• Sat. Sep 13th, 2025

Saaras News - सारस न्यूज़ - चुन - चुन के हर खबर, ताकि आप न रहें बेखबर

भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के गलगलिया, भद्रपुर, चुरली में गुरुवार को सुहागिनों का महापर्व वट सावित्री मनाया गया।

विजय गुप्ता,सारस न्यूज, गलगलिया।

इस दिन सुहागिनें 16 श्रृंगार करके बरगद के पेड़ में चारों फेरें लगाकर अपने पति के दीर्घायु होनें की प्रार्थना करती हैं। प्यार, श्रद्धा और समर्पण का यह व्रत सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहता है। पूजा के लिए सुबह तीन बजे से ही सुहागिनें सोलह श्रृंगार करने लगतीं हैं। फिर वट वृक्ष के नीचे जाकर पांच, ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन और 108 बार वृक्ष की परिक्रमा करके वट में धागा (मौली) लपेट कर पति की लम्बी आयु की मुरादें मागतीं हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मां सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। भारतीय धर्म में वट सावित्री पूजा स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे करने से हमेशा अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीष प्राप्त होता है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल-वृक्ष की तरह बरगद-वृक्ष में भी लक्ष्मी और महेश की उपस्थिति मानी जाती है। इस वट वृक्ष के नीचे कथा व्रत करने से मन वांछित फल की प्राप्ति होती है। 

क्यों करते हैं वट-सावित्री पूजा।

कथाओं में उल्लेख है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिये। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है।

वट वृक्ष का महत्व।

इस व्रत में वट वृक्ष का बहुत खास महत्व होता है जिसका अर्थ है बरगद का पेड़। इस पेड़ में काफी शाखाएं लटकी हुई होती है जिन्हें सावित्री देवी का रूप माना जाता है। पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

इसलिए की जाती है चने के पूजा।

इसलिए वट सावित्री व्रत कथा के रूप में सत्यवान और सावित्री की कथा कही जाती है। ऐसा कहा जाता है यमराज ने सत्यवान को चने के रूप में प्राण सौंपे थे। सावित्री प्राण रूपी चने को लेकर अपने पति सत्यवान के शव के पास गई और अपने मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया। सावित्री द्वरा ऐसा करने पर सत्यवान जीवित हो गए। तभी से वट सावित्री के व्रत-पूजन में चने को भी पूजने का नियम है। इस दिन वट (बरगद) वृक्ष को जल और दूध से सींचने का प्रचलन है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *