विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया।
गलगलिया थाना क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने गुरुवार को ईद-उल-अजहा (बकरीद) का पर्व शांति व भाईचारे के साथ धूमधाम से मनाया। सुबह होते ही गलगलिया के लकड़ी डिपो स्थित मिनारा जामा मस्जिद सहित मस्जिद टोला, निम्बूगुड़ी, नेंगड़ाडूबा के ईदगाहों में मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्र हुए और नमाज अदा कर एक दूसरे को गले मिलकर ईद पर्व की बधाई दी। इस दौरान मस्जिद के इमाम ने बताया कि ईद-उल-ज़ुहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज की भी पूर्ति करता है। आदिकाल से ही जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की तो इन्सान को सही जीवन जीने के लिए अपने पसंदीदा बंदों या नबियों के द्वारा ऐसा संविधान और जीवन दर्शन भी भेजा, जो मानव समाज को क़ुर्बानी अर्थात बलिदान का महत्त्व समझा सके और उसमें यह भावना भी पैदा कर सके। इस संविधान के आदम से लेकर तमाम नबी अपने साथ लाये। इस संविधान या जीवन दर्शन में अन्य बातों के अलावा इन्सान को अपने अहंकार व अपनी प्रिय वस्तुओं को अल्लाह की राह में और उसकी इच्छा के लिए क़ुर्बान करने की भी शिक्षा दी गई। आज के दिन अल्लाह को कुर्बानी प्यारी है। इसलिए बकर-ईद पर बकरे की कुर्बानी दी गई। वहीं कानून व शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए गलगलिया पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे थे। मुख्य जगहों पर पुलिस तैनात रही। पशु बलि को लेकर भी पुलिस की हर जगह पैनी नजर रही।थानाध्यक्ष खुश्बू कुमारी खुद सुरक्षा की कमान संभालते हुए गश्त कर रही थी।
कुर्बानी का उद्देश्य:
ईदे क़ुर्बां अर्थात् ईद-उल-अज़हा पर क़ुर्बानी का एक उद्देश्य ग़रीबों को भी अपनी ख़ुशियों में भागीदार बनाना है। इसीलिए कहा गया है कि क़ुर्बानी के ग़ोश्त को तीन हिस्सों में बाँटों। एक हिस्सा अपने लिए, दूसरा अपने पड़ोसियों के लिए और तीसरा ग़रीबों व यतीमों के लिए रखो। यह भी कहा गया है कि ग़रीबों तक उनका हिस्सा स्वयं ही पहुँचाओ। अर्थात उन्हें मांगने के लिए तुम्हारे दरवाज़े तक न आना पड़े। वास्तव में इस हुक़्म या निर्देश का उद्देश्य समाज में समानता की भावना स्थापित करना और पड़ोसियों व ग़रीबों को भी अपनी ख़ुशियों में शामिल करना है।
बकरीद मनाने के पीछे क्या है कहानी:
कुरान में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुरबानी मांगी। हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे की कुरबानी देने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के लिए उसकी गर्दन पर चाक़ू रखा अल्लाह चाकू की धार से हज़रत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर जन्नत से एक दुम्बा(भेड़) भेजकर कुर्बानी दिलवा दी। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
कुर्बानी का महत्व:
क़ुर्बानी का महत्त्व यह है कि इन्सान ईश्वर या अल्लाह से असीम लगाव व प्रेम का इज़हार करे और उसके प्रेम को दुनिया की वस्तु या इन्सान से ऊपर रखे। इसके लिए वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को क़ुर्बान करने की भावना रखे। क़ुर्बानी के समय मन में यह भावना होनी चाहिए कि हम पूरी विनम्रता और आज्ञाकारिता से इस बात को स्वीकार करते हैं कि अल्लाह के लिए ही सब कुछ है।
ईद-उल-ज़ुहा को कैसे मनाया जाता है:
ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुरबानी देते हैं।
इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है। नमाज़ पढ़कर आने के बाद ही कुरबानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।