गुरुवार को ठाकुरगंज नगर स्थित क्लब मैदान में वीर क्रांतिकारी शहीद राजगुरू की जन्म जयंती मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पुर्व मुख्य पार्षद प्रमोद कुमार चौधरी ने की। जन्म जयंती पर क्लब मैदान में स्थापित शहीद राजगुरु की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इस मौके पर पुर्व मुख्य पार्षद प्रमोद कुमार चौधरी ने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई में वीर क्रांतिकारी शहीद राजगुरु का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। आज की युवा पीढ़ी को इनसे सीख लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महान क्रांतिकारी राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। इन्होंने देश की आजादी के लिए खुद को फांसी पर चढ़वाना स्वीकार कर लिया परंतु कभी अंग्रेजों की गुलामी नहीं की। शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के खेड़ा गांव (अब राजगुरु नगर) के मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने बताया कि लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भांति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी। वहीं क्रांतिकारी गतिविधि के कारण 24 मार्च, 1931 को भगत सिंह एवं सुखदेव के साथ राजगुरू को फांसी होनी थी, जिसका पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन होने लगा। इससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई और उसने समय से एक दिन पहले ही, यानी 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दे दी और पंजाब के हुसैनीवाला गांव के निकट सतलुज नदी के किनारे अंतिम संस्कार करके वीरों की अधजली लाशों को नदी में बहा दिया। सरकार ने हुसैनीवाला में इनका स्मृति स्थल बनाया है जहां प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को राजगुरु, भगत सिंह तथा सुखदेव के सम्मान में शहीदी दिवस मनाया जाता है। वहीं इस मौके पर आकाश कुमार, हेमंत कुमार सहित स्थानीय लोग व बच्चे मौजुद थे।
सारस न्यूज, किशनगंज।
गुरुवार को ठाकुरगंज नगर स्थित क्लब मैदान में वीर क्रांतिकारी शहीद राजगुरू की जन्म जयंती मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पुर्व मुख्य पार्षद प्रमोद कुमार चौधरी ने की। जन्म जयंती पर क्लब मैदान में स्थापित शहीद राजगुरु की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इस मौके पर पुर्व मुख्य पार्षद प्रमोद कुमार चौधरी ने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई में वीर क्रांतिकारी शहीद राजगुरु का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। आज की युवा पीढ़ी को इनसे सीख लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महान क्रांतिकारी राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। इन्होंने देश की आजादी के लिए खुद को फांसी पर चढ़वाना स्वीकार कर लिया परंतु कभी अंग्रेजों की गुलामी नहीं की। शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के खेड़ा गांव (अब राजगुरु नगर) के मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने बताया कि लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भांति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी। वहीं क्रांतिकारी गतिविधि के कारण 24 मार्च, 1931 को भगत सिंह एवं सुखदेव के साथ राजगुरू को फांसी होनी थी, जिसका पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन होने लगा। इससे ब्रिटिश सरकार घबरा गई और उसने समय से एक दिन पहले ही, यानी 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दे दी और पंजाब के हुसैनीवाला गांव के निकट सतलुज नदी के किनारे अंतिम संस्कार करके वीरों की अधजली लाशों को नदी में बहा दिया। सरकार ने हुसैनीवाला में इनका स्मृति स्थल बनाया है जहां प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को राजगुरु, भगत सिंह तथा सुखदेव के सम्मान में शहीदी दिवस मनाया जाता है। वहीं इस मौके पर आकाश कुमार, हेमंत कुमार सहित स्थानीय लोग व बच्चे मौजुद थे।
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