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अर्राबाड़ी में स्थित मात्स्यिकी महाविद्यालय में तीन दिवसीय राष्ट्रीय मत्स्य मेला के आयोजन का धूमधाम से हुआ शुभारंभ।

सारस न्यूज, किशनगंज।

बुधवार को किशनगंज जिले के अर्राबाड़ी में स्थित मात्स्यिकी महाविद्यालय में तीन दिवसीय राष्ट्रीय मत्स्य मेला के आयोजन का शुभारम्भ किया गया। उक्त कार्यक्रम को मुख्य अतिथि फिशरीज साईंस आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जेनरल डॉ. जॉयकृष्ण जेना, आईसीएआर सीआईएफई मुंबई के एक्स डायरेक्टर, डॉ. दिलीप कुमार, एनएफडीबी के चीफ एक्सक्यूटिव आईसी एंड सीनियर एक्सक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. एल नरसिम्हा मूर्ति व बिहार पशु विज्ञान चिकित्सा विश्वविद्यालय पटना के वाइस चांसलर डॉ. रामेश्वर सिंह ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्जवलित कर उद्घाटन किया। इस दौरान मात्स्यिकी महाविद्यालय के डीन डॉ. वेद प्रकाश सैनी ने मुख्य अतिथि सहित विशिष्ट अतिथियों को बुके देकर स्वागत किया।

कार्यक्रम के उद्घाटन के उपरांत डीन डॉ. वेद प्रकाश सैनी ने कॉलेज की पांच वर्षों की उपलब्धियों को गिनाया। इसके बाद प्रगतिशील मत्स्य किसान, ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को प्रमाण पत्र व मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते वाइस चांसलर डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि अपने स्थापना के पांच साल में ही कॉलेज प्रगति के पथ पर अग्रसर है। कॉलेज के डीन डॉ. वी पी सैनी व कॉलेज के अध्यापकों व वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम है कि किशनगंज मत्स्यकी महाविद्यालय का नाम देश के स्तर तक पहुंच रहा है। इन्होंने इतने बड़े राष्ट्र स्तरीय मत्स्य मेला के आयोजन के लिए कॉलेज के डीन सहित शिक्षकों व वैज्ञानिकों को बधाई दी।
इन्होंने कार्यक्रम के संबंध में स्थायी मत्स्यिकी के माध्यम से गरीबी को समृद्धि में बदलने पर प्रकाश डालते कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तकनीक का अभाव है। जिस कारण मत्स्य का उत्पादन घट रहा है। इस क्षेत्र में आज बड़ा चैलेंज है। भले ही मत्स्य पालन में भारत दूसरे स्थान पर है। लेकिन नई तकनीक का समावेश ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं हो पाया है। इन्होंने कहा कि मत्स्य पालन के क्षेत्र में आईसीएआर मत्स्य विज्ञान के डिप्टी डायरेक्टर जेनरल डॉ. जॉयकृष्ण जेना का मत्स्य पालन के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान है। इनके दूरदर्शी सोच ने मत्स्य उद्योग में क्रांति लाई है। मछुआरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। कॉलेज की उपलब्धि पर चर्चा करते कहा कि इस कॉलेज का पहला बीएससी फिशरजी का बैच अगस्त 2022 में पास आउट हुआ। 24 छात्रों के बैच में 12 ने जूनियर रिसर्च फेलोशिप में सफलता पाई है जो गर्व की बात है। इस वर्ष पीजी की भी शुरुआत हुई है। यहां अत्याधुनिक रेफरल लेबोरेटरी भी बनना है। इसके लिए 20 करोड़ की राशि पीएम मत्स्य संपदा योजना से मिली है। इसके भवन का डिजाईन फाइनल हो गया है। जल्द ही इसकी शुरुआत होगी।

मुख्य अतिथि फिशरीज साईंस आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जेनरल डॉ. जॉयकृष्ण जेना ने कहा कि मछली पोषण के साथ साथ कई बीमारियों से भी बचाता है। मछली मे प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी लोगों को रोजगार के अवसर पैदा मिला है। कई युवा इससे जुड़कर समृद्धि की गाथा लिख रहे हैं। पहले के मत्स्य पालन व अब में काफी बदलाव आया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तकनीक का अभाव है। जिस कारण मत्स्य पालन के क्षेत्र में ग्रामीण मत्स्य पालक समृद्ध नहीं हो पा रहे हैं। तालाबों की मिट्टी जांच, जीरा डालने से लेकर मछली के विकास तक तकनीक की जानकारी ग्रामीण मत्स्य पालक को देनी होगी। मत्स्य पालन के साथ-साथ मत्स्य पालकों को बाजार भी उपलब्ध कराना होगा। आज हर शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में मछली का बाजार उपलब्ध है। लेकिन मत्स्य पालकों को अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। वहीं इसकी पैकिंग कर बाहर भेजने पर इसकी कीमत दुगुनी हो जाती है। इस पर भी ध्यान देने की जरुरत है। तभी ग्रामीण भी मत्स्य पालन के जरिए समृद्धि की गाथा लिख सकते हैं। इन्होंने एक्वाक्लचर, बायोफ्लैंक, कार्प, कैच हैचरी सहित अन्य बिंदुओं पर भी चर्चा की। कार्यक्रम को आईसीएआर सीआईएफई मुंबई के एक्स डायरेक्टर डॉ. दिलीप कुमार, एनएफडीबी के चीफ एक्सक्यूटिव आईसी एंड सीनियर एक्सक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. एल नरसिम्हा मूर्ति, डॉ. एच डी सिंह, डॉ. ए के सिंह आदि ने भी संबोधित किया।

उक्त तीन दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह को सफल बनाने में आयोजन सचिव सह एईएम के प्रमुख डॉ. तापस पाल, आयोजन प्रचार अध्यक्ष सह सहायक प्रोफेसर भारतेंदु विमल सहित मात्स्यिकी महाविद्यालय के अध्यापकों व कर्मियों ने अपनी महत्ती भूमिका निभाई।

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