सारस न्यूज, किशनगंज।
छूटे हुए परिवारों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए किशनगंज जिला के सभी गाँव–पंचायतों में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। समूह से जुड़कर गरीब ग्रामीण व शहरी परिवार लाभ ले सकते हैं। किशनगंज जिला में छूटे हुए ग्रामीण और शहरी परिवारों को जोड़ने के लिए सघनता से समूह निर्माण किया जा रहा है। इस प्रयास से छूटे हुए परिवार समूह से जुड़कर आर्थिक प्रगति के विभिन्न लाभ ले सकते हैं।
सातों प्रखंड में जीविका की सामुदायिक संसाधन सेवी एवं सामुदायिक उत्प्रेरक जीविका दीदियाँ, घर–घर जाकर सर्वेक्षण कार्य कर छूटे हुए परिवारों को समूह से जोड़ रही हैं। जीविका किशनगंज की जिला परियोजना प्रबंधक अनुराधा चंद्रा ने बताया कि सातों प्रखंड में छूटे हुए परिवारों को चिन्हित कर, स्वयं सहायता समूह से उनका जुड़ाव किया जा रहा है। इसके लिए जीविका कैडरों का पंचायत स्तर पर विशेष कार्यदल बनाया गया है। इन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया गया है।
उन्होंने बताया कि इस विशेष अभियान में सभी योग्य परिवारों को समूह से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। स्वयं सहायता समूह से सिर्फ महिला सदस्य का ही जुड़ाव किया जाता है। परिवार से सिर्फ एक महिला सदस्य समूह से जुड़ सकती है। पहचान और स्थायी निवास के रूप में आधार कार्ड व राशन कार्ड देकर समूह से जुड़ा जा सकता है। 18 से 60 वर्ष उम्र की महिलाएँ समूह से जुड़ सकती हैं।
इस प्रयास में अब तक ग्रामीण क्षेत्र में 758 स्वयं सहायता समूह का निर्माण किया गया है। तेरह हजार से अधिक परिवारों को समूह से जोड़ा गया है। वहीं, शहरी क्षेत्र में 50 स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं, जिससे लगभग 550 से अधिक छूटे हुए परिवार समूह से जुड़े हैं। जीविका के माध्यम से किशनगंज जिला की गरीब ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक–सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में कार्य किया जा रहा है। महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही हैं। समूह से कम ब्याज दर पर ऋण लेकर स्वरोजगार कर रही हैं। स्वयं सहायता समूह की विभिन्न निधियों से जीविका दीदियों को ऋण दिया जाता है। साथ ही बैंक से समूह का जुड़ाव कर ऋण दिया जाता है। आवश्यकता अनुसार जीविका दीदियाँ इसका इस्तेमाल अपने स्वरोजगार के लिए करती हैं।
जीविका दीदियों के क्षमतावर्धन के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण भी आयोजित किए जाते हैं। जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक लगभग 20,049 स्वयं सहायता समूह (SHG) का निर्माण किया गया है। इन समूहों से जुड़े 2,30,000 से अधिक परिवारों का क्षमतावर्धन कर उनके लिए जीविकोपार्जन के साधन विकसित किए जा रहे हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रों में लगभग 1,040 स्वयं सहायता समूहों का निर्माण किया गया है, जिससे 12,000 से अधिक परिवारों का जुड़ाव हुआ है।
इन सामुदायिक संगठनों के माध्यम से जीविका दीदियों को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। साप्ताहिक बैठक, बचत, आपसी लेन–देन, समय पर ऋण की वापसी और लेखांकन गतिविधियाँ खुद से करके, जीविका दीदियाँ स्वयं से स्वयं का विकास कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। इन गतिविधियों से वे पारदर्शी एवं दूरगामी उद्देश्यों को पूरा कर रही हैं।