय की जड़ को,
वो धार मुझे बनना है।
नमक-तेल को मैं क्या जानूँ,
अभी गुड़ियों के दिन है।
नाज़ुक कलि हूँ मैं उपवन की,
अभी मुझे खिलना है।
मुझे है हक जीवन जीने का,
मुझे जहर नही पीना है।
औरों को जीवन दान दे सकूँ,
वह अमृत मुझे बनना है।
अपने मार्ग की बाधाओं से लड़,
निर्झर सरिता सी बहना है।
बढ़ना है जीवन के पथ पर,
कुंदन सा दमकना है।
बिंदु अग्रवाल
सारस न्यूज़ टीम
बढ़िया।