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परंपरागत सोहराय नृत्य के साथ चुरली मेला मैदान में शुरू हुई 06 दिवसीय सोहराय पर्व, मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे पूर्व विधायक गोपाल कुमार अग्रवाल।

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

सोहरायपर्व काे लेकर क्षेत्र में उत्साह का माहौल बनने लगा है। आदिवासी समाज के इस 6 दिवसीय महान  पर्व  ठाकुरगंज प्रखंड के बेसरबाटी पंचायत सहित आस पास के क्षेत्र में मंगलवार को एक कार्यक्रम से शुरू हो गई। चुरली हाट के जाहेर स्थान में चुरली के जन्मवीर, बाघा टोला, बेसरबाटी, ईडल घटटु, बिरानगछ, माली टोला आदि गांवों के लोगों ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर पर्व की शुरुआत की। वहीं इस भव्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में ठाकुरगंज पूर्व विधायक गोपाल कुमार अग्रवाल उपस्थित रहकर लोगों का उत्साह बढ़ाया। लोगों ने आदिवासी रीति रिवाज से उनका स्वागत किया।

समारोह में शामिल लोगों को संबोधित कर गोपाल अग्रवाल ने कहा कि सोहराय पर्व प्रकृति की पूजा का पर्व है और इस पर्व में किसान और पशुपालक द्वारा प्रकृति की रक्षा के लिए पौराणिक संस्कृति के तहत पूजा पाठ की जाती है, और समाज के लोग मिलकर उत्साह मनाते हैं। वहीं कार्यक्रम के दौरान चुरली मेला मैदान में आदिवासी महिलाओं में फुलमनी मुर्मू, बाहा बेसरा, जुसरी सोरेन, लखी हेम्ब्रम, रेणुका पहान, धानो मुर्मू सहित सैकड़ों महिला पुरुषों ने परंपरागत सोहराय नृत्य किया जिसका आनंद मुख्य अतिथि एवं वहां के स्थानीय लोग व जनप्रतिनिधि ने खूब उठाया। आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है। शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक होते हैं। पूरे देश में आदिवासियों का महान सोहराय पर्व का विशेष महत्व है।सोहराय पर्व को गोधन पूजन पर्व भी माना जाता है।पर्व में गाय बैल की पूजा आदिवासी समाज काफी उत्साह होकर करते हैं। मुख्य रूप से यह पर्व छह दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी धूम पूरे क्षेत्र में देखने को मिलती है।कार्यक्रम के मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में ठाकुरगंज के पूर्व विधायक गोपाल अग्रवाल, अधिवक्ता कौशल किशोर यादव, बेसरबाटी पंचायत के मुखिया अनुपमा देवी, मुन्ना टुडू, चुड़का टुडू, सुपोल मुर्मू, रमेश सोरेन, बबलू टुडू,मंगल मरंडी सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे।

सोहराय पर्व की उत्पत्ति की कथा:

आदिवासियों में सोहराय पर्व की उत्पत्ति की कथा भी काफी रोचक है। इस बारे में मांझी परगना एभेन बैसी के जिलाध्यक्ष अर्जुन हेम्ब्रम, सचिव सुबोध टुडू, जिला प्रमुख गंगा बास्की आदि ने बताया कि जब मंचपुरी अर्थात मृत्युलोक में मानवों की उत्पत्ति होने लगी तो बच्चों के लिए दूध की जरूरत महसूस होने लगी। उस कालखंड में पशुओं का सृजन स्वर्गलोक में होता था। मानव जाति की इस मांग पर मारांगबुरु अर्थात शिवजी स्वर्ग पहुंचे और अयनी गाय बयनी गाय सुगी गाय सावली गाय करी गाय कपिल गाय सिरे रे वरदा बैल से मृत्युलोक में चलने की अपील की। लेकिन ये नहीं माने। तो शिवजी ने कहा कि मंचपुरी में मानव युगो-युगो तक तुम्हारी पूजा करेगा। तब वे लोग राजी होकर धरती में आए। उसी गाय-बैल की पूजा के साथ सोहराय पर्व की शुरुआत हुई।

पहले दिन से अंतिम दिन कैसे मनाते हैं पर्व:

पर्व के पहला दिन गढ़ पूजा पर चावल गुंडी के कई खंड का निर्माण कर पहला खंड में एक अंडा रखा जाता है। गाय-बैलों को इकट्‌ठा कर छोड़ा जाता है, जो गाय या बैल अंडे को फोड़ता या सुंघता है। उसकी भगवती के नाम पर पहली पूजा की जाती है तथा उन्हें भाग्यवान माना जाता है। इसी दिन से बैल गायों के सिंग पर प्रतिदिन तेल लगाया जाता है। दूसरे दिन गोहाल पूजा पर मांझी थान में युवकों द्वारा लठ खेल का प्रदर्शन किया जाता है। रात्रि को गोहाल में पशुधन के नाम पर पूजा की जाती है। खानपान के बाद फिर नृत्य गीत का दौर चलता है। तीसरे दिन खुंटैव पूजा पर प्रत्येक घर के द्वार पर बैलों को बांधकर पीठा पकवान का माला पहनाया जाता है और ढोल ढाक बजाते हुए पीठा को छीनने का खेल होता है। चौथे दिन जाली पूजा पर घर घर में चंदा उठाकर प्रधान को दिया जाता है और सोहराय गीतो पर नृत्य गीत चलता है। पांचवा दिन हांकु काटकम कहलाता है। इस दिन आदिवासी लोग मछली ककड़ी पकड़ते है। छठे दिन आदिवासी झूंड में शिकार के लिए निकलते है। शिकार में प्राप्त खरगोश तीतर आदि जन्तुओं को मांझीथान में इकठ्ठा कर घर घर प्रसादी के रुप में बांटा जाता है।

सोहराय में गीत नृत्य का विशेष महत्व:

सोहराय में गीत नृत्य का अपना एक विशेष महत्व है।जिसके लिए आदिवासी महिलाओं  ने परंपरागत सोहराय नृत्य, लागड़े नृत्य, डांटा नृत्य, दोंग नृत्य व जाले नृत्य प्रस्तुत कर समां बांध दिया।

प्राकृतिक प्रकोपों से रक्षा के लिए ईश्वर से कामना:

सोहराय पर्व पर प्राकृतिक प्रकोपों से रक्षा के लिए ईश्वर से कामना की जाती है। इसके लिए संताल अपने ईष्टदेव की पूजा-अर्चना कर गलतियों की माफी मांगते हैं।

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