विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
आज पहली सोमवारी के साथ सावन शुरू हो गया और सावन महीने में सोमवार व्रत का विशेष महत्व के साथ
सावन माह में बेलपत्र व बेल का भी बिशेष महत्व है।
बेल विभिन्न गुणो से भरपूर फल है। सावन में इसका महत्व और अधिक बढ जाता है ।बेल की पत्तियों के बिना सावन में शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि शिव को बेलपत्र चढाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। एवं इस पेड़ को सींचने से सब तीर्थों का फल और शिवलोक की प्राप्ति होती है। बेल पत्तियाँ व छाले कई रोगो में रामबाण है एवं फल का उपयोग शर्बत व मुरब्बा आदि कई रूपो में किया जाता है। गलगलिया भातगाँव स्थित हनुमान मंदिर के पुजारी श्री सुमन मिश्रा का कहना है कि भगवान शिव को बेल पत्र परम प्रिय है। यह बात तो सभी को पता है लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव के अंशावतार हनुमान जी को भी बेल पत्र अर्पित करने से प्रसन्न किया जा सकता है और लक्ष्मी का वर पाया जा सकता है। घर की धन-दौलत में वृद्धि होने लगती है। अधूरी कामनाओं को पूरा करता है यह सावन का महीना। शिव पुराण के अनुसार सावन माह के सोमवार को शिवालय में बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है। कुछ विशेष दिनों में ही प्राप्त कर सकते हैं साल भर की पूजा का फल। बेल को बिल्व व श्री फल भी कहा जाता है ।यह अति प्राचीन वृक्ष फल है। शास्त्र, पुराण व वैदिक साहित्य में इसे दिव्य वृक्ष भी कहा गया है। इस वृक्ष में लगे पुराने फल साल भर बाद पुनः हरे हो जाते है। इनके तोड़े गए पत्र (पत्तियाँ )कई दिनो तक ज्यों की त्यों रहती है। धार्मिक परंपरा में ऐसी मान्यता है कि बेल के वृक्ष के जड़ में लिंग रूपी महादेव का वास रहता है इसलिए इसके जड़ में महादेव का पूजन किया जाता है। इन्ही दिव्य गुणों के कारण इन्हे पवित्र माना जाता है।
पूजा में बेलपत्र का महत्व:
बिल्व वृक्ष या बेल का पेड़ हमारे लिए एक उपयोगी वनस्पति है जो हमारे कष्टों को दूर करता है। भगवान् शिव को पत्तियां चढाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आवें। दूसरों के दुःख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान् शिव को प्रिय है सारी वनस्पत्तियां भगवान् की कृपा से ही हमें मिली है।अतः हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है।और यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वतःप्रेरित करती है।
बेल व बेलपत्र का औषधीय गुण:
बिल्वपत्र का सेवन, त्रिदोष यानी वात (वायु), पित्त (ताप), कफ (शीत) व पाचन क्रिया के दोषों से पैदा बीमारियों से रक्षा करता है। यह त्वचा रोग और डायबिटीज के बुरे प्रभाव को बढ़ने से भी रोकता है व तन के साथ मन को भी चुस्त-दुरुस्त रखता है। बेल के अंदर टॉनिक एसिड, उड़नशील तेल, कड़वा तत्व और एक चिकना लुआबदार पदार्थ पाया जाता है। इसके जड़, छाल व पत्तो में शक्कर कम करने वाला टैनिन पाया जाता है । इसके गूदे में मारशोलिनिस तथा बीजो में पीले रंग का तेल पाया जाता है। उष्ण, कफ, वातानाशक, दीपन, पाचन, हृदय रक्त स्तभंन, कफ नाशक, मूत्र व शर्करा कम करने वाला, कटु पौष्टिक, अतिसार, रक्त अतिसार, प्रवाहिका, श्वेत प्रदर होता है। इसलिए सावन में धार्मिक गुणो व विशिष्ट गुणो के कारण बेल व पत्तियाँ का बिशेष महत्व है ।
