किशनगंज जिले में अशिक्षा और आर्थिक बदहाली की वजह से ग्रामीण बच्चे दलालों के चंगुल में फँसते जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार, इस वर्ष 2024 में जनवरी से 15 नवंबर तक कुल 197 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया है।
जिले में अशिक्षा और गरीबी के कारण बच्चे और उनके परिवार दलालों के झाँसे में आ जाते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ रोजगार दिलाने के नाम पर ये दलाल सक्रिय हैं। ये दलाल बच्चों के माता-पिता को बहला-फुसलाकर मोटी रकम का लालच देते हैं और बच्चों को मजदूरी के लिए महानगरों में ले जाते हैं। इन बच्चों से दिन-रात मेहनत करवा कर दलाल मोटी रकम कमाते हैं, जबकि बच्चों के परिजनों को थोड़ी-सी रकम देकर उनका मुँह बंद कर देते हैं।
आर्थिक तंगी और मजबूरी का फायदा उठाते हैं दलाल
गाँवों में आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को रोजी-रोटी कमाने और पेट भरने के लिए दलालों के हाथों सौंप देते हैं। बदले में ठेकेदार बच्चों से मनमाने तरीके से मजदूरी करवाते हैं। दलाल बच्चों को किशनगंज रेलवे स्टेशन से ट्रेन के जरिए बेंगलुरु, केरल, लुधियाना, पंजाब, गुजरात, और अन्य महानगरों में ले जाते हैं। वहाँ इन बच्चों से विभिन्न उद्योगों और भवन निर्माण कार्यों में 12 से 16 घंटे तक काम करवाया जाता है, लेकिन इसके बदले उन्हें मामूली मजदूरी मिलती है।
दलालों के अत्याचार से पीड़ित बच्चे
कई बार बच्चे दलालों के अत्याचार से तंग आकर भागकर किसी तरह अपने घर लौट आते हैं। लेकिन अधिकांश बच्चे इनकी क्रूरता का शिकार बन जाते हैं। हालाँकि श्रम विभाग और कई निजी संगठनों ने रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, और अन्य जगहों से बाल श्रमिकों को मुक्त कराया है, लेकिन दलालों की गिरफ्तारी अब तक लगभग शून्य है। इस वर्ष अब तक 197 बाल श्रमिकों को मुक्त किया गया है, जिसमें से 13 बाल श्रमिक श्रम विभाग द्वारा और 184 बाल श्रमिक विभिन्न संगठनों द्वारा मुक्त कराए गए हैं।
आखिर क्यों अब तक दलालों को पकड़ने में प्रशासन असफल रहा है? जबकि बाल श्रमिकों को बचाने के लिए कई संगठन और विभाग लगातार प्रयासरत हैं, फिर भी दलाल खुलेआम अपनी गतिविधियाँ जारी रख रहे हैं।
समाज और प्रशासन को मिलकर करना होगा प्रयास
जरूरत है कि प्रशासन, स्थानीय संगठनों, और समाज के लोग मिलकर इन दलालों के खिलाफ सख्त कदम उठाएँ। बच्चों के भविष्य और अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता और ठोस कार्रवाई बेहद जरूरी है।
सारस न्यूज़, किशनगंज।
किशनगंज जिले में अशिक्षा और आर्थिक बदहाली की वजह से ग्रामीण बच्चे दलालों के चंगुल में फँसते जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार, इस वर्ष 2024 में जनवरी से 15 नवंबर तक कुल 197 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया है।
जिले में अशिक्षा और गरीबी के कारण बच्चे और उनके परिवार दलालों के झाँसे में आ जाते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ रोजगार दिलाने के नाम पर ये दलाल सक्रिय हैं। ये दलाल बच्चों के माता-पिता को बहला-फुसलाकर मोटी रकम का लालच देते हैं और बच्चों को मजदूरी के लिए महानगरों में ले जाते हैं। इन बच्चों से दिन-रात मेहनत करवा कर दलाल मोटी रकम कमाते हैं, जबकि बच्चों के परिजनों को थोड़ी-सी रकम देकर उनका मुँह बंद कर देते हैं।
आर्थिक तंगी और मजबूरी का फायदा उठाते हैं दलाल
गाँवों में आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को रोजी-रोटी कमाने और पेट भरने के लिए दलालों के हाथों सौंप देते हैं। बदले में ठेकेदार बच्चों से मनमाने तरीके से मजदूरी करवाते हैं। दलाल बच्चों को किशनगंज रेलवे स्टेशन से ट्रेन के जरिए बेंगलुरु, केरल, लुधियाना, पंजाब, गुजरात, और अन्य महानगरों में ले जाते हैं। वहाँ इन बच्चों से विभिन्न उद्योगों और भवन निर्माण कार्यों में 12 से 16 घंटे तक काम करवाया जाता है, लेकिन इसके बदले उन्हें मामूली मजदूरी मिलती है।
दलालों के अत्याचार से पीड़ित बच्चे
कई बार बच्चे दलालों के अत्याचार से तंग आकर भागकर किसी तरह अपने घर लौट आते हैं। लेकिन अधिकांश बच्चे इनकी क्रूरता का शिकार बन जाते हैं। हालाँकि श्रम विभाग और कई निजी संगठनों ने रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, और अन्य जगहों से बाल श्रमिकों को मुक्त कराया है, लेकिन दलालों की गिरफ्तारी अब तक लगभग शून्य है। इस वर्ष अब तक 197 बाल श्रमिकों को मुक्त किया गया है, जिसमें से 13 बाल श्रमिक श्रम विभाग द्वारा और 184 बाल श्रमिक विभिन्न संगठनों द्वारा मुक्त कराए गए हैं।
आखिर क्यों अब तक दलालों को पकड़ने में प्रशासन असफल रहा है? जबकि बाल श्रमिकों को बचाने के लिए कई संगठन और विभाग लगातार प्रयासरत हैं, फिर भी दलाल खुलेआम अपनी गतिविधियाँ जारी रख रहे हैं।
समाज और प्रशासन को मिलकर करना होगा प्रयास
जरूरत है कि प्रशासन, स्थानीय संगठनों, और समाज के लोग मिलकर इन दलालों के खिलाफ सख्त कदम उठाएँ। बच्चों के भविष्य और अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता और ठोस कार्रवाई बेहद जरूरी है।
Leave a Reply