सोमवार को विश्व मृदा दिवस पर ज़िला मुख्यालय के खगड़ा स्थित जिला मत्स्य कार्यालय में मृदा एवं जल गुणवत्ता मूल्यांकन पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी। जिसमें जिले के मत्स्य पालकों को मिट्टी व पानी की जांच कर उन्नत तरीके से मत्स्य पालन के सुझाव दिए गए। मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज व जिला मत्स्य कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ मत्स्यिकी महाविद्यालय के डीन सह प्राचार्य डा. बी पी सैनी, जिला मत्स्य पदाधिकारी लाल बहादुर साफी, मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री क्षोमेश्वर मंडल, कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डा. मधु कुमारी, सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल, सहायक प्राध्यापक तापस पाल, एफईओ राजेश कुमार ने दीप प्रज्जवलित कर किया।
कार्यशाला का स्वागत भाषण एफईओ राजेश कुमार ने दी। मात्स्यिकी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल के संचालन में आयोजित कार्यशाला में प्राचार्य सह डीन डा. बीपी सैनी ने कहा कि मिट्टी व पानी की गुणवता बनाए रखने पर ही मछली का उत्पादन बढ़ सकता है। विश्व मृदा दिवस के महत्व को बताते हुए उन्होंने मत्स्य पालक किसानों से कहा कि आज स्थिति हो गयी है कि रसायनिक खादों का प्रयोग करते करते खेतों की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है।
जिससे बचाव के लिए मिट्टी जांच जरुरी हो गयी है। खेती हो या मत्स्य पालन मिट्टी की जांच अवश्य कराना चाहिए। मिट्टी की जांच से यह पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से आवश्यक तत्वों की कमी है। उस हिसाब से उस तत्व की कमी को दूर कर सकते हैं। वहीं मछली पालन वाले जल की गुणवता भी बनाए रखना जरुरी है। जल की समय समय पर जांच अवश्य कराएं ताकि यह पता चल सके कि मछली के लिए जरुरी ऑक्सीजन सहित अन्य पोषक तत्वों की क्या स्थिति है।
इससे मछली की क्वालिटी व क्वांटिटी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।जिला मत्स्य पदाधिकारी लाल बाबू साफी ने कहा कि मत्स्य पालन के लिए पानी व मिट्टी दोनों का ध्यान रखना जरुरी है। मिट्टी में कौन-कौन से तत्व की कमी है। जल में ऑक्सीजन की मात्रा क्या है। इन सबों का ध्यान रखकर मत्स्य पालक मछली का बेहतर उत्पादन कर सकते हैं। मात्स्यिकी कॉलेज की प्राध्यापिका प्रो. मधु कुमारी ने मिट्टी जांच पर अपने विचार रखते कहा कि दिन ब दिन मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है।
इसका मुख्य कारण रसायनिक खाद का अंधाधुंध प्रयोग है। किसान मिट्टी की जांच करा इसकी उर्वरा शक्ति को वापस ला सकते हैं। इन्होंने मिट्टी जांच व नमूने को एकत्र करने के तरीके के बारे में किसानों को विस्तारपूर्वक बताया। ने कहा कि मछली पालन के लिए उन्हीं खेतों का चयन करें जहां किसी प्रकार की खेती संभव नहीं है। जहां जल संचयन की क्षमता हो। इन्होंने कहा कि उपजाऊ जमीन को खराब नहीं करना है। मात्स्यिकी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल ने कहा कि मछली पालन के लिए उन्हीं खेतों का चयन करें जहां किसी प्रकार की खेती संभव नहीं है।
जहां जल संचयन की क्षमता हो। इन्होंने कहा कि उपजाऊ जमीन को खराब नहीं करना है।मात्स्यिकी कॉलेज के प्राध्यापक प्रो. तापस पाल ने जलीय ऑक्सीजन पर चर्चा करते कहा कि मछली के लिए जलीय ऑक्सीजन जरुरी है। जलीय ऑक्सीजन की मात्रा कम होने या ज्यादा होने पर मछली की मौत हो सकती है। इन्होंने बताया कि सुबह 6 बजे से फोटोसिन्थेसिस के जरिए मछली को ऑक्सीजन मिलने लगता है। दोपहर 12 से 2 बजे के बीच सबसे ज्यादा ऑक्सीजन मिलता है।
लेकिन सही ऑक्सीजन का लेवल 5 से 10 एमजी होना जरुरी है। इससे कम या ज्यादा होने पर परेशानी हो सकती है। इस मौके पर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री क्षोमेश्वर मंडल, मत्स्य सुपरवाइजर मनोज कुमार, विभागीय कर्मी रुद्रकांत झा सहित जिले के मत्स्यपालक आदि मौजूद थे।
सारस न्यूज, किशनगंज।
सोमवार को विश्व मृदा दिवस पर ज़िला मुख्यालय के खगड़ा स्थित जिला मत्स्य कार्यालय में मृदा एवं जल गुणवत्ता मूल्यांकन पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी। जिसमें जिले के मत्स्य पालकों को मिट्टी व पानी की जांच कर उन्नत तरीके से मत्स्य पालन के सुझाव दिए गए। मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज व जिला मत्स्य कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ मत्स्यिकी महाविद्यालय के डीन सह प्राचार्य डा. बी पी सैनी, जिला मत्स्य पदाधिकारी लाल बहादुर साफी, मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री क्षोमेश्वर मंडल, कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डा. मधु कुमारी, सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल, सहायक प्राध्यापक तापस पाल, एफईओ राजेश कुमार ने दीप प्रज्जवलित कर किया।
कार्यशाला का स्वागत भाषण एफईओ राजेश कुमार ने दी। मात्स्यिकी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल के संचालन में आयोजित कार्यशाला में प्राचार्य सह डीन डा. बीपी सैनी ने कहा कि मिट्टी व पानी की गुणवता बनाए रखने पर ही मछली का उत्पादन बढ़ सकता है। विश्व मृदा दिवस के महत्व को बताते हुए उन्होंने मत्स्य पालक किसानों से कहा कि आज स्थिति हो गयी है कि रसायनिक खादों का प्रयोग करते करते खेतों की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है।
जिससे बचाव के लिए मिट्टी जांच जरुरी हो गयी है। खेती हो या मत्स्य पालन मिट्टी की जांच अवश्य कराना चाहिए। मिट्टी की जांच से यह पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से आवश्यक तत्वों की कमी है। उस हिसाब से उस तत्व की कमी को दूर कर सकते हैं। वहीं मछली पालन वाले जल की गुणवता भी बनाए रखना जरुरी है। जल की समय समय पर जांच अवश्य कराएं ताकि यह पता चल सके कि मछली के लिए जरुरी ऑक्सीजन सहित अन्य पोषक तत्वों की क्या स्थिति है।
इससे मछली की क्वालिटी व क्वांटिटी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।जिला मत्स्य पदाधिकारी लाल बाबू साफी ने कहा कि मत्स्य पालन के लिए पानी व मिट्टी दोनों का ध्यान रखना जरुरी है। मिट्टी में कौन-कौन से तत्व की कमी है। जल में ऑक्सीजन की मात्रा क्या है। इन सबों का ध्यान रखकर मत्स्य पालक मछली का बेहतर उत्पादन कर सकते हैं। मात्स्यिकी कॉलेज की प्राध्यापिका प्रो. मधु कुमारी ने मिट्टी जांच पर अपने विचार रखते कहा कि दिन ब दिन मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है।
इसका मुख्य कारण रसायनिक खाद का अंधाधुंध प्रयोग है। किसान मिट्टी की जांच करा इसकी उर्वरा शक्ति को वापस ला सकते हैं। इन्होंने मिट्टी जांच व नमूने को एकत्र करने के तरीके के बारे में किसानों को विस्तारपूर्वक बताया। ने कहा कि मछली पालन के लिए उन्हीं खेतों का चयन करें जहां किसी प्रकार की खेती संभव नहीं है। जहां जल संचयन की क्षमता हो। इन्होंने कहा कि उपजाऊ जमीन को खराब नहीं करना है। मात्स्यिकी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक भारतेन्दु विमल ने कहा कि मछली पालन के लिए उन्हीं खेतों का चयन करें जहां किसी प्रकार की खेती संभव नहीं है।
जहां जल संचयन की क्षमता हो। इन्होंने कहा कि उपजाऊ जमीन को खराब नहीं करना है।मात्स्यिकी कॉलेज के प्राध्यापक प्रो. तापस पाल ने जलीय ऑक्सीजन पर चर्चा करते कहा कि मछली के लिए जलीय ऑक्सीजन जरुरी है। जलीय ऑक्सीजन की मात्रा कम होने या ज्यादा होने पर मछली की मौत हो सकती है। इन्होंने बताया कि सुबह 6 बजे से फोटोसिन्थेसिस के जरिए मछली को ऑक्सीजन मिलने लगता है। दोपहर 12 से 2 बजे के बीच सबसे ज्यादा ऑक्सीजन मिलता है।
लेकिन सही ऑक्सीजन का लेवल 5 से 10 एमजी होना जरुरी है। इससे कम या ज्यादा होने पर परेशानी हो सकती है। इस मौके पर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री क्षोमेश्वर मंडल, मत्स्य सुपरवाइजर मनोज कुमार, विभागीय कर्मी रुद्रकांत झा सहित जिले के मत्स्यपालक आदि मौजूद थे।
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