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चुनाव के मौसम में दिखने वाले नेता — क्या जनता को अब और सतर्क होने की ज़रूरत है?

प्रतिनिधि, सारस न्यूज़, किशनगंज।

हर चुनावी मौसम में एक दृश्य आम हो जाता है — अचानक कुछ चेहरे गांवों, कस्बों और शहरों में दिखने लगते हैं। ये वही नेता होते हैं जो पिछले पाँच सालों तक जनता की समस्याओं से दूर रहे, लेकिन जैसे ही चुनाव की तारीखें नज़दीक आती हैं, वे “जनता के सेवक” बनकर सामने आ जाते हैं।

नेताओं की मौसमी सक्रियता — एक गंभीर सवाल

क्या ऐसे नेता वास्तव में जनता के हितैषी हैं? क्या उनका उद्देश्य सेवा है या सिर्फ सत्ता की कुर्सी तक पहुँचना? जनता को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में वोट सिर्फ अधिकार नहीं, जिम्मेदारी भी है। ऐसे नेताओं को पहचानना और उनसे सवाल करना अब समय की मांग है।

विश्वास का संकट:

ऐसे नेताओं की वजह से जनता का लोकतंत्र से विश्वास डगमगाता है। जब जनता को लगता है कि उनका प्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के समय आता है, तो वे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

जागरूकता ही समाधान है:

जनता को चाहिए कि वे नेताओं का पूरा कार्यकाल देखें, न कि सिर्फ चुनावी भाषण। सोशल मीडिया, न्यूज़ रिपोर्ट्स और स्थानीय रिकॉर्ड से पता करें कि नेता ने पिछले वर्षों में क्या काम किया। जनसंपर्क, विकास कार्य, और जनता के बीच उपस्थिति — ये तीन कसौटियाँ होनी चाहिए किसी भी नेता को चुनने की।

चुनाव आयोग और मीडिया की भूमिका:

मीडिया को चाहिए कि वह सिर्फ प्रचार न करे, बल्कि नेताओं का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखे। चुनाव आयोग को भी ऐसे नेताओं की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए जो सिर्फ चुनावी मौसम में सक्रिय होते हैं।

कैसे पहचानें मौसमी नेता?

चुनाव से पहले अचानक जनसंपर्क बढ़ा देना, वादों की बौछार लेकिन कोई ठोस योजना नहीं, पिछले कार्यकाल में जनता से दूरी बनाए रखना, सिर्फ बड़े मंचों पर दिखना, लेकिन जमीनी स्तर पर नदारद रहना, यह कुछ ऐसे लक्षण हैं जिससे पता चलता है की वे मौसमी नेता हैं।

जनता की शक्ति — वोट से बदलाव:

लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत जनता के पास होती है। अगर जनता जागरूक हो जाए, तो मौसमी नेताओं की राजनीति खत्म हो सकती है। हर वोट एक संदेश है — कि हम सिर्फ वादों पर नहीं, काम पर भरोसा करते हैं।

अब समय आ गया है कि हम नेताओं से सवाल करें —”आप पाँच साल कहाँ थे?”, “आपने हमारे लिए क्या किया?”, “क्या आप सिर्फ चुनाव के लिए आते हैं?” अगर जवाब संतोषजनक न हो, तो जनता को चाहिए कि वह ऐसे नेताओं को नकार दे।
लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब जनता जागरूक होगी।

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