ईंधन मिश्रण पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला, इथेनॉल-फ्री पेट्रोल की भी उठी मांग
सरकार के पेट्रोल में 20% तक इथेनॉल मिलाने के फैसले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। एक जनहित याचिका (PIL) में इस नीति पर सवाल उठाते हुए मांग की गई है कि उपभोक्ताओं को इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के साथ-साथ “इथेनॉल-फ्री” पेट्रोल का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि केवल ई-20 पेट्रोल की बिक्री लाखों वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है, खासकर उन उपभोक्ताओं के लिए जिनके वाहन इस नए मिश्रण के अनुरूप नहीं हैं।
वाहन और उपभोक्ताओं पर असर
याचिका में तर्क दिया गया है कि ई-20 ईंधन वाहनों की परफॉर्मेंस को प्रभावित करता है और लंबे समय में इंजन व पार्ट्स को नुकसान भी पहुँचा सकता है। बिना ऑटोमोबाइल कंपनियों को तकनीकी रूप से तैयार किए इस नीति को लागू करना अनुचित और जल्दबाज़ी भरा कदम बताया गया है। इसके साथ ही यह भी मांग की गई है कि पंपों पर साफ लेबलिंग की जाए, ताकि उपभोक्ता यह जान सकें कि वे किस तरह का ईंधन खरीद रहे हैं।
कीमतों पर भी उठे सवाल
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने के बावजूद कीमतों में कोई कमी नहीं की गई। उनका कहना है कि कंपनियां उत्पादन लागत घटने का लाभ खुद रख रही हैं, जबकि उपभोक्ताओं को पूरी कीमत चुकानी पड़ रही है।
विदेशों से तुलना
पीआईएल में अमेरिका और यूरोप का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां उपभोक्ताओं के पास इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल का विकल्प मौजूद है। साथ ही ईंधन स्टेशनों पर यह स्पष्ट रूप से लिखा होता है कि कौन-सा ईंधन मिश्रित है और कौन-सा नहीं। इसके उलट भारत में ग्राहकों को बिना बताए केवल इथेनॉल युक्त पेट्रोल ही बेचा जा रहा है।
सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
ईंधन मिश्रण पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला, इथेनॉल-फ्री पेट्रोल की भी उठी मांग
सरकार के पेट्रोल में 20% तक इथेनॉल मिलाने के फैसले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। एक जनहित याचिका (PIL) में इस नीति पर सवाल उठाते हुए मांग की गई है कि उपभोक्ताओं को इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के साथ-साथ “इथेनॉल-फ्री” पेट्रोल का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि केवल ई-20 पेट्रोल की बिक्री लाखों वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है, खासकर उन उपभोक्ताओं के लिए जिनके वाहन इस नए मिश्रण के अनुरूप नहीं हैं।
वाहन और उपभोक्ताओं पर असर
याचिका में तर्क दिया गया है कि ई-20 ईंधन वाहनों की परफॉर्मेंस को प्रभावित करता है और लंबे समय में इंजन व पार्ट्स को नुकसान भी पहुँचा सकता है। बिना ऑटोमोबाइल कंपनियों को तकनीकी रूप से तैयार किए इस नीति को लागू करना अनुचित और जल्दबाज़ी भरा कदम बताया गया है। इसके साथ ही यह भी मांग की गई है कि पंपों पर साफ लेबलिंग की जाए, ताकि उपभोक्ता यह जान सकें कि वे किस तरह का ईंधन खरीद रहे हैं।
कीमतों पर भी उठे सवाल
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने के बावजूद कीमतों में कोई कमी नहीं की गई। उनका कहना है कि कंपनियां उत्पादन लागत घटने का लाभ खुद रख रही हैं, जबकि उपभोक्ताओं को पूरी कीमत चुकानी पड़ रही है।
विदेशों से तुलना
पीआईएल में अमेरिका और यूरोप का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां उपभोक्ताओं के पास इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल का विकल्प मौजूद है। साथ ही ईंधन स्टेशनों पर यह स्पष्ट रूप से लिखा होता है कि कौन-सा ईंधन मिश्रित है और कौन-सा नहीं। इसके उलट भारत में ग्राहकों को बिना बताए केवल इथेनॉल युक्त पेट्रोल ही बेचा जा रहा है।
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