विजय कुमार गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
भाग्य के भरोसे
यूं रोना अपने भाग्य का रोते रहोगे कब तलक
रह भरोसे भाग्य के सोते रहोगे कब तलक।
जीवन के अनमोल क्षण खोते रहोगे कब तलक
वक्त की धारा में तुम बहते रहोगे कब तलक।
मंजिलें मिलती उसी को, जो मदद खुद की करे
रह भरोसे भाग्य के जो, ना कभी आहें भरे।
काम कितना भी कठिन हो, चुटकियों में जो करे
हो अग्रसर अपने पथ पर बाधाओं से जो लड़े।
वह मनुज ही क्या जो वक्त की धारा को ना मोड़ दे
हार कर जो वक्त से कोशिश ही करना छोड़ दे।
अपनी लगन से जो, दो धाराओं को ना जोड़ दे,
आत्मबल से जो हर जंजीरों को तोड़ दे।
हो हौसला तुझमें बुलंद, मिलकर रहेंगी मंजिले
कोशिशों की मार से, चटकती है हर जंजीरे।
कुछ भी नही असंभव यहाँ, यह प्रमाण कर जाना है,
हिम्मत वालों की दुनियाँ में, अलग इतिहास बनाना है।
बिंदु अग्रवाल, (शिक्षिका सह कवयित्री, लेखिका,
किशनगंज, बिहार)
