बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के निधन की खबर जैसे ही देशभर में फैली, शोक की एक भारी लहर उठी। भारत के कोने-कोने में लोग भावुक हो गए, लेकिन फारबिसगंज का सिख समुदाय इस खबर से विशेष रूप से मर्माहत दिखा। उनका दुख सिर्फ अभिनेता के प्रति सम्मान भर नहीं था, बल्कि उनसे जुड़े गहरे व्यक्तिगत रिश्तों की वजह से भी था।
वर्ष 1970 में ‘डागडर बाबू’ फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र करीब चार से पाँच दिनों तक फारबिसगंज में ही ठहरे थे। उस दौरान उन्होंने स्थानीय सिख परिवारों के साथ ऐसा अपनापन बनाया कि आज भी वे पल वहां के लोगों की यादों में ताज़ा हैं।
धर्मेंद्र यहां सिख परिवार जोगिंदर आहूजा के पुत्र देशराज आहूजा के घर अतिथि बनकर रहे थे। परिवार के सदस्यों के अनुसार, अभिनेता का स्वभाव बेहद सरल, विनम्र और अपनत्व से भरा हुआ था। घर के सभी लोगों से वे सहज रूप से घुलमिल गए थे।
इसके साथ ही, धर्मेंद्र ने स्वर्गीय सरदार सुजान सिंह के घर भी भोजन किया था। परिवारजन आज भी गर्व से बताते हैं कि इतने बड़े सितारे ने उनके घर आकर साधारण भोजन को भी बड़े प्रेम से स्वीकार किया था। उस समय के साथ बिताए हुए पलों की तस्वीरें, पत्र और स्मृतियाँ आज भी इन परिवारों के पास संजोकर रखी हुई हैं, जिन्हें वे कभी-कभी गर्व और भावुकता के साथ दिखाते हैं।
अभिनेता के निधन की खबर मिलते ही फारबिसगंज के इन परिवारों में गहरा शोक फैल गया। जोगिंदर आहूजा परिवार के सदस्यों ने बताया कि धर्मेंद्र सिर्फ एक स्टार नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा बन गए थे। उनके निधन से ऐसा लगता है जैसे अपना कोई बहुत करीबी खो दिया हो।
स्थानीय गुरुद्वारा में भी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई, जहाँ सिख समुदाय के लोगों ने धर्मेंद्र की आत्मा की शांति के लिए अरदास की। समुदाय के बुजुर्गों ने कहा कि धर्मेंद्र के विनम्र स्वभाव, सादगी और लोगों से जुड़ने की उनकी कला ने उन्हें हमेशा के लिए दिलों में बसाया।
धर्मेंद्र भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन फारबिसगंज की इन गलियों और उन परिवारों की यादों में उनका स्नेह, उनकी मुस्कान और उनके साथ बिताए पल हमेशा अमर रहेंगे।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के निधन की खबर जैसे ही देशभर में फैली, शोक की एक भारी लहर उठी। भारत के कोने-कोने में लोग भावुक हो गए, लेकिन फारबिसगंज का सिख समुदाय इस खबर से विशेष रूप से मर्माहत दिखा। उनका दुख सिर्फ अभिनेता के प्रति सम्मान भर नहीं था, बल्कि उनसे जुड़े गहरे व्यक्तिगत रिश्तों की वजह से भी था।
वर्ष 1970 में ‘डागडर बाबू’ फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र करीब चार से पाँच दिनों तक फारबिसगंज में ही ठहरे थे। उस दौरान उन्होंने स्थानीय सिख परिवारों के साथ ऐसा अपनापन बनाया कि आज भी वे पल वहां के लोगों की यादों में ताज़ा हैं।
धर्मेंद्र यहां सिख परिवार जोगिंदर आहूजा के पुत्र देशराज आहूजा के घर अतिथि बनकर रहे थे। परिवार के सदस्यों के अनुसार, अभिनेता का स्वभाव बेहद सरल, विनम्र और अपनत्व से भरा हुआ था। घर के सभी लोगों से वे सहज रूप से घुलमिल गए थे।
इसके साथ ही, धर्मेंद्र ने स्वर्गीय सरदार सुजान सिंह के घर भी भोजन किया था। परिवारजन आज भी गर्व से बताते हैं कि इतने बड़े सितारे ने उनके घर आकर साधारण भोजन को भी बड़े प्रेम से स्वीकार किया था। उस समय के साथ बिताए हुए पलों की तस्वीरें, पत्र और स्मृतियाँ आज भी इन परिवारों के पास संजोकर रखी हुई हैं, जिन्हें वे कभी-कभी गर्व और भावुकता के साथ दिखाते हैं।
अभिनेता के निधन की खबर मिलते ही फारबिसगंज के इन परिवारों में गहरा शोक फैल गया। जोगिंदर आहूजा परिवार के सदस्यों ने बताया कि धर्मेंद्र सिर्फ एक स्टार नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा बन गए थे। उनके निधन से ऐसा लगता है जैसे अपना कोई बहुत करीबी खो दिया हो।
स्थानीय गुरुद्वारा में भी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई, जहाँ सिख समुदाय के लोगों ने धर्मेंद्र की आत्मा की शांति के लिए अरदास की। समुदाय के बुजुर्गों ने कहा कि धर्मेंद्र के विनम्र स्वभाव, सादगी और लोगों से जुड़ने की उनकी कला ने उन्हें हमेशा के लिए दिलों में बसाया।
धर्मेंद्र भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन फारबिसगंज की इन गलियों और उन परिवारों की यादों में उनका स्नेह, उनकी मुस्कान और उनके साथ बिताए पल हमेशा अमर रहेंगे।
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