विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
सजना हैं हमें सजाना के लिए, हमारा देश त्यौहारों का देश हैं हमारे देश की संस्कृति सब से अलग हैं हम भारत वासी अपनी संकृति के लिए और यहाँ पर हर दिन आते पर्व के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। हर दिन कोई न कोई पर्व होता ही हैं। हमारे देश का सबसे मुख्य पर्व है हरितालिका तीज एवं चौरचन का त्योहार आज सोमवार को गलगलिया सहित उत्तर भारत में सुहागिन महिलाओं द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बिहार में मुख्य तौर पर इसे किया जाता है। जिसमें सुहागिन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पूरा दिन व्रत रख कर दूसरे दिन पूजा करके व्रत खोलती है। जानकार बताते हैं कि तीज का व्रत भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन किया जाता है। इस ख़ास दिन माता गौरी व भगवान शंकर का पूजन होता है। यह व्रत हस्त नक्षत्र में होता है। इस व्रत को सभी कुआंरी युवतियां जिनकी शादी तय हो गयी हों व सौभाग्यवती महिलाएं ही करती हैं। उन्होंने बताया कि इस व्रत को हरतालिका इसीलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उन्हें पिता-प्रदेश से हर कर घनघोर जंगल में ले गई थी। हरत अर्थात हरण करना और आलिका अर्थात सखी, सहेली। वहीं चोरचंद व्रत करने वाली सुहागिन चंद्रदेव को भोग लगाने के लिए घरों में प्रसाद बनाती है। सूर्यास्त होने और चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले रंगोली बनाई गई। उस पर पूजा-पाठ के सभी सामग्रियों को रखकर गणेश तथा चांद की पूजा की गई। इस पूजा-पाठ में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा, दही आदि चढ़ाया गया। घरों की बुजुर्ग स्त्री या व्रती महिलाओं ने आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित किया।
हरितालिका तीज की पूजन विधि:
सबसे पहले उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये मंत्र का संकल्प करके मकान को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्र करें। हरितालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय। संध्या के समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात पार्वती तथा शिव की सुवर्णयुक्त (यदि यह संभव न हो तो मिट्टी की) प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजा करें। बालू रेत अथवा काली मिट्टी से शिव-पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं। इसके बाद सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रखें, फिर इन वस्तुओं को पार्वतीजी को अर्पित करें। शिवजी को धोती तथा अंगोछा अर्पित करें और उसके बाद सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दे दें। इस प्रकार पार्वती तथा शिव का पूजन-आराधना कर हरतालिका व्रत कथा सुनें। फिर सर्वप्रथम गणेशजी की आरती, फिर शिवजी और फिर माता पार्वती की आरती करें। तत्पश्चात भगवान की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं। ककड़ी-हलवे का भोग लगाएं और फिर ककड़ी खाकर उपवास तोड़ें, अंत में समस्त सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी या किसी कुंड में विसर्जित करें।