7 जुलाई 2025 को तीसरी बार अमेरिका पहुंचे इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “मध्य पूर्व में शांति और सुरक्षा की कोशिशों” की सराहना करते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात तो कही, लेकिन गाजा में युद्धविराम जैसे सबसे ज़रूरी मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं जताई।
जबकि हमास और इज़रायल के बीच कतर की राजधानी दोहा में अप्रत्यक्ष वार्ताएं जारी हैं, वहीं दूसरी ओर इज़रायल अब गाज़ा के लोगों को बलपूर्वक दक्षिणी इलाकों में स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है। इज़रायली रक्षा मंत्री इसराइल काट्ज़ ने सेना को आदेश दिया है कि गाज़ा की पूरी 23 लाख आबादी को रफाह के खंडहरों में बसाने की योजना बनाई जाए, जिसे वे “नई मानवीय नगरी” बता रहे हैं।
हालांकि, इज़रायली मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि इज़रायली सेना प्रमुख एयाल ज़मीर इस योजना के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि “भूखे और ग़ुस्से से भरे लोग इज़रायली सेना के खिलाफ उठ खड़े हो सकते हैं।”
गाज़ा में हर दिन दर्जनों नागरिकों की हत्या, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, एक आम बात बन गई है। राहत केंद्रों पर खड़े भूखे लोगों को गोली मार दी जाती है, और डॉक्टर बताते हैं कि कई मासूम बच्चों की मौत भूख से हो रही है या अस्पतालों में ऐसे बच्चों के शव आ रहे हैं जिनके सिर में स्नाइपर की गोलियां लगी हैं।
इसके बावजूद न तो नेतन्याहू की संवेदना जाग रही है और न ही अमेरिका की चुप्पी टूट रही है। खुद को “शांति का व्यक्ति” बताने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही नेतन्याहू से बैठक से पहले कहा था कि वे गाज़ा में युद्धविराम के मुद्दे पर “कठोर रुख़” अपनाएंगे, लेकिन सिर्फ़ बातों से हालात नहीं बदलते।
ट्रंप के पास ऐसा प्रभाव और शक्ति है, जिससे वह इज़रायल को युद्धविराम के लिए मजबूर कर सकते हैं। ईरान-इज़रायल युद्ध के अंतिम क्षणों में ट्रंप ने जब इज़रायली लड़ाकू विमानों को हमले से रोकने को कहा, तो इज़रायल ने उनकी बात मानी थी और सिर्फ़ प्रतीकात्मक हमला करके वापस लौट आया था।
आज भी इज़रायल की सैन्य शक्ति अमेरिका पर ही निर्भर है — चाहे वह हथियार हों या कूटनीतिक सुरक्षा। गाज़ा युद्ध के दौरान अमेरिका से मिल रही सैन्य और राजनीतिक मदद ही नेतन्याहू की जंग को जारी रखने की ताक़त दे रही है। जबकि नेतन्याहू के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराध को लेकर गिरफ़्तारी वारंट तक जारी किया है।
अगर अमेरिका अब भी केवल बयान देता रहा और अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया, तो भविष्य में उसे भी इज़रायल के अपराधों में साझेदार माना जाएगा। इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।
गाज़ा में बीते 20 महीनों में लगभग 70,000 लोग मारे जा चुके हैं — यह नरसंहार अब रुकना ही चाहिए। अब समय आ गया है कि इज़रायल को जवाबदेह ठहराया जाए और निर्दोषों के इस कत्लेआम पर पूर्ण विराम लगाया जाए।
सारस न्यूज़, किशनगंज।
7 जुलाई 2025 को तीसरी बार अमेरिका पहुंचे इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “मध्य पूर्व में शांति और सुरक्षा की कोशिशों” की सराहना करते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात तो कही, लेकिन गाजा में युद्धविराम जैसे सबसे ज़रूरी मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं जताई।
जबकि हमास और इज़रायल के बीच कतर की राजधानी दोहा में अप्रत्यक्ष वार्ताएं जारी हैं, वहीं दूसरी ओर इज़रायल अब गाज़ा के लोगों को बलपूर्वक दक्षिणी इलाकों में स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है। इज़रायली रक्षा मंत्री इसराइल काट्ज़ ने सेना को आदेश दिया है कि गाज़ा की पूरी 23 लाख आबादी को रफाह के खंडहरों में बसाने की योजना बनाई जाए, जिसे वे “नई मानवीय नगरी” बता रहे हैं।
हालांकि, इज़रायली मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि इज़रायली सेना प्रमुख एयाल ज़मीर इस योजना के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि “भूखे और ग़ुस्से से भरे लोग इज़रायली सेना के खिलाफ उठ खड़े हो सकते हैं।”
गाज़ा में हर दिन दर्जनों नागरिकों की हत्या, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, एक आम बात बन गई है। राहत केंद्रों पर खड़े भूखे लोगों को गोली मार दी जाती है, और डॉक्टर बताते हैं कि कई मासूम बच्चों की मौत भूख से हो रही है या अस्पतालों में ऐसे बच्चों के शव आ रहे हैं जिनके सिर में स्नाइपर की गोलियां लगी हैं।
इसके बावजूद न तो नेतन्याहू की संवेदना जाग रही है और न ही अमेरिका की चुप्पी टूट रही है। खुद को “शांति का व्यक्ति” बताने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही नेतन्याहू से बैठक से पहले कहा था कि वे गाज़ा में युद्धविराम के मुद्दे पर “कठोर रुख़” अपनाएंगे, लेकिन सिर्फ़ बातों से हालात नहीं बदलते।
ट्रंप के पास ऐसा प्रभाव और शक्ति है, जिससे वह इज़रायल को युद्धविराम के लिए मजबूर कर सकते हैं। ईरान-इज़रायल युद्ध के अंतिम क्षणों में ट्रंप ने जब इज़रायली लड़ाकू विमानों को हमले से रोकने को कहा, तो इज़रायल ने उनकी बात मानी थी और सिर्फ़ प्रतीकात्मक हमला करके वापस लौट आया था।
आज भी इज़रायल की सैन्य शक्ति अमेरिका पर ही निर्भर है — चाहे वह हथियार हों या कूटनीतिक सुरक्षा। गाज़ा युद्ध के दौरान अमेरिका से मिल रही सैन्य और राजनीतिक मदद ही नेतन्याहू की जंग को जारी रखने की ताक़त दे रही है। जबकि नेतन्याहू के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराध को लेकर गिरफ़्तारी वारंट तक जारी किया है।
अगर अमेरिका अब भी केवल बयान देता रहा और अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया, तो भविष्य में उसे भी इज़रायल के अपराधों में साझेदार माना जाएगा। इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।
गाज़ा में बीते 20 महीनों में लगभग 70,000 लोग मारे जा चुके हैं — यह नरसंहार अब रुकना ही चाहिए। अब समय आ गया है कि इज़रायल को जवाबदेह ठहराया जाए और निर्दोषों के इस कत्लेआम पर पूर्ण विराम लगाया जाए।