सारस न्यूज, किशनगंज।
ठाकुरगंज प्रखंड में मवेशियों में होनेवाली लंपी बीमारी का भारी प्रकोप जारी है। मानसून के इस सीजन में जानवरों में लम्पी नामक यह बीमारी कहर बनकर टूट रही है। क्षेत्र के पशुपालक पशुओं के लंपी स्किन बीमारी की चपेट में आने से काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। अब तक प्रखंड क्षेत्र में दो दर्जन से भी अधिक पशुओं की इस बीमारी के कारण मौत हो चुकी है। अधिकतर पशु इस कदर से बीमार हैं कि उनका उठना-बैठना, चलना-फिरना सब कुछ बंद हो चुका है। पूरे शरीर पर गाठें बन गई है। देखने में भी विचित्र लग रहा है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक पुरे प्रखंड क्षेत्र में लंपी बीमारी का कहर जारी है। इससे पशुपालक को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है। लम्पी त्वचा संबंधी बीमारी के संक्रमण में आने के बाद पशु दूध देना कम कर देते हैं। ऐसे में बहुत से परिवार जिनकी जीविका दूध उत्पादन से चल रही थी, उनके सामने परेशानी खड़ी कर दी है। जानवरों की इस बीमारी से पशुपालकों में खौफ बना हुआ है। यह बीमारी लगातार बढ़ रही है और यह एक मवेशी से दूसरे मवेशी में संक्रमण फैल रहा है।
संजीव सिंह, ललन साह, मो सईद, मो अकरम आदि पशुपालक बताते हैं कि दो साल से नीचे का मवेशी लंपी बीमारी से ग्रसित हैं। प्रखंड के लगभग सभी दो साल से कम उम्र वाले पशुओं को यह बीमारी बुरी तरह जकड़ लिया हैं। इस बीमारी में पशुओं के पूरे शरीर पर चकता व घाव बन गया है।15 से 30 दिन तक एंटीबैटिक, बुखार आदि के दवाई देने पर ही पशु रिकवर हो पा रहे हैं। परंतु दवाई की अधिक मांग होने के कारण बाजार में इसकी दवाई भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
पशुपालकों ने बताया कि पशुपालन विभाग के पदाधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई है पर विभाग की ओर से कोई दवाएं नहीं दी गई। पशु चिकित्सालय में दवाइयां नहीं है और पशुपालक पुरी तरह से त्राहिमाम की स्थिति में अपने पशुओं को मरते हुए देख रहे हैं।
वहीं राजकीय पशु चिकित्सालय ठाकुरगंज के भ्रमणशील पशु चिकित्सक डॉ सुमन कुमार झा ने बताया कि प्रखंड क्षेत्र में पशुओं को लंपी बीमारी से ग्रसित होने के मामले सामने आ रहे हैं। लंपी एक विषाणु जनित रोग हैं। इस संबंध में गांवों का दौरा कर पशुपालकों को बताया जा रहा है कि लम्पी के संक्रमण से पशुओं को बचाने के लिए अपने जानवरों को संक्रमित पशुओं से अलग रखना चाहिए। इसके रहने के स्थान को निरंतर अंतराल में साफ- सफाई रखें। पीड़ित जानवर को साफ पानी पिलाए तथा पौष्टिक आहार दें। लक्षण के अनुसार पशु का ईलाज करवाए।
