भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में हिंदी भाषा को सरकारी कामकाज और संचार की भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग उठ रही है। शनिवार को नेपाल के जनकपुरधाम में त्रिभुवन विश्वविद्यालय हिंदी केंद्रीय विभाग द्वारा ‘मधेस की राजनीति में हिंदी भाषा का अंतर्संबंध’ विषय पर आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में हितधारकों ने कहा कि चूंकि मधेस में लंबे समय से बोली जाने वाली हिंदी भाषा बहुसंख्यक मधेशियों की संपर्क भाषा है, इसलिए सरकार को हिंदी को कामकाजी भाषा के रूप में मान्यता देनी चाहिए। कार्यक्रम में संघीय सरकार की शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री प्रमिलाकुमारी यादव ने कहा कि चूंकि हिंदी भाषा अतीत से ही नेपाल और भारत को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है, इसलिए इसे संपर्क भाषा के रूप में मान्यता देना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि हिंदी ने दोनों देशों के बीच नागरिक स्तर पर और राजनीतिक रूप से मधेस के भीतर महत्वपूर्ण संदेशों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सांसद रेखा यादव और किरण कुमार साह ने कहा कि वे सदन और सरकार पर इस बात के लिए दबाव डालेंगे कि उन्हें उचित मान्यता दी जाए क्योंकि मधेस में हिंदी भाषा जानकारी, भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति का आसान माध्यम है। मधेस प्रज्ञा प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रामभरोस कापड़ी ने भी सरकार से नागरिक स्तर पर दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने और मधेस के भीतर कई नागरिकों के संपर्क की भाषा के रूप में हिंदी को उचित सम्मान देने का आग्रह किया है। तृतीयक विश्वविद्यालय कीर्तिपुर के केंद्रीय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संगीता बर्मा ने कहा कि सरकार को हिंदी भाषा को उचित महत्व देने की आवश्यकता है क्योंकि नेपाल में भाषा और शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा राजनीतिक पुनर्जागरण में इसका अतुलनीय योगदान है। उन्होंने कहा कि भाषा, साहित्य और शिक्षा के विकास और विस्तार के साथ-साथ खुली सीमाओं के कारण मधेस और अन्य क्षेत्रों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में हिंदी भाषा के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। नेपाल में लोकतांत्रिक जागृति लाने में हिंदी भाषा और साहित्य के असाधारण योगदान से हम सभी परिचित हैं। सौ साल पहले तक, हिंदी नेपाल में शिक्षा और प्रशासन की भाषा थी। उन्होंने हर किसी का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए कहा कि अब भी वाणिज्य, व्यापार, संचार, मनोरंजन और शिक्षा में इसका बहुत प्रभाव और महत्व है। इसलिए, सभी स्तरों और क्षेत्रों में इसके वैध उपयोग को मान्यता देना आवश्यक है। कार्यक्रम में हिंदी भाषा प्रचारक सुदर्शनलाल कर्ण, लेखिका पूनम झा, प्रोफेसर चंद्रेश्वर प्रसाद यादव, आभा सिन्हा व अन्य ने हिंदी भाषा को भारतीय भाषा के रूप में नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में नेपालियों के लिए संवाद की भाषा के रूप में समझने का आग्रह किया। हिंदी विभाग के प्रोफेसर विनोद कुमार बिस्वकर्मा ने बताया कि हालांकि तृतीयक विश्वविद्यालय के केंद्रीय विभाग ने औपचारिक रूप से हिंदी भाषा को मान्यता दी है और पढ़ाया है, लेकिन विभाग नागरिक और राजनीतिक स्तर पर इस भाषा की समझ को मजबूत करने के लिए सभी सात प्रांतों में चर्चा करने जा रहा है।
सन 1960 तक नेपाल में शिक्षा का माध्यम हिंदी रहा था
नेपाल भारत का पडो़सी राज्य है, जहां अधिकतर लोग हिंदी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। लेकिन आज तक हिंदी को अधिकारिक भाषा के तौर पर मान्यता नहीं मिल पाई है। हालांकि, साल 2016 में कुछ नेपाली सांसदों की ओर से हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के तौर पर शामिल करने की मांग जरूर उठाई गई थी। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हिंदी समझने-बोलने वालों की संख्या 90 प्रतिशत तक है। यहां 1960 तक शिक्षा का माध्यम हिंदी रहा था, लेकिन आज भी माध्यमिक स्तर पर हिंदी ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। दरअसल, नेपाली व हिंदी दोनों की लिपि देवनागरी ही है।
विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में हिंदी भाषा को सरकारी कामकाज और संचार की भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग उठ रही है। शनिवार को नेपाल के जनकपुरधाम में त्रिभुवन विश्वविद्यालय हिंदी केंद्रीय विभाग द्वारा ‘मधेस की राजनीति में हिंदी भाषा का अंतर्संबंध’ विषय पर आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में हितधारकों ने कहा कि चूंकि मधेस में लंबे समय से बोली जाने वाली हिंदी भाषा बहुसंख्यक मधेशियों की संपर्क भाषा है, इसलिए सरकार को हिंदी को कामकाजी भाषा के रूप में मान्यता देनी चाहिए। कार्यक्रम में संघीय सरकार की शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री प्रमिलाकुमारी यादव ने कहा कि चूंकि हिंदी भाषा अतीत से ही नेपाल और भारत को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है, इसलिए इसे संपर्क भाषा के रूप में मान्यता देना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि हिंदी ने दोनों देशों के बीच नागरिक स्तर पर और राजनीतिक रूप से मधेस के भीतर महत्वपूर्ण संदेशों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सांसद रेखा यादव और किरण कुमार साह ने कहा कि वे सदन और सरकार पर इस बात के लिए दबाव डालेंगे कि उन्हें उचित मान्यता दी जाए क्योंकि मधेस में हिंदी भाषा जानकारी, भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति का आसान माध्यम है। मधेस प्रज्ञा प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रामभरोस कापड़ी ने भी सरकार से नागरिक स्तर पर दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने और मधेस के भीतर कई नागरिकों के संपर्क की भाषा के रूप में हिंदी को उचित सम्मान देने का आग्रह किया है। तृतीयक विश्वविद्यालय कीर्तिपुर के केंद्रीय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संगीता बर्मा ने कहा कि सरकार को हिंदी भाषा को उचित महत्व देने की आवश्यकता है क्योंकि नेपाल में भाषा और शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा राजनीतिक पुनर्जागरण में इसका अतुलनीय योगदान है। उन्होंने कहा कि भाषा, साहित्य और शिक्षा के विकास और विस्तार के साथ-साथ खुली सीमाओं के कारण मधेस और अन्य क्षेत्रों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में हिंदी भाषा के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। नेपाल में लोकतांत्रिक जागृति लाने में हिंदी भाषा और साहित्य के असाधारण योगदान से हम सभी परिचित हैं। सौ साल पहले तक, हिंदी नेपाल में शिक्षा और प्रशासन की भाषा थी। उन्होंने हर किसी का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए कहा कि अब भी वाणिज्य, व्यापार, संचार, मनोरंजन और शिक्षा में इसका बहुत प्रभाव और महत्व है। इसलिए, सभी स्तरों और क्षेत्रों में इसके वैध उपयोग को मान्यता देना आवश्यक है। कार्यक्रम में हिंदी भाषा प्रचारक सुदर्शनलाल कर्ण, लेखिका पूनम झा, प्रोफेसर चंद्रेश्वर प्रसाद यादव, आभा सिन्हा व अन्य ने हिंदी भाषा को भारतीय भाषा के रूप में नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में नेपालियों के लिए संवाद की भाषा के रूप में समझने का आग्रह किया। हिंदी विभाग के प्रोफेसर विनोद कुमार बिस्वकर्मा ने बताया कि हालांकि तृतीयक विश्वविद्यालय के केंद्रीय विभाग ने औपचारिक रूप से हिंदी भाषा को मान्यता दी है और पढ़ाया है, लेकिन विभाग नागरिक और राजनीतिक स्तर पर इस भाषा की समझ को मजबूत करने के लिए सभी सात प्रांतों में चर्चा करने जा रहा है।
सन 1960 तक नेपाल में शिक्षा का माध्यम हिंदी रहा था
नेपाल भारत का पडो़सी राज्य है, जहां अधिकतर लोग हिंदी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। लेकिन आज तक हिंदी को अधिकारिक भाषा के तौर पर मान्यता नहीं मिल पाई है। हालांकि, साल 2016 में कुछ नेपाली सांसदों की ओर से हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के तौर पर शामिल करने की मांग जरूर उठाई गई थी। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हिंदी समझने-बोलने वालों की संख्या 90 प्रतिशत तक है। यहां 1960 तक शिक्षा का माध्यम हिंदी रहा था, लेकिन आज भी माध्यमिक स्तर पर हिंदी ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। दरअसल, नेपाली व हिंदी दोनों की लिपि देवनागरी ही है।
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