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जेल में बंद, लेकिन हौसले बुलंद: कैदी कर रहे हैं BPSC की तैयारी।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

मुजफ्फरपुर की शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा एक अनोखी मिसाल पेश कर रही है, जहां कैदी न केवल अपनी सजा काट रहे हैं, बल्कि भविष्य संवारने की दिशा में कदम भी बढ़ा रहे हैं। आमतौर पर जेल को एक नकारात्मक जगह माना जाता है, लेकिन इस जेल में शिक्षा के माध्यम से बंदियों को नई जिंदगी की ओर प्रेरित किया जा रहा है। यहां के कैदी बीपीएससी, पुलिस, और सेना जैसी प्रतिष्ठित सेवाओं में जाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।

जेल के भीतर शिक्षा की ज्योत

कारा प्रशासन ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए विशेष प्रोग्राम शुरू किया है। इस प्रोग्राम के तहत कैदियों को आवश्यक अध्ययन सामग्री, ग्रुप डिस्कशन, साप्ताहिक टेस्ट, और विशेष रूप से चयनित किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं। इनमें आरएस गर्ग की ‘फिटर थ्योरी’, एम लक्ष्मीकांत की ‘भारत की अर्थव्यवस्था’, और डॉ. आरएस अग्रवाल की ‘अंकगणित’ जैसी किताबें शामिल हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मानी जाती हैं।

सफलता के उदाहरण

कुछ महीने पहले ही रवि शेखर और मुकेश कुमार ने बीपीएससी की परीक्षाएं पास कर सरकारी पदों पर अपनी जगह बनाई है। ये दोनों अब अलग-अलग जिलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी तरह, कुछ अन्य कैदियों ने जेल से रिहा होने के बाद सरकारी और निजी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पद हासिल किए हैं। वर्तमान में पांच कैदी बीपीएससी, पांच रेलवे, और तीन बिहार पुलिस में दारोगा बनने की तैयारी कर रहे हैं।

प्रेरणा की नई लहर

सेंट्रल जेल के उपरीक्षक ब्रिजेश सिंह मेहता ने बताया कि बंदियों के बीच शिक्षा को प्रोत्साहन देने से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। जेल में पढ़ाई कर रहे कैदियों जैसे राजनंदन, अनिल, पप्पू, मोहम्मद शाहरुख, और अमितेश बीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। वहीं, पंकज, अमन गौतम, आदित्य, और रवि रेलवे की तैयारी में जुटे हैं। हर्ष, रविंद्र, और अऋषिक दारोगा बनने के लिए मेहनत कर रहे हैं, जबकि शिवम और सुमित एसएससी की परीक्षा की तैयारी में लगे हैं।

सकारात्मक बदलाव की पहल

इन सफलताओं ने अन्य कैदियों के लिए भी प्रेरणा का काम किया है। अब कई सजायाफ्ता कैदी भी शिक्षा की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यह पहल इस बात का प्रमाण है कि सही मार्गदर्शन और संकल्प से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। शिक्षा की यह अलख न केवल जेल की चारदीवारी के भीतर एक नया सवेरा ला रही है, बल्कि बाहर की दुनिया में भी एक नई दिशा की ओर इशारा कर रही है।


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