भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं बिहार कांग्रेस प्रदेश प्रतिनिधि मासूम रेजा ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और राज्यसभा सदस्य दिनेश शर्मा द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर दिए गए आपत्तिजनक बयानों की कड़ी निंदा की है।
मासूम रेजा ने कहा कि यह केवल एक बयान नहीं, बल्कि भारत के संवैधानिक मूल्यों पर सीधा प्रहार है। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र की आत्मा है। यदि कोई जनप्रतिनिधि यह कहता है कि धार्मिक युद्ध और गृह युद्ध के लिए सुप्रीम कोर्ट या मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं, तो यह न केवल असंवैधानिक है बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने की साजिश है।”
उन्होंने कहा कि इस तरह की भाषा न केवल घृणा और हिंसा को बढ़ावा देती है, बल्कि भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध की श्रेणी में आती है।
राज्यसभा सदस्य दिनेश शर्मा के बयान पर टिप्पणी करते हुए मासूम रेजा ने कहा, “महामहिम राष्ट्रपति सर्वोच्च पद पर अवश्य हैं, लेकिन भारत का संविधान सर्वोच्च है। यह बयान संविधानिक अज्ञानता का परिचायक है और भारतीय गणराज्य की मूल भावना के खिलाफ है।”
उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को संतुलित अधिकार दिए गए हैं, ताकि कोई भी संस्था निरंकुश न बन सके।
मासूम रेजा ने कहा कि भाजपा का एक वर्ग लगातार लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक संस्थाओं और जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस प्रकार के बयान न केवल न्यायपालिका को डराने का प्रयास हैं, बल्कि जनता के बीच संविधान के प्रति विश्वास को कमजोर करने की कोशिश हैं।
उन्होंने चार प्रमुख मांगें रखीं:
निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा देश से और सर्वोच्च न्यायालय से सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।
भाजपा इन बयानों से स्पष्ट रूप से किनारा करे और इन नेताओं के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करे।
संसद एवं न्यायपालिका इन बयानों को गंभीरता से लेकर उचित कानूनी कार्रवाई करें।
भारत के राष्ट्रपति एवं मुख्य न्यायाधीश इस प्रवृत्ति पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया दें और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।
सारस न्यूज़, अररिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं बिहार कांग्रेस प्रदेश प्रतिनिधि मासूम रेजा ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और राज्यसभा सदस्य दिनेश शर्मा द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर दिए गए आपत्तिजनक बयानों की कड़ी निंदा की है।
मासूम रेजा ने कहा कि यह केवल एक बयान नहीं, बल्कि भारत के संवैधानिक मूल्यों पर सीधा प्रहार है। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र की आत्मा है। यदि कोई जनप्रतिनिधि यह कहता है कि धार्मिक युद्ध और गृह युद्ध के लिए सुप्रीम कोर्ट या मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं, तो यह न केवल असंवैधानिक है बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने की साजिश है।”
उन्होंने कहा कि इस तरह की भाषा न केवल घृणा और हिंसा को बढ़ावा देती है, बल्कि भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध की श्रेणी में आती है।
राज्यसभा सदस्य दिनेश शर्मा के बयान पर टिप्पणी करते हुए मासूम रेजा ने कहा, “महामहिम राष्ट्रपति सर्वोच्च पद पर अवश्य हैं, लेकिन भारत का संविधान सर्वोच्च है। यह बयान संविधानिक अज्ञानता का परिचायक है और भारतीय गणराज्य की मूल भावना के खिलाफ है।”
उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को संतुलित अधिकार दिए गए हैं, ताकि कोई भी संस्था निरंकुश न बन सके।
मासूम रेजा ने कहा कि भाजपा का एक वर्ग लगातार लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक संस्थाओं और जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस प्रकार के बयान न केवल न्यायपालिका को डराने का प्रयास हैं, बल्कि जनता के बीच संविधान के प्रति विश्वास को कमजोर करने की कोशिश हैं।
उन्होंने चार प्रमुख मांगें रखीं:
निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा देश से और सर्वोच्च न्यायालय से सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।
भाजपा इन बयानों से स्पष्ट रूप से किनारा करे और इन नेताओं के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करे।
संसद एवं न्यायपालिका इन बयानों को गंभीरता से लेकर उचित कानूनी कार्रवाई करें।
भारत के राष्ट्रपति एवं मुख्य न्यायाधीश इस प्रवृत्ति पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया दें और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।
Leave a Reply