माह-ए-रमजान के आखिरी जुमे पर आज शुक्रवार को सीमावर्ती क्षेत्र के गलगलिया में अलविदा की नमाज अदा की गयी। नमाज अदा करने वालों में जवान और बुजुर्ग ही नहीं छोटे बच्चे भी शामिल थे। इस दौरान सड़कों पर काफी चहल पहल दिखाई पड़ी। प्रशासनिक पदाधिकारी भीड़ वाले स्थलों पर भ्रमण करते दिखाई पड़े। अलविदा की नमाज के बाद बच्चों में ईद पर्व पर कपड़े, जूते चप्पल आदि खरीदने की खुशी देखी गई। नमाज के बाद देर शाम तक सामानों, सेवई, रेडिमेड कपड़ों की दुकानों पर खरीदारी करने को भीड़ देखी गई। जानकारी मिली कि शुक्रवार की रात चांद देखने के बाद कल शनिवार को ईद मनायी जायेगी।अलविदा की नमाज के दौरान क्षेत्र की मस्जिदों में रोजेदारों की भीड़ उमड़ी। गलगलिया के मस्जिद टोला, लकड़ी डिपू, निम्बूगुड़ी, लेंगड़ाडूबा सहित विभिन्न मस्जिदों में हजारों लोगों ने जुमे की नमाज अदा की। नमाज के दौरान लोगों ने अल्लाह से मुल्क, कौम व मिल्लत की दुआ मांगी। लोगों के हाथ इबादत के लिए उठे तो उनके मुंह से सिर्फ शांति की बात निकली। अलविदा नमाज के दौरान राेजेदारों में इस बात का भी मलाल था कि पवित्र माह रमजान अब समाप्त हो रहा है। लोगों के चेहरे पर पाक महीने की समाप्ति का गम था।
अलविदा का अर्थ रमजान का रुखसत होना
रमजान के आखिरी जुमे को अलविदा के नाम से पुकारा जाता है। इसके बाद कोई जुमा नहीं आता, इसलिए आखिरी जुमे को पढ़ी जानेवाली नमाज अलविदा की नमाज कहलाती है। वैसे तो इस्लाम में हर जुमे की अहमियत है, लेकिन रमजान का आखिरी जुमा होने के चलते यह खास हो जाता है। एक तरह से यह इस बात का संकेत भी होता है कि रमजान का जो एक महीना इबादत के लिए मिला था, उसके खत्म होने में चंद दिन बाकी है।
फितरे की रकम ईद की नमाज से पहले अदा कर देना चाहिए
नमाज के बाद विभिन्न मस्जिदों में मौलाना ने तकरीर कर फितरे, जकात व शबे कद्र के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि फितरे की रकम हर हाल में ईद की नमाज से पहले अदा कर देना चाहिए। जकात के लिए इसकी कोई बंदिश नहीं है। लेकिन यह जरूरी है कि जो लोग हैसियत वाले हैं वे अपनी रकम का ढाई फीसदी जकात निकालेंगे। उन्होंने कहा कि पूरे रमजान में इबादतों का दौर रहता है, लेकिन रमजान के आखिरी अशरे में 21वीं, 25वी, 27वीं व 29वीं रात को जागकर इबादत करना चाहिए।
रमजान का पाक महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है
गलगलिया लकड़ी डिपू मस्जिद के इमाम मो० मसिउद्दीन ने बताया कि रमजान का पाक व मुकद्दस महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है। ऐसे में मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को रमजान में निश्चित तौर पर रोजा रखना चाहिए। रोजा में अपने मन व इंद्रियों पर नियंत्रण रख कर जो भी सच्चे मन से अल्लाह की इबादत करता है उसे बरकत जरूर नसीब होती है। अल्लाह ने अपने बंदों को यह बतला दिया है कि तुम नमाज पढ़ोगे तो मैं उसका सवाब दूंगा। हज करो तो उसका अज्र दूंगा, जकात दोगे तो उसका नेकी दूंगा लेकिन जब तुम रोजे के इम्तिहान में कामयाब हो जाओ तो मैं खुद ही तुम्हारा हो जाऊंगा।
विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
माह-ए-रमजान के आखिरी जुमे पर आज शुक्रवार को सीमावर्ती क्षेत्र के गलगलिया में अलविदा की नमाज अदा की गयी। नमाज अदा करने वालों में जवान और बुजुर्ग ही नहीं छोटे बच्चे भी शामिल थे। इस दौरान सड़कों पर काफी चहल पहल दिखाई पड़ी। प्रशासनिक पदाधिकारी भीड़ वाले स्थलों पर भ्रमण करते दिखाई पड़े। अलविदा की नमाज के बाद बच्चों में ईद पर्व पर कपड़े, जूते चप्पल आदि खरीदने की खुशी देखी गई। नमाज के बाद देर शाम तक सामानों, सेवई, रेडिमेड कपड़ों की दुकानों पर खरीदारी करने को भीड़ देखी गई। जानकारी मिली कि शुक्रवार की रात चांद देखने के बाद कल शनिवार को ईद मनायी जायेगी।अलविदा की नमाज के दौरान क्षेत्र की मस्जिदों में रोजेदारों की भीड़ उमड़ी। गलगलिया के मस्जिद टोला, लकड़ी डिपू, निम्बूगुड़ी, लेंगड़ाडूबा सहित विभिन्न मस्जिदों में हजारों लोगों ने जुमे की नमाज अदा की। नमाज के दौरान लोगों ने अल्लाह से मुल्क, कौम व मिल्लत की दुआ मांगी। लोगों के हाथ इबादत के लिए उठे तो उनके मुंह से सिर्फ शांति की बात निकली। अलविदा नमाज के दौरान राेजेदारों में इस बात का भी मलाल था कि पवित्र माह रमजान अब समाप्त हो रहा है। लोगों के चेहरे पर पाक महीने की समाप्ति का गम था।
अलविदा का अर्थ रमजान का रुखसत होना
रमजान के आखिरी जुमे को अलविदा के नाम से पुकारा जाता है। इसके बाद कोई जुमा नहीं आता, इसलिए आखिरी जुमे को पढ़ी जानेवाली नमाज अलविदा की नमाज कहलाती है। वैसे तो इस्लाम में हर जुमे की अहमियत है, लेकिन रमजान का आखिरी जुमा होने के चलते यह खास हो जाता है। एक तरह से यह इस बात का संकेत भी होता है कि रमजान का जो एक महीना इबादत के लिए मिला था, उसके खत्म होने में चंद दिन बाकी है।
फितरे की रकम ईद की नमाज से पहले अदा कर देना चाहिए
नमाज के बाद विभिन्न मस्जिदों में मौलाना ने तकरीर कर फितरे, जकात व शबे कद्र के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि फितरे की रकम हर हाल में ईद की नमाज से पहले अदा कर देना चाहिए। जकात के लिए इसकी कोई बंदिश नहीं है। लेकिन यह जरूरी है कि जो लोग हैसियत वाले हैं वे अपनी रकम का ढाई फीसदी जकात निकालेंगे। उन्होंने कहा कि पूरे रमजान में इबादतों का दौर रहता है, लेकिन रमजान के आखिरी अशरे में 21वीं, 25वी, 27वीं व 29वीं रात को जागकर इबादत करना चाहिए।
रमजान का पाक महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है
गलगलिया लकड़ी डिपू मस्जिद के इमाम मो० मसिउद्दीन ने बताया कि रमजान का पाक व मुकद्दस महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है। ऐसे में मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को रमजान में निश्चित तौर पर रोजा रखना चाहिए। रोजा में अपने मन व इंद्रियों पर नियंत्रण रख कर जो भी सच्चे मन से अल्लाह की इबादत करता है उसे बरकत जरूर नसीब होती है। अल्लाह ने अपने बंदों को यह बतला दिया है कि तुम नमाज पढ़ोगे तो मैं उसका सवाब दूंगा। हज करो तो उसका अज्र दूंगा, जकात दोगे तो उसका नेकी दूंगा लेकिन जब तुम रोजे के इम्तिहान में कामयाब हो जाओ तो मैं खुद ही तुम्हारा हो जाऊंगा।
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