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आजादी के वर्षों बाद भी अँधेरे में रहने को विवश है कैमूर पहाड़ी के वनवासी।

देवाशीष चटर्जी, सारस न्यूज, बहादुरगंज।

कैमूर पहाड़ी पर बसा पंचायत, बिहार का सबसे बड़ा पंचायत है जो कि 40 किलोमीटर में फैला हुआ है। इस पंचायत में रानाडीह बलुआही, लुका, पहरु, बभनतलाब, नागटोली, बुधुआ कला, भवनवा, नकटी, धनसा,कपरफट्टी, रेहल, छोटका बुधवा, चाकडीह, कछुहर समेत 200 टोलों में वनवासी रहते हैं। वहीं आजादी के इतने वर्षों के बाद भी बिजली के अभाव में यहां के बाशिंदे अँधेरे में रहने पर मजबूर हैं। इस आधुनिक युग में भी यहां के लोग पुरानी परम्परा के तहत महुआ, कोइना और सरसों तेल के दिए जलाकर अपने घरों को रौशन कर रहे हैं। हालांकि वर्ष 2017 में पहली बार 130 करोड़ की लागत से इन पहाड़ी गावं में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत सोलर प्लांट स्थापित कर बिजली आपूर्ति शुरू की गयी थी, लेकिन महज कुछ ही समय तक सोलर सिस्टम से बिजली आपूर्ति गावं में हो सकी। वहीं सोलर पैनलों पड़ धूल कि मोटी चादर जहां एक ओर बिछ चुकी है वहीँ दूसरी ओर बैटरी खराब होने के कारण विगत कई वर्षों से बिजली की सप्लाई बाधित है। स्थानीय लोग बताते है कि यहां सोलर प्लांट लगाने की जिम्मेदारी एलएनटी कम्पनी को दी गयी थी। वहीं ग्रामीणों ने बताया कि पांच साल का एकरारनामा खत्म होने के बाद से कम्पनी समेत कोई भी अधिकारी इसकी सुध लेने वाला नहीं है। रोहतास गढ़ निवासी नागेंद्र उरांव, राकेश सिंह, नंदकिशोर यादव ने कहा की सोलर सिस्टम यहां फेल हो चूका है। बिहार सरकार यहां पोल तार वाली बिजली की व्यवस्था करें, नहीं तो सोलर सिस्टम उखाड़ कर ले जाए। वहीं ग्रामीणों ने बताया की अब तो सिर्फ महुआ के कोइना के तेल से दिया जलाकर ही लोग अपना गुजर बसर कर रहे हैं।
वहीं रेलह गावं की अनीता देवी, तेतरी देवी, सीमा देवी एवं अन्य महिलाओ ने कहा कि गावं में पांच से छः वर्ष पूर्व जब सोलर सिस्टम लगा था, तो ग्रामीणों में काफी ख़ुशी थी कि अब हम भी बिजली में रहेंगे एवं बच्चे भी पढ़ाई करेंगे, परंतु कुछ महीनो तक यह सोलर सिस्टम चला उसके बाद से फिर अँधेरे में ही जीवन जी रहे हैं। मजबूरन महुआ के कोइना तेल और सरसों तेल के सहारे यहां के ग्रामीण अपने अपने घरों को रौशन कर रहे हैं। ग्रामीणों ने बिहार सरकार से जल्द से जल्द इस गावं में बिजली सेवा बहाल कराने की मांग की है।

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