सिंगल यूज प्लास्टिक पर एक जुलाई से प्रतिबंध लगना है। इस घोषणा से इस उद्योग में खलबली मच गई है। दरअसल इसकी जगह बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का चलन शुरू होने वाला है जो भारत में उपलब्ध नहीं है। यदि इसका आयात किया जाता है तो उत्पाद महंगे हो जाएंगे। इसकी जांच प्रक्रिया भी जटिल है। लिहाजा प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित तिथि को आगे बढ़ाने के लिए आवाज मुखर होने लगी है।
वर्तमान समय में फूड ग्रेड मैटेरियल से प्लास्टिक कटोरी, ग्लास, कप, थाली बनती है। यह मैटेरियल आइओसीएल, ओएनजीसी, गेल, रिलायंस जैसी कंपनियां उपलब्ध कराती हैं। इस मैटेरियल से एक प्लास्टिक का ग्लास 30 से 50 पैसे में बन जाता है जो बाजार में एक रुपये में बिकता है। इसी अनुपात में अन्य आइटम की लागत और बाजार मूल्य होता है। राज्य में कुल 28 यूनिटें इन उत्पादों का उत्पादन करती हैं जिनमें 12 निबंधित हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद बोयोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से ये उत्पाद बनेंगे। इसे जर्मनी, अमेरिका, ब्राजील और चाइना से मंगाना पड़ेगा। बिहार थर्मोप्लास्टिक फार्मस इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि आयात की वजह से प्लास्टिक ग्लास की कीमत एक रुपये से बढ़कर चार रुपये हो जाएगी। जामुनी प्लास्टिक के निदेशक सुमित शेखर ने बताया कि आयात किए गए मैटेरियल का सर्टिफिकेशन भी होता है लेकिन भारत सरकार सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिग एंड टेक्नालाजी से पुन: जांच कराने का प्रविधान रखी है। देश में सीपेट की मात्र नौ प्रयोगशालाएं हैं। इसलिए छह से 18 माह तक जांच में समय चला जाएगा। एमएसबी पालिमर्स के निदेशक नंद कुमार ने कहा कि एक आइटम की जांच का शुल्क 4.75 लाख रुपये है। चार आइटम की जांच में करीब 20 लाख खर्च हो जाएगा।
बिहार थर्मोप्लास्टिक फार्मस इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि अगर सस्ते में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टक नहीं उपलब्ध कराया गया और प्रतिबंध का समय नहीं बढ़ाया गया तो यूनिटें चल नहीं पाएंगी।
सारस न्यूज़ टीम, पटना।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर एक जुलाई से प्रतिबंध लगना है। इस घोषणा से इस उद्योग में खलबली मच गई है। दरअसल इसकी जगह बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का चलन शुरू होने वाला है जो भारत में उपलब्ध नहीं है। यदि इसका आयात किया जाता है तो उत्पाद महंगे हो जाएंगे। इसकी जांच प्रक्रिया भी जटिल है। लिहाजा प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित तिथि को आगे बढ़ाने के लिए आवाज मुखर होने लगी है।
वर्तमान समय में फूड ग्रेड मैटेरियल से प्लास्टिक कटोरी, ग्लास, कप, थाली बनती है। यह मैटेरियल आइओसीएल, ओएनजीसी, गेल, रिलायंस जैसी कंपनियां उपलब्ध कराती हैं। इस मैटेरियल से एक प्लास्टिक का ग्लास 30 से 50 पैसे में बन जाता है जो बाजार में एक रुपये में बिकता है। इसी अनुपात में अन्य आइटम की लागत और बाजार मूल्य होता है। राज्य में कुल 28 यूनिटें इन उत्पादों का उत्पादन करती हैं जिनमें 12 निबंधित हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद बोयोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से ये उत्पाद बनेंगे। इसे जर्मनी, अमेरिका, ब्राजील और चाइना से मंगाना पड़ेगा। बिहार थर्मोप्लास्टिक फार्मस इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि आयात की वजह से प्लास्टिक ग्लास की कीमत एक रुपये से बढ़कर चार रुपये हो जाएगी। जामुनी प्लास्टिक के निदेशक सुमित शेखर ने बताया कि आयात किए गए मैटेरियल का सर्टिफिकेशन भी होता है लेकिन भारत सरकार सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिग एंड टेक्नालाजी से पुन: जांच कराने का प्रविधान रखी है। देश में सीपेट की मात्र नौ प्रयोगशालाएं हैं। इसलिए छह से 18 माह तक जांच में समय चला जाएगा। एमएसबी पालिमर्स के निदेशक नंद कुमार ने कहा कि एक आइटम की जांच का शुल्क 4.75 लाख रुपये है। चार आइटम की जांच में करीब 20 लाख खर्च हो जाएगा।
बिहार थर्मोप्लास्टिक फार्मस इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि अगर सस्ते में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टक नहीं उपलब्ध कराया गया और प्रतिबंध का समय नहीं बढ़ाया गया तो यूनिटें चल नहीं पाएंगी।
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