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विजय दिवस: साहस, बलिदान और 1971 की ऐतिहासिक जीत की अमर गाथा।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

विजय दिवस केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं है, बल्कि यह साहस, बलिदान और भारत के सैन्य इतिहास के एक निर्णायक क्षण की याद दिलाता है। यह दिन हमें ठहरकर यह सोचने का अवसर देता है कि आज़ादी की रक्षा के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।

औपचारिक परेड और सरकारी कार्यक्रमों से परे, विजय दिवस का भावनात्मक महत्व बेहद गहरा है। यह केवल जीत का उत्सव नहीं, बल्कि उन अनगिनत वीर सैनिकों को नमन है जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ता दिखाई, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ शांति से जीवन जी सकें।

विजय दिवस क्या है?
विजय दिवस भारत की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक है, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध में हासिल हुई थी। इसी युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का गठन हुआ। मात्र 13 दिनों तक चले भीषण संघर्ष के बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया। इस दौरान 90,000 से अधिक सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े आत्मसमर्पणों में से एक माना जाता है।

विजय दिवस कब मनाया जाता है?
विजय दिवस हर वर्ष 16 दिसंबर को पूरे देश में मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न युद्ध स्मारकों पर श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जाते हैं, विशेष रूप से नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर। सेना के वरिष्ठ अधिकारी, पूर्व सैनिक और आम नागरिक वीर शहीदों को नमन करते हैं और कर्तव्य व सेवा के मूल्यों को याद करते हैं।

विजय दिवस पर विचार और संदेश

  • आज़ादी बलिदान से ही सुरक्षित रहती है।
  • 1971 की जीत ने इतिहास की दिशा बदल दी।
  • राष्ट्र अपने वीरों के आगे नतमस्तक है।
  • एकता और संकल्प से मिली विजय।
  • शांति की नींव त्याग पर टिकी है।
  • वीर कभी भुलाए नहीं जाते।
  • देश आज मजबूत है क्योंकि सैनिक अडिग रहे।
  • सेवा भाव ही सच्चा देशप्रेम है।
  • साहस की गूंज पीढ़ियों तक सुनाई देती है।
  • विजय दिवस भारत की आत्मा का उत्सव है।

विजय दिवस अतीत को याद करने भर का दिन नहीं, बल्कि उससे सीख लेकर आगे बढ़ने का संदेश भी देता है। यह हमें शांति, एकता और उन बलिदानों की कद्र करना सिखाता है, जो देश की रक्षा के लिए दिए गए हैं।


By Hasrat

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