फाइलेरिया मरीजों को स्वच्छता और स्वयं की देखभाल का दिया गया प्रशिक्षण।
स्वास्थ्य विभाग का प्रयास: मरीजों को राहत और जागरूकता दोनों।
फाइलेरिया: एक गंभीर लेकिन रोके जाने योग्य बीमारी।
फाइलेरिया, जिसे हाथीपांव भी कहा जाता है, एक दीर्घकालिक और दर्दनाक बीमारी है, जो संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलती है। यह रोग शरीर के लसीका तंत्र (लिम्फैटिक सिस्टम) को प्रभावित करता है, जिससे हाथ, पैर या अन्य अंगों में असामान्य सूजन हो जाती है। उचित देखभाल और स्वच्छता से इस बीमारी के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
इसी उद्देश्य से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) दिघलबैंक में फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 12 रोगियों को मोरबिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट वितरित की गई। इस दौरान मरीजों को स्वयं की देखभाल (सेल्फ-केयर) के लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया गया।
मरीजों को दिया गया एमएमडीपी किट और प्रशिक्षण:
सीएचसी दिघलबैंक में आयोजित इस कार्यक्रम में 12 फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को एमएमडीपी किट दी गई, जिसमें डेटॉल साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, टब, मग, तौलिया और पट्टी जैसी स्वच्छता सामग्री शामिल थी।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मरीजों को बताया कि नियमित सफाई, प्रभावित अंगों की देखभाल और दवाओं का सही तरीके से उपयोग करने से संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, मरीजों को मालिश और व्यायाम के फायदे भी बताए गए, जिससे सूजन कम हो और उनकी दैनिक गतिविधियां सामान्य बनी रहें।
फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में स्वास्थ्य विभाग की पहल:
कार्यक्रम में मौजूद स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि फाइलेरिया मरीजों को सही देखभाल के साधन और जागरूकता देना बेहद जरूरी है।
एमओआईसी ने कहा कि “इस बीमारी से प्रभावित मरीजों को आत्मनिर्भर बनाना हमारा मुख्य उद्देश्य है, ताकि वे अपनी स्थिति को नियंत्रण में रख सकें और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके।”
बीएचएम ने बताया कि यह कार्यक्रम फाइलेरिया उन्मूलन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और इसमें हर मरीज को सही उपचार और जानकारी देना प्राथमिकता है।
समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत:
सिविल सर्जन डॉ. मंजर आलम ने बताया कि फाइलेरिया केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि समाज को प्रभावित करने वाला रोग है।
वीबीडीएस सर ने कहा कि “मच्छरों से बचाव, स्वच्छता और समय पर दवा लेने से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। समाज में इसको लेकर जागरूकता बढ़ाना जरूरी है।”
स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए इस प्रयास से मरीजों को राहत तो मिलेगी ही, साथ ही वे अपनी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आत्मनिर्भर भी बन सकेंगे। फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में यह एक और महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
राहुल कुमार, सारस न्यूज, किशनगंज।
फाइलेरिया मरीजों को स्वच्छता और स्वयं की देखभाल का दिया गया प्रशिक्षण।
स्वास्थ्य विभाग का प्रयास: मरीजों को राहत और जागरूकता दोनों।
फाइलेरिया: एक गंभीर लेकिन रोके जाने योग्य बीमारी।
फाइलेरिया, जिसे हाथीपांव भी कहा जाता है, एक दीर्घकालिक और दर्दनाक बीमारी है, जो संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलती है। यह रोग शरीर के लसीका तंत्र (लिम्फैटिक सिस्टम) को प्रभावित करता है, जिससे हाथ, पैर या अन्य अंगों में असामान्य सूजन हो जाती है। उचित देखभाल और स्वच्छता से इस बीमारी के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
इसी उद्देश्य से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) दिघलबैंक में फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 12 रोगियों को मोरबिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट वितरित की गई। इस दौरान मरीजों को स्वयं की देखभाल (सेल्फ-केयर) के लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया गया।
मरीजों को दिया गया एमएमडीपी किट और प्रशिक्षण:
सीएचसी दिघलबैंक में आयोजित इस कार्यक्रम में 12 फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को एमएमडीपी किट दी गई, जिसमें डेटॉल साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, टब, मग, तौलिया और पट्टी जैसी स्वच्छता सामग्री शामिल थी।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मरीजों को बताया कि नियमित सफाई, प्रभावित अंगों की देखभाल और दवाओं का सही तरीके से उपयोग करने से संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, मरीजों को मालिश और व्यायाम के फायदे भी बताए गए, जिससे सूजन कम हो और उनकी दैनिक गतिविधियां सामान्य बनी रहें।
फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में स्वास्थ्य विभाग की पहल:
कार्यक्रम में मौजूद स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि फाइलेरिया मरीजों को सही देखभाल के साधन और जागरूकता देना बेहद जरूरी है।
एमओआईसी ने कहा कि “इस बीमारी से प्रभावित मरीजों को आत्मनिर्भर बनाना हमारा मुख्य उद्देश्य है, ताकि वे अपनी स्थिति को नियंत्रण में रख सकें और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके।”
बीएचएम ने बताया कि यह कार्यक्रम फाइलेरिया उन्मूलन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और इसमें हर मरीज को सही उपचार और जानकारी देना प्राथमिकता है।
समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत:
सिविल सर्जन डॉ. मंजर आलम ने बताया कि फाइलेरिया केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि समाज को प्रभावित करने वाला रोग है।
वीबीडीएस सर ने कहा कि “मच्छरों से बचाव, स्वच्छता और समय पर दवा लेने से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। समाज में इसको लेकर जागरूकता बढ़ाना जरूरी है।”
स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए इस प्रयास से मरीजों को राहत तो मिलेगी ही, साथ ही वे अपनी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आत्मनिर्भर भी बन सकेंगे। फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में यह एक और महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।