शिशु के संपूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास में स्तनपान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। जन्म के पहले ही घंटे में माँ का दूध मिलना बच्चे के जीवन की वह खूबसूरत और सुरक्षित शुरुआत है, जो उसे अनेक बीमारियों से बचाने की प्राकृतिक क्षमता देती है। वर्तमान समय में कई परिवार जन्म के तुरंत बाद बच्चों को पैकेट वाला दूध देना शुरू कर देते हैं और छह माह से पहले ही अतिरिक्त आहार भी देना प्रारम्भ कर देते हैं, जिससे नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है। यह प्रवृत्ति न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बाधक बनती है, बल्कि आगे चलकर बीमारियों की संभावना भी बढ़ाती है।
माँ का दूध: डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से बचाव की प्राकृतिक ढाल
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी कहते हैं कि माँ का दूध शिशु के लिए सिर्फ पोषण नहीं, बल्कि जीवन रक्षक सुरक्षा कवच है। उनके अनुसार जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू कराने से शिशु मृत्यु दर में लगभग 20 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। छह माह तक केवल स्तनपान करवाने से बच्चों में डायरिया और निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है। डॉ. चौधरी बताते हैं कि लंबे समय तक स्तनपान करने वाले बच्चों का बुद्धि स्तर भी अधिक पाया जाता है, जबकि स्तनपान माताओं में स्तन कैंसर के खतरे को कम करने में भी सहायक है। माँ के दूध की यही विशिष्टता उसे शिशु के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार बनाती है।
स्तनपान को सफल बनाने में परिवार, विशेषकर पिता की भूमिका अहम
स्तनपान को लेकर केवल माँ का प्रयास ही काफी नहीं होता। परिवार का सहयोग, विशेष रूप से पिता की जागरूकता और संवेदनशीलता, इसके सफल क्रियान्वयन में अत्यंत आवश्यक है। डॉ. चौधरी बताते हैं कि प्रसव पूर्व जांच से लेकर जन्म के बाद की शुरुआती अवधि तक माता-पिता को जागरूक करना जरूरी है, ताकि माँ को वह वातावरण मिल सके जिसमें वह बच्चे को नियमित रूप से स्तनपान करा सके। जब पिता और परिवार समझदारी दिखाते हैं, तो माँ को न केवल भावनात्मक सहारा मिलता है, बल्कि शिशु को सही समय पर सही पोषण भी प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) के अनुसार किशनगंज जिले में स्थिति अभी भी चिंताजनक है। जन्म के बाद पहले एक घंटे के भीतर गाढ़ा पीला दूध केवल 30.1 प्रतिशत बच्चों को मिलता है, जबकि छह माह तक केवल स्तनपान कराने का आँकड़ा 66.8 प्रतिशत पर ही सिमटा हुआ है। छह से आठ माह के बीच केवल 40.8 प्रतिशत बच्चों को ही स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार मिल पाता है, जबकि छह से तेइस माह की आयु के बच्चों में यह आँकड़ा गिरकर मात्र 9.5 प्रतिशत रह जाता है।
स्वस्थ पीढ़ी के लिए स्तनपान की निरंतरता अनिवार्य
बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य, कम बीमारियों और सुरक्षित भविष्य के लिए जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की शुरुआत, छह माह तक केवल स्तनपान, तथा दो साल तक स्तनपान की निरंतरता अनिवार्य मानी जाती है। स्तनपान न केवल शिशु के शरीर को मज़बूत बनाता है, बल्कि मानसिक विकास, रोग प्रतिरोधक क्षमता और सुरक्षित भविष्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
राहुल कुमार, सारस न्यूज, किशनगंज।
शिशु के संपूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास में स्तनपान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। जन्म के पहले ही घंटे में माँ का दूध मिलना बच्चे के जीवन की वह खूबसूरत और सुरक्षित शुरुआत है, जो उसे अनेक बीमारियों से बचाने की प्राकृतिक क्षमता देती है। वर्तमान समय में कई परिवार जन्म के तुरंत बाद बच्चों को पैकेट वाला दूध देना शुरू कर देते हैं और छह माह से पहले ही अतिरिक्त आहार भी देना प्रारम्भ कर देते हैं, जिससे नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है। यह प्रवृत्ति न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बाधक बनती है, बल्कि आगे चलकर बीमारियों की संभावना भी बढ़ाती है।
माँ का दूध: डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से बचाव की प्राकृतिक ढाल
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी कहते हैं कि माँ का दूध शिशु के लिए सिर्फ पोषण नहीं, बल्कि जीवन रक्षक सुरक्षा कवच है। उनके अनुसार जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू कराने से शिशु मृत्यु दर में लगभग 20 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। छह माह तक केवल स्तनपान करवाने से बच्चों में डायरिया और निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है। डॉ. चौधरी बताते हैं कि लंबे समय तक स्तनपान करने वाले बच्चों का बुद्धि स्तर भी अधिक पाया जाता है, जबकि स्तनपान माताओं में स्तन कैंसर के खतरे को कम करने में भी सहायक है। माँ के दूध की यही विशिष्टता उसे शिशु के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार बनाती है।
स्तनपान को सफल बनाने में परिवार, विशेषकर पिता की भूमिका अहम
स्तनपान को लेकर केवल माँ का प्रयास ही काफी नहीं होता। परिवार का सहयोग, विशेष रूप से पिता की जागरूकता और संवेदनशीलता, इसके सफल क्रियान्वयन में अत्यंत आवश्यक है। डॉ. चौधरी बताते हैं कि प्रसव पूर्व जांच से लेकर जन्म के बाद की शुरुआती अवधि तक माता-पिता को जागरूक करना जरूरी है, ताकि माँ को वह वातावरण मिल सके जिसमें वह बच्चे को नियमित रूप से स्तनपान करा सके। जब पिता और परिवार समझदारी दिखाते हैं, तो माँ को न केवल भावनात्मक सहारा मिलता है, बल्कि शिशु को सही समय पर सही पोषण भी प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) के अनुसार किशनगंज जिले में स्थिति अभी भी चिंताजनक है। जन्म के बाद पहले एक घंटे के भीतर गाढ़ा पीला दूध केवल 30.1 प्रतिशत बच्चों को मिलता है, जबकि छह माह तक केवल स्तनपान कराने का आँकड़ा 66.8 प्रतिशत पर ही सिमटा हुआ है। छह से आठ माह के बीच केवल 40.8 प्रतिशत बच्चों को ही स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार मिल पाता है, जबकि छह से तेइस माह की आयु के बच्चों में यह आँकड़ा गिरकर मात्र 9.5 प्रतिशत रह जाता है।
स्वस्थ पीढ़ी के लिए स्तनपान की निरंतरता अनिवार्य
बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य, कम बीमारियों और सुरक्षित भविष्य के लिए जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की शुरुआत, छह माह तक केवल स्तनपान, तथा दो साल तक स्तनपान की निरंतरता अनिवार्य मानी जाती है। स्तनपान न केवल शिशु के शरीर को मज़बूत बनाता है, बल्कि मानसिक विकास, रोग प्रतिरोधक क्षमता और सुरक्षित भविष्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।