सारस न्यूज, किशनगंज।
आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर केंद्रीय सांस्कृतिक विभाग भारत सरकार की टीम इन दिनों भारतीय इतिहास में गुमनाम स्वत्रंत्रता सेनानियों की तलाश में जुटी हुई है। कला सांस्कृतिक विभाग राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान बिहार सरकार के निर्देशन के द्वारा चिन्हित सदस्य जिला स्तर पर गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की खोज में गांव के बुजर्गो एवं सामाजिक सरोकार में भागीदारी सुनिश्चित करने वाले व्यक्ति से विस्तृत रूप से जानकारी हासिल कर रहा है।
इसी कड़ी के तहत केंद्रीय सांस्कृतिक विभाग द्वारा चयनित टीम सदस्य शिक्षिका सह कवियत्री निधि चौधरी ने ऐसे ही एक भारत के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की श्रृंखला में मधुसूदन सिंह को खोजा है। फिलहाल मधुसूदन सिंह का परिवार किशनगंज जिले के पोठिया प्रखंड के सारोगाड़ा पंचायत के बेलगछी गांव में रहता है। मधुसूदन सिंह का जन्म 1904 में हुआ था। पूर्णिया जिले के गड़बनैली स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे मधुसूदन सिंह अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक कुण्यानंद झा के सम्पर्क में आ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गये। प्रारम्भ में क्रांतिकारियों के लिए गुप्तचर का कार्य करते थे। अंग्रेजी हुकुमत को ललकारने वाले मधुसूदन सिंह की राष्ट्रभक्ति को याद कर आज भी उनके वंशज गौरवान्वित हो जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेजों ने युद्ध लड़ने के लिए हर घर से एक व्यक्ति और चंदा में धनराशि मांगी थी तो मधुसूदन सिंह ने अपनी टीम के साथ घूम-घूम कर विरोध किया था। न तो अपने घर का सदस्य की बात मानी।
स्वतंत्रता सेनानी मधुसूदन सिंह के बारे बताया जाता है कि मधुसूदन सिंह प्रखंड स्तर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। इसी दरम्यान लाहौर में फिर से गुप्तचर का कार्य करते हुए अंग्रेजों द्वारा तीस हजार रुपये की राशि के साथ पकड़े गए जो कि क्रांतिकारियों के आंदोलन के लिए उनको पहुंचाना था। फिर 17 माह लाहौर जेल की सजा काटने के उपरांत इन्हें गया जेल लाया गया। 1945 को इन्हें रिहा कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने किशनगंज जिले के बेलगाछी गांव में रहने का निर्णय लिया। इनकी देश सेवा की भावना में आजादी के बाद भी कमी नहीं आई और वे देश सेवा की भावना को निरंतर बनाए रखें।