बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान होते ही प्रदेश की सियासत ने रफ्तार पकड़ ली है। खासतौर पर सीमांचल और कोसी इलाके, जो मुस्लिम बहुल आबादी वाले माने जाते हैं, वहां राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है।
इस बार AIMIM पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर सीमांचल की उन सीटों पर है, जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। 2020 में मिली सफलता ने पार्टी को इस क्षेत्र में आत्मविश्वास से भर दिया है। हालांकि, 2020 की सफलता के बाद हुए उपचुनावों और विधायक टूटने की घटनाओं से AIMIM को झटका जरूर लगा, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी का फोकस एक बार फिर सीमांचल पर है।
INDIA गठबंधन से बाहर, AIMIM का अलग रास्ता
गौरतलब है कि AIMIM को अब तक INDIA गठबंधन में शामिल नहीं किया गया है। सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन के कई दल AIMIM को अपने वोटबैंक में सेंध लगाने वाली पार्टी मानते हैं और इसलिए उसे साथ लाने से बचते हैं। यही वजह है कि AIMIM इस बार अकेले अपने दम पर सीमांचल और कोसी की सीटों पर चुनावी जंग लड़ने की रणनीति बना रही है।
एनडीए और इंडिया गठबंधन के लिए चुनौती बनेगा सीमांचल?
सीमांचल हमेशा से बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाता आया है। मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या होने के कारण यह इलाका हर चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए खास मायने रखता है। एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों ही गुट सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
AIMIM के उभार ने इन दोनों गठबंधनों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। जहां INDIA गठबंधन को मुस्लिम वोटों के बिखरने का डर है, वहीं एनडीए को इस इलाके में अपनी कमजोर स्थिति का एहसास है। बीजेपी और जेडीयू का सीमांचल में जनाधार सीमित रहा है, ऐसे में NDA भी यहां नए समीकरण बनाने में लगा है।
नेताओं की सीमांचल यात्राएं तेज
चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सीमांचल के जिलों—जैसे अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया—में नेताओं की आवाजाही बढ़ गई है। रैलियों, सभाओं और जनसंपर्क कार्यक्रमों के ज़रिए सभी दल मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी जल्द ही सीमांचल का दौरा करने वाले हैं, जहां वे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ रणनीति तय करेंगे।
क्या सीमांचल में फिर चलेगा AIMIM का जादू?
2020 में सीमांचल की जिन पांच सीटों पर AIMIM ने जीत दर्ज की थी, वहां पार्टी ने सामाजिक न्याय और मुस्लिम हितों की बात कर लोगों को अपने साथ जोड़ा था। हालांकि बाद में इन सीटों में से कई पर टूट हुई और विधायक RJD में चले गए। लेकिन ओवैसी ने इसे साजिश करार देते हुए फिर से मजबूती से वापसी का दावा किया है।
अब देखना यह होगा कि 2025 के चुनाव में AIMIM सीमांचल में फिर से अपनी पकड़ बना पाती है या नहीं। फिलहाल, राजनीतिक तापमान बढ़ चुका है और सीमांचल एक बार फिर बिहार चुनाव की सियासी धुरी बनता दिख रहा है।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान होते ही प्रदेश की सियासत ने रफ्तार पकड़ ली है। खासतौर पर सीमांचल और कोसी इलाके, जो मुस्लिम बहुल आबादी वाले माने जाते हैं, वहां राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है।
इस बार AIMIM पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर सीमांचल की उन सीटों पर है, जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। 2020 में मिली सफलता ने पार्टी को इस क्षेत्र में आत्मविश्वास से भर दिया है। हालांकि, 2020 की सफलता के बाद हुए उपचुनावों और विधायक टूटने की घटनाओं से AIMIM को झटका जरूर लगा, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी का फोकस एक बार फिर सीमांचल पर है।
INDIA गठबंधन से बाहर, AIMIM का अलग रास्ता
गौरतलब है कि AIMIM को अब तक INDIA गठबंधन में शामिल नहीं किया गया है। सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन के कई दल AIMIM को अपने वोटबैंक में सेंध लगाने वाली पार्टी मानते हैं और इसलिए उसे साथ लाने से बचते हैं। यही वजह है कि AIMIM इस बार अकेले अपने दम पर सीमांचल और कोसी की सीटों पर चुनावी जंग लड़ने की रणनीति बना रही है।
एनडीए और इंडिया गठबंधन के लिए चुनौती बनेगा सीमांचल?
सीमांचल हमेशा से बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाता आया है। मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या होने के कारण यह इलाका हर चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए खास मायने रखता है। एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों ही गुट सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
AIMIM के उभार ने इन दोनों गठबंधनों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। जहां INDIA गठबंधन को मुस्लिम वोटों के बिखरने का डर है, वहीं एनडीए को इस इलाके में अपनी कमजोर स्थिति का एहसास है। बीजेपी और जेडीयू का सीमांचल में जनाधार सीमित रहा है, ऐसे में NDA भी यहां नए समीकरण बनाने में लगा है।
नेताओं की सीमांचल यात्राएं तेज
चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सीमांचल के जिलों—जैसे अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया—में नेताओं की आवाजाही बढ़ गई है। रैलियों, सभाओं और जनसंपर्क कार्यक्रमों के ज़रिए सभी दल मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी जल्द ही सीमांचल का दौरा करने वाले हैं, जहां वे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ रणनीति तय करेंगे।
क्या सीमांचल में फिर चलेगा AIMIM का जादू?
2020 में सीमांचल की जिन पांच सीटों पर AIMIM ने जीत दर्ज की थी, वहां पार्टी ने सामाजिक न्याय और मुस्लिम हितों की बात कर लोगों को अपने साथ जोड़ा था। हालांकि बाद में इन सीटों में से कई पर टूट हुई और विधायक RJD में चले गए। लेकिन ओवैसी ने इसे साजिश करार देते हुए फिर से मजबूती से वापसी का दावा किया है।
अब देखना यह होगा कि 2025 के चुनाव में AIMIM सीमांचल में फिर से अपनी पकड़ बना पाती है या नहीं। फिलहाल, राजनीतिक तापमान बढ़ चुका है और सीमांचल एक बार फिर बिहार चुनाव की सियासी धुरी बनता दिख रहा है।
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