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बिंदु अग्रवाल की कविता # 21 (टके में बिकता है ईमान)

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

हर काम के लगते दाम यहां
हर चीज मोल पे मिलती है,
अगर गांठ में पैसा हो तो
इंसानियत भी बिकती है।

बिक जाते हैं रिश्ते-नाते
लाज शरम बिक जाती है,
दौलत को पूजे लोग यहां
उन्हें कहो लाज कब आती है।

धूप बिकी यहाँ छांव बिकी
पेड़ों की हर शाख बिकी,
पतवारें सौंपी जिस मांझी
उस मांझी के हाथों नाव बिकी।

झूठ बिका यहां सत्य बिका
इंसानों का कर्तव्य बिका,
धरती से लेकर अंबर तक
बातों का हर अर्थ बिका।

माँ की बिकती गोद यहां
यहां नाम बाप का बिकता है,
मतलब से जुड़ते लोग यहां
हर रिश्ता यहां सिकता है।

पानी की हर बूंद बिकी
यहां कतरा-कतरा खून बिका,
इंसान की लगती बोली यहां
यहां “टके में हर ईमान बिका”

   बिंदु अग्रवाल
    गलगलिया

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