सारस न्यूज, वेब डेस्क।
बिहार की राजनीति में सीमांचल एक बार फिर केंद्र बिंदु बन गया है। चार जिलों में फैले 24 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाने की होड़ में इस बार सिर्फ एनडीए और महागठबंधन ही नहीं, बल्कि जन सुराज पार्टी और AIMIM भी पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं। सीमांचल की राजनीति में बढ़ती हलचल ने पटना से लेकर दिल्ली तक के बड़े नेताओं को सक्रिय कर दिया है।
राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने जोश भर दिया
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने सीमांचल के सियासी तापमान को और चढ़ा दिया है। तीन जिलों के आठ विधानसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए राहुल गांधी ने न सिर्फ महागठबंधन की एकता का संदेश दिया, बल्कि आपसी मतभेद भुलाकर गठबंधन नेताओं को एक मंच पर लाने का काम भी किया। लंबे समय से एक-दूसरे से दूरी बनाए नेताओं को पहली बार मंच साझा करते और गलबहियां डालते देखा गया।
जनता से सीधे जुड़ाव की कोशिश
राहुल गांधी ने इस यात्रा के दौरान किसानों की समस्याएं, युवाओं की बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। केंद्र और राज्य सरकारों पर जमकर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जनता के अधिकारों की लड़ाई अब सड़क से संसद तक लड़ी जाएगी। उनकी यात्रा ने सीमांचल के कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी है।
नई पार्टियों की एंट्री से मुकाबला दिलचस्प
इस बार का चुनावी मुकाबला सिर्फ एनडीए और महागठबंधन तक सीमित नहीं है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी सीमांचल में मजबूत दावेदारी पेश कर रही हैं। दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों और मुद्दों के साथ क्षेत्र में गहरी पकड़ बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं।
सीमांचल: अगला चुनावी रणभूमि
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सीमांचल की सीटें बिहार की सत्ता की चाबी बन सकती हैं। यही वजह है कि सभी दल यहां अपने बड़े नेताओं को मैदान में उतार रहे हैं और घर-घर दस्तक देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। आने वाले हफ्तों में सीमांचल का सियासी पारा और चढ़ने की पूरी संभावना है।