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भारत-नेपाल सीमा पर लगा ऐतिहासिक कीचक वध मेला, बिहार, बंगाल तथा नेपाल से लाखों श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़।

विजय गुप्ता,सारस न्यूज, गलगलिया।

भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र गलगलिया के निम्बूगुड़ी से महज तीन किमी पर स्थित नेपाल के झापा जिला महेशपुर गाँव में हर वर्ष की भांति इस बार भी ऐतिहासिक कीचक वध मेला  का आयोजन आज शनिवार को किया गया।जिसमें लाखों की संख्या में भारत के राज्य बिहार,बंगाल,आसाम,भूटान व सिक्किम तथा नेपाल के झापा,मोरंग,सप्तरी जिलों से श्रद्धालु विभिन्न मार्गों से नेपाल डोन्जो नदी के समीप उक्त स्थान पर भारी भीड़ के साथ माथा टेकने पहुंची।
भारतीय श्रद्धालु नेमुगुड़ी (भारत ) मेची नदी पार कर उक्त स्थान पर जाकर पूजा- अर्चना करते हैं। नेपाल की डोन्जो नदी के समीप इस स्थान पर सदियों से कीचक  वध का मेला का आयोजन होता आ रहा है।
महाभारत काल में बारह वर्ष के वनवास के उपरांत एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान राजा विराट की पत्नी महारानी सुदेशना का भाई तथा मतस्य देश के सेनापति कीचक का वध पांडव पुत्र भीम ने मल्य युद्ध में जिस स्थान पर किया था उसी स्थान पर माघी पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है। जिसमे दोनों देशों के नागरिक हिन्दू रिति रिवाज से कीचक वध स्थली पर पहुँच मेले में शामिल होते हैं जिसे कीचक वध मेला कहते हैं। बाद में किचक बध को ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन स्थल का नाम दिया गया। धार्मिक एवं पर्यटक स्थल संरक्षण समिति किचक बध के संयुक्त सचिव एवं मेला आयोजन समिति के संयोजक गुनाहरि ढुंगाना ने बताया कि करीब सौ वर्ष पूर्व से यह मेला स्थल घने जंगलों से घिरा हुआ था। और उस समय साधू संतों,ऋषि मुनियों का आगमन उक्त स्थान पर लगा रहता था। ये लोग बसंत पंचमी के दिन से माघ माह के पूर्णिमा तक लगातार दस दिनों तक महाभारत कथा का पाठ पढ़ते थे और ये परंपरा आज भी चल रहा है।

महाभारतकालिन से जुड़ा है कीचक वध स्थल की कहानी

कीचक वध स्थल पर रह रहे पुरोहित चतुर्भुज आचार्य ने महाभारतकालिन घटना से सम्बंधित उक्त स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि पांडवों को एक वर्ष का अज्ञात वास गुजारना था पांडव अपना नाम व वेश भूषा बदल कर राजा विराट के दरबार में नौकरी करते थे।इसी दौरान सेनापति कीचक ने द्रौपदी जो शैरन्दी के नाम से नौकरानी थी उस पर गलत दृष्टि डालनी शुरू कर दी। किचक के गलत नियत की जानकारी जब द्रौपदी ने पांडव पुत्र भीम को दी जो उसी महल में रसोइया के रूप में कार्य कर रहे थे।तब योजनाबद्ध तरीके से द्रौपदी ने सेनापति किचक को अर्द्धरात्रि को नृत्यशाला में बुलाया जहाँ काफी देर तक चले मल्ययुद्ध में भीम ने किचक का वध कर दिया।

कीचक वध स्थल के पातालगंगा का महत्व

मेला कमिटी द्वारा बताया गया कि मेला परिसर क्षेत्र में स्थित पातालगंगा का भी एक अलग महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि माघी पूर्णिमा के दिन किचकाबध स्थल के पातालगंगा तालाब में स्वत: जल प्रवाहित होता है। चबूतरानुमा पातालगंगा के समीप शुद्ध मन व तन से किचक वध नाम,सत्यदेवी पातालगंगा धाम का जयकारा लगाने से पानी उबलने लगता है। मेला के दिन लाखों श्रद्धालु यहाँ मन्नत मांगने आते हैं।और पूर्ण होने पर श्रद्धालु फल फूल, बताशा, कबूतर, बकरा आदि का चढ़ावा चढ़ाते हैं।यहाँ पशु,पक्षी की बली पर रोक है।

किचकबद्ध स्थल के उत्खनन में मिले अवशेष

पाडवों ने बिहार एवं नेपाल की सीमा पर बसे ठाकुरगंज और इससे सटे नेपाल के महेशपुर में अज्ञात वाश बिताया था। यहाँ के विभिन्न जगहों पर मौजूद अवशेष इस बात की गवाही देते नजर आते हैं कि इस इलाके का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है।समय के साथ सब कुछ बदल जाने के बाद भी ठाकुरगंज,महेशपुर में पौराणिक अवशेष आज भी सुरक्षित है। पुरातत्व विभाग द्वारा अब तक यहाँ 7 चरण में उत्खनन हो चुका है जिसमें तबेला जैसी दिखने वाली 22 मीटर लंबा व 17 मीटर चौड़ा एक मंजिला भवन पाया गया था साथ ही मिट्टी के बर्तन,मिट्टी के ईंट जैसा प्लेट(टायल्स),घोड़ा व हाथी के गले में पहनाने वाली कई प्रकार की शोभनीय वस्तु,मिसाइल के आकार के मिट्टी का सामान,पत्थर की थाली,मिट्टी की सुराही,बाण,नाग की मूर्ति एवं लोहे की चाकू इत्यादि पाया गया है।साथ ही खपरैल के टुकड़े और कुछ हड्डियाँ भी मिलने की जानकारी मिली है।

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