मक्के की फसलों में कीड़ा लगने से जहाँ किसान परेशान है उसी को लेकर सोमवार के दिन स्थानीय किसानो को डॉ पी पी सिन्हा ने किसानों को नई जानकारी देते हुए कहा कि बढती हुई जनसंख्या को भोजन की व्यवस्था में मक्का का महत्वपूर्ण स्थान हैं। मक्के के दाने मे मुख्यतः प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट, क्रुडफाइबर होता है l इनकी प्रजातियाँ – शक्तिमान,लक्ष्मी, देवकी, गंगा, पूसा व शंकर मक्का है। इनसे बेबीकोंर्न , मुरब्बा आदि बनते हैं। वहीँ उन्होंने बताया कि इसकी बुवाई 15 अक्टूबर से 20 नवम्बर तक होती हैं। कार्बोनडाजीम नामक फफुन्दी नाशक से बिजोपचार करते हैं तो कीड़े और बीमारी का खतरा टल जाता हैं।
वहीँ डॉ पी पी सिन्हा ने बताया कि अमूमन किसान को यह ज्ञान नाम मात्र होती हैं, इसलिए अक्सर फसलों में कीड़े एव बीमारी लग जाता है। मक्का में अक्सर स्टेम बोरर ,भुट्टा छेदक, फाल आर्मीवर्म प्रमुख कीड़े हैं। इसके लिए क्लोरोपाईरीफोस दवाई से बीजशोधन से उपचार होता है तो कीड़े स्वत कम हो जाते है l
फसलों में कार्बोफ्यूरान 3 -जी, फोरेट 10 – जी का एक मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए l खेत मे सेक्स फेरोमोंन टेरेप्स का भी प्रयोग करे और कीड़े मर जायेंगे l फसल में कभी कभी हेलिकोभरपा आर्मीजेरा पाया जाता हैं। इसके लिए डाईकोलेरोफोस एक मिलीलीटर प्रति लिटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें। जिससे कीड़े मर जायेंगे। वहीँ बिमारी मे झुलसा, स्टेंमरोट व रस्ट प्रमुख हैं।वहीँ पत्ते व स्टेम गल जाते हैं और टूट जाता हैं। जिसके लिए मेंकोजेब 75 प्रतिशत ढाई ग्राम पानी मे घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें l ईमरजैंसि में बिलीचिंग पाउडर 12 किलो प्रति हेक्टर की मदद से भुड़काव करें और सरण से मुक्ति पाए l जमीन में सूत्रकृमि से निजात हेतु फ्युराडेंन का 20 किलो प्रति हेक्टर मिट्टी में मिला दें, जिससे नेमाटोड मर जायेगा l
अगर दीमक का प्रकोप हो तो कलोरोपाएरीफास का प्रयोग करे। वहीँ उन्होंने किसानो को अपने अपने खेतोँ मे जैविक खाद का प्रयोग करने कि अपील कि जिससे कि फ़सल कि पैदावार अच्छी हो ।
प्रतिनिधि, सारस न्यूज, बहादुरगंज।
मक्के की फसलों में कीड़ा लगने से जहाँ किसान परेशान है उसी को लेकर सोमवार के दिन स्थानीय किसानो को डॉ पी पी सिन्हा ने किसानों को नई जानकारी देते हुए कहा कि बढती हुई जनसंख्या को भोजन की व्यवस्था में मक्का का महत्वपूर्ण स्थान हैं। मक्के के दाने मे मुख्यतः प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट, क्रुडफाइबर होता है l इनकी प्रजातियाँ – शक्तिमान,लक्ष्मी, देवकी, गंगा, पूसा व शंकर मक्का है। इनसे बेबीकोंर्न , मुरब्बा आदि बनते हैं। वहीँ उन्होंने बताया कि इसकी बुवाई 15 अक्टूबर से 20 नवम्बर तक होती हैं। कार्बोनडाजीम नामक फफुन्दी नाशक से बिजोपचार करते हैं तो कीड़े और बीमारी का खतरा टल जाता हैं।
वहीँ डॉ पी पी सिन्हा ने बताया कि अमूमन किसान को यह ज्ञान नाम मात्र होती हैं, इसलिए अक्सर फसलों में कीड़े एव बीमारी लग जाता है। मक्का में अक्सर स्टेम बोरर ,भुट्टा छेदक, फाल आर्मीवर्म प्रमुख कीड़े हैं। इसके लिए क्लोरोपाईरीफोस दवाई से बीजशोधन से उपचार होता है तो कीड़े स्वत कम हो जाते है l
फसलों में कार्बोफ्यूरान 3 -जी, फोरेट 10 – जी का एक मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए l खेत मे सेक्स फेरोमोंन टेरेप्स का भी प्रयोग करे और कीड़े मर जायेंगे l फसल में कभी कभी हेलिकोभरपा आर्मीजेरा पाया जाता हैं। इसके लिए डाईकोलेरोफोस एक मिलीलीटर प्रति लिटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें। जिससे कीड़े मर जायेंगे। वहीँ बिमारी मे झुलसा, स्टेंमरोट व रस्ट प्रमुख हैं।वहीँ पत्ते व स्टेम गल जाते हैं और टूट जाता हैं। जिसके लिए मेंकोजेब 75 प्रतिशत ढाई ग्राम पानी मे घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें l ईमरजैंसि में बिलीचिंग पाउडर 12 किलो प्रति हेक्टर की मदद से भुड़काव करें और सरण से मुक्ति पाए l जमीन में सूत्रकृमि से निजात हेतु फ्युराडेंन का 20 किलो प्रति हेक्टर मिट्टी में मिला दें, जिससे नेमाटोड मर जायेगा l
अगर दीमक का प्रकोप हो तो कलोरोपाएरीफास का प्रयोग करे। वहीँ उन्होंने किसानो को अपने अपने खेतोँ मे जैविक खाद का प्रयोग करने कि अपील कि जिससे कि फ़सल कि पैदावार अच्छी हो ।
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