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बिहार में इंटरमीडिएट की पढ़ाई में बड़ा बदलाव, डिग्री महाविद्यालयों से कर सकेंगे सिर्फ स्नातक।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

बिहार सरकार ने नए शैक्षणिक सत्र 2025-27 से राज्य के सभी डिग्री महाविद्यालयों में इंटरमीडिएट (11वीं और 12वीं कक्षा) की पढ़ाई पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है। अब से इंटरमीडिएट की पढ़ाई केवल बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) के अधीन संचालित 1,006 उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट महाविद्यालयों में ही होगी। इसमें उन डिग्री महाविद्यालयों को भी शामिल किया गया है, जहां इंटरमीडिएट की पढ़ाई का खंड पूरी तरह से अलग है।

यह व्यवस्था पिछले साल से लागू हो चुकी है, जब शैक्षणिक सत्र 2024-2026 के तहत डिग्री महाविद्यालयों में 11वीं कक्षा में नामांकन की प्रक्रिया समाप्त कर दी गई थी। इसके साथ ही, पिछले वर्ष 12वीं कक्षा में शैक्षणिक सत्र 2023-2025 के छात्र-छात्राओं का ही नामांकन हुआ था, और इस सत्र का इंटरमीडिएट परिणाम 25 फरवरी को घोषित किया गया था।

राज्य में कुल 537 डिग्री महाविद्यालय हैं, जिनमें 266 अंगीभूत और 271 सरकार से संबद्ध महाविद्यालय हैं। इस बदलाव के बाद, अब 11वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई केवल उच्च माध्यमिक विद्यालयों और इंटरमीडिएट महाविद्यालयों में होगी।

यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत किया गया है। इससे पहले, 1986 में लागू हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत इंटरमीडिएट की शिक्षा विश्वविद्यालयों के हिस्से में थी। तब विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम निर्धारित किए जाते थे और परीक्षा भी विश्वविद्यालय द्वारा ली जाती थी।

बिहार में यह परिवर्तन 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में शुरू हुआ था, जब डॉ. मदन मोहन झा को शिक्षा विभाग का प्रधान सचिव नियुक्त किया गया। इसके बाद सरकार ने बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद को समाप्त कर उसे बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में विलय कर दिया था। साथ ही, यह भी तय किया गया कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई डिग्री महाविद्यालयों से अलग कर दी जाएगी।

वर्ष 2006 में पटना विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में इंटरमीडिएट की पढ़ाई बंद कर दी गई और पटना के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में इसकी शुरुआत की गई। इसके बाद राज्य के सभी सरकारी माध्यमिक विद्यालयों को प्लस-टू में उत्क्रमित किया गया, जिससे इंटरमीडिएट की पढ़ाई वहां शुरू हो गई।

2007 में राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों के डिग्री महाविद्यालयों में भी इंटरमीडिएट की पढ़ाई बंद करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन डॉ. मदन मोहन झा के निधन के कारण यह निर्णय तुरंत लागू नहीं हो पाया। इसके बाद, राज्य की सभी पंचायतों में सरकारी विद्यालयों को प्लस-टू में उत्क्रमित कर इंटरमीडिएट की पढ़ाई की व्यवस्था की गई।

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