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महिला संवाद: गांवों की बेटियां संजो रहीं हैं सपनों की उड़ान, नीतियों की ज़मीन पर बो रही हैं उम्मीदों के बीज।

राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।


किशनगंज – ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं अब केवल अपने घर-परिवार तक सीमित नहीं रहीं। वे अब अपनी और अपने समाज की प्रगति को लेकर मुखर हो रही हैं और अपने हक़ के लिए सशक्त स्वर में आवाज़ उठा रही हैं। कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई ‘महिला संवाद’ कार्यक्रम में, जहाँ पोठिया प्रखंड के बुधरा पंचायत की मेहनत ग्राम संगठन की नूरी बेगम ने शिक्षा की बदलती तस्वीर को बयां किया।

उन्होंने बच्चों को स्कूलों में मिलने वाली पोशाक, छात्रवृत्ति, साइकिल और मध्याह्न भोजन की सुविधाओं की सराहना की। साथ ही, उन्होंने हाई स्कूल के छात्रों के लिए टैबलेट वितरण की मांग भी रखी, ताकि ग्रामीण बच्चे आधुनिक तकनीक से जुड़कर ऑनलाइन शिक्षा के ज़रिए बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हो सकें। उन्होंने स्पष्ट कहा, “शिक्षा से ही जीवन बदलता है। जब हमारे गांव के बच्चों को पढ़ने की सुविधा मिलती है, तो आगे बढ़ने का रास्ता खुलता है।”

सरकारी योजनाएं बनीं सहारा
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना और मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना का ज़िक्र करते हुए बताया गया कि किस तरह ये योजनाएं बेटियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में आर्थिक सहारा दे रही हैं। बहादुरगंज प्रखंड के अलताबाड़ी पंचायत की महजबी बेगम ने स्थानीय स्तर पर सिलाई प्रशिक्षण एवं कपड़ा उत्पादन केंद्र खोलने की मांग रखी। उन्होंने कहा, “ऐसे केंद्रों से महिलाएं हुनर सीखकर स्वरोजगार की राह पकड़ सकती हैं।”

तकनीकी शिक्षा की मांग में उठी आवाज़
कोचाधामन प्रखंड की महिलाओं ने अपने क्षेत्र में आई.टी.आई. प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग की, ताकि युवतियां तकनीकी शिक्षा लेकर बेहतर अवसरों की ओर कदम बढ़ा सकें। वहीं दिघलबैंक प्रखंड के दहीभात पंचायत की नुसरत बेगम ने महिलाओं के लिए डिग्री कॉलेज स्थापित करने की मांग करते हुए कहा, “अगर कॉलेज पास में होगा तो लड़कियों की पढ़ाई आसानी से पूरी होगी।”

महिलाओं की आवाज़ बन रहा है ‘महिला संवाद’
यह कार्यक्रम न केवल महिलाओं को मंच दे रहा है, बल्कि उन्हें सुनने और समझने का अवसर भी प्रदान कर रहा है। ग्राम संगठन की महिलाएं तय समय पर इकट्ठा होकर गांव, पंचायत, प्रखंड और राज्य की प्रगति को लेकर अपनी राय रख रही हैं। वे निडर होकर संवाद में भाग ले रही हैं, और उनका आत्मविश्वास देखकर साफ होता है कि वे अपने परिवार और समाज को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

कार्यक्रम में जागरूकता वाहन के माध्यम से वीडियो फ़िल्मों द्वारा सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। महिलाओं की बातों को लिखित रूप में और मोबाइल एप के ज़रिए भी दर्ज किया जा रहा है, ताकि उनकी आवाज़ नीतिगत बदलावों में शामिल हो सके।


निष्कर्ष:
‘महिला संवाद’ सिर्फ़ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं की आकांक्षाओं को उड़ान देने वाला वह मंच बन चुका है, जहाँ वे खुद को और अपने समाज को नई दिशा देने की कोशिश में जुटी हैं। यह संवाद अब उम्मीदों की खेती कर रहा है – जिसकी फसल आने वाले कल में एक समृद्ध और आत्मनिर्भर समाज के रूप में सामने आएगी ।


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