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बिंदु अग्रवाल की कविता #71 (शीर्षक:-सिर्फ तुम्हारा इंतजार…)

सिर्फ तुम्हारा इंतजार

मैं धीरे-धीरे जला रही हूं उन खतों को
जो तुमने मुझे कभी लिखे ही नहीं।
वह तो अनायास ही पनप गए थे ,
मेरे दिल के किसी कोने में जिन्हे मैं
छुप छुप कर पढ़ा करती थी।
और महसूस किया करती थी,
तुम्हारे प्रेम को खुद के लिए।
अगर तुमने कभी मुझे खत लिखा होता
तो शायद ऐसे ही लिखते?
और मैं उन्हें छुपा कर रखती
किसी अलमारी के किसी कोने में,
जहां किसी की नजर ना पड़े।
रात की अंधियारेमें उन्हें निकाल
कर देखती, सीने से लगाती
फिर छुपा कर रख देती।
फिर निकालती, फिर पढ़ती,
और यह सिलसिला यूं ही चलता रहता।
और फिर छुपा कर रख देती
घर के किसी कोने में जहां
न ही रोशनी की किरण पहुंचे,
और ना ही किसी की नजर।
मेरे सिवा तुम्हें कोई और ना देख पाए।
जलने के बाद भी कुछ यादें शेष रह जाए
मेरे दिल के मरुस्थल में।
जैसे रह जाती है कुछ राख शमशान में।
सब कुछ जलने के बाद भी।
और उस राख में लिखा हो तुम्हारा “इंतजार”

Bindu Agarwal (सुमन)

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