सारस न्यूज, किशनगंज।
बीते कुछ सालों से परंपरागत खेती को छोड़कर किसानों का रूझान बागवानी की तरफ तेजी से बढ़ा है। बागवानी वाली फसलों की अपनी चुनौतियां और खर्च हैं लेकिन वैज्ञानिक विधि व सुझावों के साथ बागवानी की जाए तो किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।
इसी क्रम में ठाकुरगंज में एग्री सेक्टर में इनोवेशन और प्रयोग कर किसान हर दिन नया कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। साथ ही किसानों को नई राह भी दिखा रहे हैं। बागवानी में आने वाली चुनौतियों को सामना करते हुए ठाकुरगंज के प्रगतिशील किसान संतोष यादव अमरुद का सफल उत्पादन कर एक मिसाल कायम की हैं। उन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़ तकनीक और इनोवेशन से अमरूद की खेती कर लाखों रुपयों की आमदनी कर रहे हैं।
किशनगंज जिले के ठाकुरगंज नगर के भातडाला के निवासी संतोष यादव 8 साल पहले बागवानी की शुरुआत की और आज उनके बागों के अमरुद पड़ोसी देश नेपाल एवं पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल तक जा रहे हैं।
संतोष यादव बताते हैं कि अमरूद की बागवानी से पहले मैं परंपरागत तरीके से धान, गेंहू आदि की खेती करता था लेकिन खेती की बढ़ती लागत के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा था। ऐसे में कृषि संबंधित कई विशेषज्ञों से उच्च उद्यानिकी तकनीकों को समझने के बाद बरहमपुर (पश्चिम बंगाल) से अमरूद के पौधे मंगाकर बगीचा लगाया।
42 वर्षीय संतोष यादव को चुरली पंचायत के भैंसलोटी गांव में पैतृक लगभग 4 एकड़ जमीन में अमरूद का बगीचा लगा रखा है। वे बताते हैं कि अमरूद की खाजा एवं काबुली किस्म का फल आकार में बड़ा व चमकदार होता है जिसकी न्यूट्रीएंट वैल्यू (पोषण गुणवत्ता) अच्छी होती है। विटामिन सी, फाइबर और फोलिक एसिड से जैसे तत्वों से भरपूर खाजा एवं काबुली अमरूद औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसका सेवन डायबिटीज मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है। इस प्रजाति के अमरूद का स्वाद लोग काफी पसंद करते हैं, जिससे बााजर में इसकी काफी मांग होती है। मंडी पहुंचते ही लोग हाथों- हाथ खरीद लेते हैं।
संतोष यादव के मुताबिक एक एकड़ में तकरीबन 200 पौधे लगते हैं। एक बार बगीचा तैयार होने के बाद सब्जियों या अन्य फसलों की तुलना में लागत कम आती है। अमरुद की इस किस्म से परिपक्व अवस्था (पेड़ पूरी तरह तैयार) होने पर हर पेड़ से करीब 40 किलो तथा सवा साल में तीन बार उत्पादन लिया जाता है। यदि बगीचे का सही तरीके से रखरखाव किया जाए तो लगभग 20-25 सालों तक फल लिए जा सकते हैं। साथ ही फल तुड़ाई के 20 दिनों बाद तक खराब नहीं होता है। इसलिए इसे मंडियों तक ले जाना आसान हो जाता है।
वे बताते हैं कि खेती जोखिम भरा काम है लेकिन अगर वैज्ञानिक पद्धितियों और सुझावों के साथ अमरुद की खेती की जाए तो किसानों को इससे अच्छा मुनाफा मिल सकता हैं। शुरुआत में बगीचा लगाने में प्रति एकड़ डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्च आता है। वे रासायनिक खाद एवं उर्वरकों का उपयोग न के बराबर करते हैं। अधिक उत्पादन के लिए वर्मी कम्पोस्ट और गोबर खाद का उपयोग करते हैं। इससे फल की गुणवत्ता अच्छी रहती है और फल ज्यादा समय तक टिका रहता है।
उन्होंने जिले के अन्य किसानों को भी अमरूद की खेती करने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि कम लागत में बेहतर मुनाफा प्राप्त करने का बेहतर विकल्प है। वहीं प्रखंड क्षेत्र में संतोष यादव की अमरूद की खेती को करते देख कई और किसान भी प्रेरित हो रहे हैं।
