सारस न्यूज़,वेब डेस्क।
अमेरिका में इस साल भारत की शीर्ष 7 आईटी कंपनियों को नए H-1B वीज़ा के लिए सिर्फ 4,573 मंजूरियां मिली हैं। यह आंकड़ा 2015 की तुलना में करीब 70% कम और पिछले साल से 37% नीचे है। नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि नए कर्मचारियों के लिए टॉप-5 कंपनियों में अब सिर्फ टीसीएस ही एकमात्र भारतीय कंपनी बची है। पुराने कर्मचारियों के वीज़ा नवीनीकरण में भी टीसीएस टॉप-5 में शामिल है, हालांकि उसका रिजेक्शन रेट पिछले साल के 4% से बढ़कर इस साल 7% पहुंच गया है—जो अन्य कंपनियों की तुलना में बड़ा है। इसका मतलब साफ है कि अमेरिकी वीज़ा सिस्टम भारतीय आईटी कंपनियों के लिए पहले से ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है।
पुराने वीज़ा नवीनीकरण में बढ़ी कठिनाई
अमेरिका ने इस साल पुराने कर्मचारियों के H-1B वीज़ा रिन्यू करने में सिर्फ 1.9% आवेदन ही खारिज किए। इसके बावजूद भारतीय कंपनियों में अकेले टीसीएस ही बड़ी संख्या में आवेदन आगे बढ़ाने में सफल रही, जिसने पुराने कर्मचारियों के 5,293 वीज़ा रिन्यू कराए। लेकिन नए कर्मचारियों के लिए तस्वीर बिल्कुल अलग दिखी—टीसीएस को सिर्फ 846 नए H-1B मिले, जबकि पिछले साल यह संख्या 1,452 थी। 2023 में भी यह 1,174 थी। हालांकि टीसीएस की नए आवेदन पर रिजेक्शन दर सिर्फ 2% रही, जो काफी कम मानी जाती है।
बड़ी कंपनियों का हाल
नई भर्ती के H-1B आवेदन इस साल कई कंपनियों के लिए मुश्किल साबित हुए।
- TCS — 2% रिजेक्शन
- HCL America — 6% रिजेक्शन
- LTI-Mindtree — 5% रिजेक्शन
- Capgemini — 4% रिजेक्शन
वहीं इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों के पुराने वीज़ा रिन्यूअल में 1–2% ही आवेदन खारिज हुए।
H-1B सिस्टम में बदलाव के संकेत
इमिग्रेशन प्लेटफॉर्म बियॉन्ड बॉर्डर के मुताबिक पिछले चार सालों से “सॉफ्टवेयर इंजीनियर” कैटेगरी में लेबर सर्टिफिकेशन के स्तर पर ही मंजूरी दर घटती जा रही है। यानी शुरुआती स्क्रीनिंग में ही भारतीय आवेदकों को रोका जा रहा है। कंपनी की लीगल हेड कामिला फसान्हा का कहना है कि H-1B प्रक्रिया अब पहले की तुलना में ज्यादा सख्त और लंबी हो गई है—खासतौर पर टेक और सॉफ्टवेयर से जुड़े रोल्स के लिए। उनका मानना है कि मौजूदा हालात देखकर ऐसा लगता है कि पूरा सिस्टम भारतीय तकनीकी पेशेवरों के प्रति कम अनुकूल होता जा रहा है।
क्यों महत्वपूर्ण है H-1B?
H-1B वीज़ा भारतीयों के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों का लगभग एक-चौथाई हिस्सा इन्हीं वीज़ा धारकों और उनके परिवारों से बना है। भारतीय आईटी कंपनियां—जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो—लंबे समय से जूनियर और मिडिल लेवल इंजीनियरों को अमेरिकी क्लाइंट लोकेशन पर भेजने के लिए इसी वीज़ा का उपयोग करती रही हैं। आज भी अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट जैसी वैश्विक कंपनियां भारतीय टैलेंट को अमेरिका बुलाने के लिए H-1B पर निर्भर हैं। यही कारण है कि यह वीज़ा भारतीय इंजीनियरों के लिए अमेरिका की नौकरियों का सबसे बड़ा रास्ता माना जाता है।
