बिहार के सीमांचल इलाके — जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिले शामिल हैं — में इस बार विधानसभा चुनाव से पहले एक नया राजनीतिक समीकरण बनता नजर आ रहा है। जन सुराज पार्टी (JSP) के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इस क्षेत्र को अपने चुनावी अभियान का केंद्र बना लिया है। यह इलाका राज्य में मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है, जहां अब तक राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस का वर्चस्व कायम रहा है।
सीमांचल में JSP की रणनीति
प्रशांत किशोर इस क्षेत्र में पहचान की राजनीति की बजाय सुशासन, शिक्षा और विकास की बात कर रहे हैं। पार्टी के शुरुआती उम्मीदवारों की सूची में कई मुस्लिम चेहरे शामिल हैं, जिससे JSP यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह अल्पसंख्यकों को साझेदारी में हिस्सेदार बनाना चाहती है, न कि केवल समर्थन का साधन।
किशनगंज के कारोबारी अबू जफर का कहना है कि “पिछले कुछ महीनों में प्रशांत किशोर की जन सभाएं अररिया, जोकीहाट और किशनगंज में बड़ी संख्या में भीड़ जुटा रही हैं। खासकर युवाओं में उनकी बातों को लेकर दिलचस्पी है। उनका संदेश साफ है – विकास, शिक्षा और प्रतिनिधित्व। हालांकि, भीड़ को वोट में बदलना आसान नहीं होगा।”
गहराई तक जमी पुरानी निष्ठा
सीमांचल का चुनावी माहौल जटिल है। यहां मतदाता कई बार स्थानीय मौलानाओं, व्यापारियों और मुखियाओं के प्रभाव में मतदान करते हैं। RJD, कांग्रेस और AIMIM जैसी पार्टियां वर्षों से इन नेटवर्कों के सहारे अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। JSP की चुनौती यह है कि वह इस ‘जिज्ञासा’ को वास्तविक समर्थन में कैसे बदले।
किशनगंज के बुजुर्ग दर्जी मोहम्मद हफीज़ का कहना है, “शहरी मुस्लिमों और पहली बार वोट देने वालों में JSP को लेकर उत्साह दिख रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पुरानी निष्ठा अब भी कायम है। बहुत से मुसलमान JSP को विकल्प के रूप में देख रहे हैं, मगर उन्हें डर है कि वोटों का बिखराव बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है।”
JSP का असर और विपक्ष के लिए खतरा
स्वतंत्र उम्मीदवार परवेज़ आलम का कहना है कि अगर JSP को अररिया या किशनगंज में मुसलमानों के सिर्फ 10% वोट भी मिल जाते हैं, तो यह INDIA गठबंधन के लिए परेशानी बन सकता है। “भले ही JSP सीट न जीत पाए, लेकिन वह नतीजों की गणित को जरूर प्रभावित करेगी,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे जोड़ा कि दशकों से सीमांचल के मतदाता धर्मनिरपेक्ष दलों को बीजेपी को रोकने के लिए समर्थन देते आए हैं, लेकिन JSP का विकास केंद्रित एजेंडा इस एकजुटता को तोड़ सकता है।
किशनगंज कॉलेज के छात्र मोहम्मद जमाल कहते हैं, “अब लोग चाहते हैं कि कोई ऐसी सरकार बने जो सबके लिए काम करे। नेताओं ने अब तक हमारे वोट की बात की है, भविष्य की नहीं।”
नई सोच वाले मुस्लिम वोटर को साधने की कोशिश
कोचाधामन से JSP प्रत्याशी अबू अफ़्फान फ़ारूक़ का कहना है कि प्रशांत किशोर शिक्षित और आकांक्षी मुस्लिम युवाओं पर दांव लगा रहे हैं। “PK का संदेश युवाओं में गूंज रहा है। वह ऐसे मुसलमानों को साथ लाना चाहते हैं जो न तो आरजेडी की जातिगत राजनीति से जुड़ पाते हैं, न बीजेपी की बहुसंख्यकवादी सोच से।”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद करीम का मानना है कि अगर जन सुराज मुस्लिम वोटों का थोड़ा भी हिस्सा खींचने में सफल होता है, तो सबसे बड़ा फायदा NDA को हो सकता है। “2020 के चुनाव में कई NDA उम्मीदवार बेहद कम अंतर से जीते थे। अगर इस बार विपक्षी वोट बंटे, तो कई सीटों पर सत्ता समीकरण बदल सकता है,” उन्होंने कहा।
सीमांचल में बढ़ती दिलचस्पी
फिलहाल सीमांचल JSP के प्रति उत्सुक तो है, पर आश्वस्त नहीं। प्रशांत किशोर की सभाओं में भारी भीड़ जुट रही है, लोग सवाल भी पूछ रहे हैं और ध्यान से सुन भी रहे हैं। लेकिन क्या यह जिज्ञासा 11 नवंबर को वोट में तब्दील होगी — यही तय करेगा कि जन सुराज बिहार की राजनीति में तीसरी ताकत बन पाएगी या नहीं।
सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
बिहार के सीमांचल इलाके — जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिले शामिल हैं — में इस बार विधानसभा चुनाव से पहले एक नया राजनीतिक समीकरण बनता नजर आ रहा है। जन सुराज पार्टी (JSP) के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इस क्षेत्र को अपने चुनावी अभियान का केंद्र बना लिया है। यह इलाका राज्य में मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है, जहां अब तक राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस का वर्चस्व कायम रहा है।
सीमांचल में JSP की रणनीति
प्रशांत किशोर इस क्षेत्र में पहचान की राजनीति की बजाय सुशासन, शिक्षा और विकास की बात कर रहे हैं। पार्टी के शुरुआती उम्मीदवारों की सूची में कई मुस्लिम चेहरे शामिल हैं, जिससे JSP यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह अल्पसंख्यकों को साझेदारी में हिस्सेदार बनाना चाहती है, न कि केवल समर्थन का साधन।
किशनगंज के कारोबारी अबू जफर का कहना है कि “पिछले कुछ महीनों में प्रशांत किशोर की जन सभाएं अररिया, जोकीहाट और किशनगंज में बड़ी संख्या में भीड़ जुटा रही हैं। खासकर युवाओं में उनकी बातों को लेकर दिलचस्पी है। उनका संदेश साफ है – विकास, शिक्षा और प्रतिनिधित्व। हालांकि, भीड़ को वोट में बदलना आसान नहीं होगा।”
गहराई तक जमी पुरानी निष्ठा
सीमांचल का चुनावी माहौल जटिल है। यहां मतदाता कई बार स्थानीय मौलानाओं, व्यापारियों और मुखियाओं के प्रभाव में मतदान करते हैं। RJD, कांग्रेस और AIMIM जैसी पार्टियां वर्षों से इन नेटवर्कों के सहारे अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। JSP की चुनौती यह है कि वह इस ‘जिज्ञासा’ को वास्तविक समर्थन में कैसे बदले।
किशनगंज के बुजुर्ग दर्जी मोहम्मद हफीज़ का कहना है, “शहरी मुस्लिमों और पहली बार वोट देने वालों में JSP को लेकर उत्साह दिख रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पुरानी निष्ठा अब भी कायम है। बहुत से मुसलमान JSP को विकल्प के रूप में देख रहे हैं, मगर उन्हें डर है कि वोटों का बिखराव बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है।”
JSP का असर और विपक्ष के लिए खतरा
स्वतंत्र उम्मीदवार परवेज़ आलम का कहना है कि अगर JSP को अररिया या किशनगंज में मुसलमानों के सिर्फ 10% वोट भी मिल जाते हैं, तो यह INDIA गठबंधन के लिए परेशानी बन सकता है। “भले ही JSP सीट न जीत पाए, लेकिन वह नतीजों की गणित को जरूर प्रभावित करेगी,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे जोड़ा कि दशकों से सीमांचल के मतदाता धर्मनिरपेक्ष दलों को बीजेपी को रोकने के लिए समर्थन देते आए हैं, लेकिन JSP का विकास केंद्रित एजेंडा इस एकजुटता को तोड़ सकता है।
किशनगंज कॉलेज के छात्र मोहम्मद जमाल कहते हैं, “अब लोग चाहते हैं कि कोई ऐसी सरकार बने जो सबके लिए काम करे। नेताओं ने अब तक हमारे वोट की बात की है, भविष्य की नहीं।”
नई सोच वाले मुस्लिम वोटर को साधने की कोशिश
कोचाधामन से JSP प्रत्याशी अबू अफ़्फान फ़ारूक़ का कहना है कि प्रशांत किशोर शिक्षित और आकांक्षी मुस्लिम युवाओं पर दांव लगा रहे हैं। “PK का संदेश युवाओं में गूंज रहा है। वह ऐसे मुसलमानों को साथ लाना चाहते हैं जो न तो आरजेडी की जातिगत राजनीति से जुड़ पाते हैं, न बीजेपी की बहुसंख्यकवादी सोच से।”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद करीम का मानना है कि अगर जन सुराज मुस्लिम वोटों का थोड़ा भी हिस्सा खींचने में सफल होता है, तो सबसे बड़ा फायदा NDA को हो सकता है। “2020 के चुनाव में कई NDA उम्मीदवार बेहद कम अंतर से जीते थे। अगर इस बार विपक्षी वोट बंटे, तो कई सीटों पर सत्ता समीकरण बदल सकता है,” उन्होंने कहा।
सीमांचल में बढ़ती दिलचस्पी
फिलहाल सीमांचल JSP के प्रति उत्सुक तो है, पर आश्वस्त नहीं। प्रशांत किशोर की सभाओं में भारी भीड़ जुट रही है, लोग सवाल भी पूछ रहे हैं और ध्यान से सुन भी रहे हैं। लेकिन क्या यह जिज्ञासा 11 नवंबर को वोट में तब्दील होगी — यही तय करेगा कि जन सुराज बिहार की राजनीति में तीसरी ताकत बन पाएगी या नहीं।
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