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स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू की जांच की पुष्टि के लिए जारी किए आवश्यक दिशा-निर्देश, पुरे जिले में होगा निर्देशों का अनुपालन।

सारस न्यूज, किशनगंज।

वर्तमान समय में मौसम में बदलाव होने के कारण क्षेत्र में डेंगू का खतरा मंडराने लगा है। ऐसे ही मौसम में डेंगू मच्छर पैदा होता है। इसलिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से जहां इस समय कोरोना से लड़ाई लड़ी जा रही है, वहीं अब डेंगू से बचाव करने के लिए भी प्रयास शुरू हो गए हैं। किशनगंज जिले से सटे पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के सिलीगुड़ी में इन दिनों डेंगू के एक्टिव केसों की दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में हमें इस रोग से बचाव के हरसंभव प्रयास करनी चाहिए।

इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ. कौशल किशोर ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक सह वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. विनय कुमार शर्मा ने डेंगू की जांच जिले के निजी अस्पताल एवं जांच घरों में कराने से संबंधित दिशा-निर्देश दिया है। जारी पत्र में बताया गया है कि निजी अस्पतालों एवं जांच घरों में डेंगू की जांच रैपिड डायग्नोस्टिक किट (आरडीटी किट) से करने के बाद परिणाम आते ही उसे डेंगू मरीज घोषित कर दिया जाता है। जबकि भारत सरकार द्वारा डेंगू की आधिकारिक रूप से जांच की प्रक्रिया केवल एलिसा एनएस वन एवं आईजीएम किट से करने का निर्देश है।

इसका अनुपालन पूरे जिले में किया जायेगा। उन्होंने बताया कि ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना, सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना, आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना, बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना, जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना, गले में हल्का-सा दर्द होना, शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैसेज होना आदि डेंगू बुखार के लक्षण हैं।

डीवीबीडीसी पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि वेक्टर जनित रोगों में वे सभी रोग आ जाते हैं जो मच्छर, मक्खी या कीट के काटने से होते हैं।

जैसे: डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, स्क्रब टायफस या लेप्टोंस्पायरोसिस आदि।

मलेरिया एवं डेंगू या अन्य वेक्टर जनित रोगों से बचने के लिए दिन में भी सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करना चाहिए। मच्छर भगाने वाली क्रीम या दवा का प्रयोग दिन में भी कर सकते हैं। पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर है। घर के सभी कमरों की सफाई के साथ ही टूटे-फूटे बर्तनों, कूलर, एसी, फ्रिज में पानी को स्थिर नहीं होने देना चाहिए। गमला, फूलदान का पानी एक दिन के अंतराल पर बदलना जरूरी है। इस तरह डेंगू के प्रकोप से बचा जा सकता हैं।

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