लखनऊ के निशातगंज पुलिस चौकी प्रभारी धनंजय सिंह को बुधवार शाम तब गिरफ्तार किया गया जब उनके ऊपर एक गंभीर आरोप के तहत कार्रवाई की गई। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक अभियुक्त का नाम हटवाने के लिए ₹2 लाख की रिश्वत मांगी और स्वीकार की — यह सब एक छापेमारी में उजागर हुआ।
घटना की पूरी तस्वीर इस प्रकार है:
एक शिकायत मिलने के बाद Anti‑Corruption Organisation, Lucknow (ACO) ने एक जाल बिछाया। शिकायत यह थी कि आरोपी अभियुक्त का नाम एक गैंगरेप मामले से हटवाने के लिए रिश्वत लेनी जा रही है।
शाम करीब 9 :15 बजे, जब marked currency (नंबर लगे हुए नोट) के साथ ट्रैप लगाया गया था, तब चौकी प्रभारी धनंजय सिंह को रिश्वत लेते पकड़ा गया।
मामला महनागर पुलिस स्टेशन के अधीन दर्ज एक गैंगरेप प्रकरण (मुकदमा संख्या 242/25) से जुड़ा है, जिसमें अभियुक्त का नाम कटवाने के लिए कार्रवाई की जा रही थी।
गिरफ्तार अधिकारी के खिलाफ Prevention of Corruption Act की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया है और जांच जारी है।
जिस चौकी पर दूसरों को पकड़ कर लाते थे उसी चौकी से खुद गिरफ्तार हो गए!!
लखनऊ की पेपरमिल पुलिस चौकी में तैनात दरोगा धनंजय सिंह को एंटी करप्शन टीम ने 2 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों दबोचा।
बताया जा रहा है कि धनंजय सिंह ने एक गंभीर मामले के निपटारे की एवज में रिश्वत मांगी थी
क्या यह क्यों महत्वपूर्ण है? यह मामला सिर्फ एक ट्रैप में पकड़े गए अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं है — बल्कि यह उप्र के पुलिस व भ्रष्टाचार नियंत्रण तंत्र पर सवाल उठा रहा है। जब जीवन-निर्णायक मामलों में भी प्रणाली में इस तरह घपला हो सके, तो भरोसे को हानि पहुँचती है।
कुछ अहम बिंदु:
एक पुलिस अधिकारी, जो अपराध से लड़ने का काम करता है, खुद भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़ा गया—यह स्थिति चिंताजनक है।
कार्रवाई समय पर हुई है, लेकिन यह दिखाती है कि शिकायत दर्ज होने तक आरोपी अभियुक्त का नाम हटवाने के लिए रिश्वत की मांग जारी थी।
आगे की जांच से यह स्पष्ट होगा कि क्या यह एक ‘इकाई’ मामला है या सिस्टम में व्यापक समस्या है।
आगे क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
कार्यवाही के बाद दोषी अधिकारी पर सक्रिय लंबित जांच की जानी चाहिए और यह देखें जाना चाहिए कि कहीं अन्य अधिकारी इस तरह की गतिविधियों में शामिल तो नहीं।
पुलिस विभाग को आंतरिक निगरानी व ट्रैप-मैकेनिज्म को और सुदृढ़ करना होगा ताकि ऐसे मामलों का पूर्व-निरोध किया जा सके।
आम नागरिकों को भी इस बारे में जागरूक किया जाना चाहिए — अगर उन्हें इस तरह की मांग महसूस होती है तो अविलम्ब शिकायत करना प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि जब कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी वाले लोग ही व्यवस्था को तोड़ने लगें, तो सामाजिक विश्वास कमजोर पड़ जाता है। उप्र प्रशासन को इस तरह की घटनाओं पर शून्य-सहिष्णुता (zero-tolerance) नीति अपनानी होगी और त्वरित सार्वजनिक जवाबदेही देना होगा।
सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
लखनऊ के निशातगंज पुलिस चौकी प्रभारी धनंजय सिंह को बुधवार शाम तब गिरफ्तार किया गया जब उनके ऊपर एक गंभीर आरोप के तहत कार्रवाई की गई। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक अभियुक्त का नाम हटवाने के लिए ₹2 लाख की रिश्वत मांगी और स्वीकार की — यह सब एक छापेमारी में उजागर हुआ।
घटना की पूरी तस्वीर इस प्रकार है:
एक शिकायत मिलने के बाद Anti‑Corruption Organisation, Lucknow (ACO) ने एक जाल बिछाया। शिकायत यह थी कि आरोपी अभियुक्त का नाम एक गैंगरेप मामले से हटवाने के लिए रिश्वत लेनी जा रही है।
शाम करीब 9 :15 बजे, जब marked currency (नंबर लगे हुए नोट) के साथ ट्रैप लगाया गया था, तब चौकी प्रभारी धनंजय सिंह को रिश्वत लेते पकड़ा गया।
मामला महनागर पुलिस स्टेशन के अधीन दर्ज एक गैंगरेप प्रकरण (मुकदमा संख्या 242/25) से जुड़ा है, जिसमें अभियुक्त का नाम कटवाने के लिए कार्रवाई की जा रही थी।
गिरफ्तार अधिकारी के खिलाफ Prevention of Corruption Act की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया है और जांच जारी है।
जिस चौकी पर दूसरों को पकड़ कर लाते थे उसी चौकी से खुद गिरफ्तार हो गए!!
लखनऊ की पेपरमिल पुलिस चौकी में तैनात दरोगा धनंजय सिंह को एंटी करप्शन टीम ने 2 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों दबोचा।
बताया जा रहा है कि धनंजय सिंह ने एक गंभीर मामले के निपटारे की एवज में रिश्वत मांगी थी
क्या यह क्यों महत्वपूर्ण है? यह मामला सिर्फ एक ट्रैप में पकड़े गए अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं है — बल्कि यह उप्र के पुलिस व भ्रष्टाचार नियंत्रण तंत्र पर सवाल उठा रहा है। जब जीवन-निर्णायक मामलों में भी प्रणाली में इस तरह घपला हो सके, तो भरोसे को हानि पहुँचती है।
कुछ अहम बिंदु:
एक पुलिस अधिकारी, जो अपराध से लड़ने का काम करता है, खुद भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़ा गया—यह स्थिति चिंताजनक है।
कार्रवाई समय पर हुई है, लेकिन यह दिखाती है कि शिकायत दर्ज होने तक आरोपी अभियुक्त का नाम हटवाने के लिए रिश्वत की मांग जारी थी।
आगे की जांच से यह स्पष्ट होगा कि क्या यह एक ‘इकाई’ मामला है या सिस्टम में व्यापक समस्या है।
आगे क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
कार्यवाही के बाद दोषी अधिकारी पर सक्रिय लंबित जांच की जानी चाहिए और यह देखें जाना चाहिए कि कहीं अन्य अधिकारी इस तरह की गतिविधियों में शामिल तो नहीं।
पुलिस विभाग को आंतरिक निगरानी व ट्रैप-मैकेनिज्म को और सुदृढ़ करना होगा ताकि ऐसे मामलों का पूर्व-निरोध किया जा सके।
आम नागरिकों को भी इस बारे में जागरूक किया जाना चाहिए — अगर उन्हें इस तरह की मांग महसूस होती है तो अविलम्ब शिकायत करना प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि जब कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी वाले लोग ही व्यवस्था को तोड़ने लगें, तो सामाजिक विश्वास कमजोर पड़ जाता है। उप्र प्रशासन को इस तरह की घटनाओं पर शून्य-सहिष्णुता (zero-tolerance) नीति अपनानी होगी और त्वरित सार्वजनिक जवाबदेही देना होगा।
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