जिले में चिकित्सकों की भारी कमी है। कुल स्वीकृत 133 पद हैं। लेकिन तैनाती महज 69 डॉक्टरों की ही है। मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल की स्थिति और बुरी है। यहां स्वीकृत पद 33 की जगह महज 13 डॉक्टर हैं। इन्हीं 13 चिकित्सकों को तीन शिफ्ट में ड्यूटी करना पड़ता है। सुबह आठ बजे से 12 बजे तक ओपीडी का टाइम है। इस दौरान औसतन 250 मरीज आते हैं।
ओपीडी में भीड़ को देखते हुए डॉक्टर की तैनाती की जाती है। ओपीडी में औसतन दो चिकित्सकों की ड्यूटी होती है। मतलब 240 मिनट में 250 से अधिक मरीज। मरीज के मुंह से मर्ज सुनते ही पर्चा तैयार कर देना डॉक्टर की मजबूरी होती है। उसमें दवा भी वैसी ही जो अस्पताल में उपलब्ध हो। अधिकांश मरीज मौसमी बीमारियों के आते हैं। थोड़ी सी गंभीर बीमारी या मामला गंभीर हो तो मरीज को तत्काल रेफर कर दिया जाता है।
चार विशेषज्ञ चिकित्सक हैं। लेकिन प्रशासनिक दायित्व के कारण इन चिकित्सकों का अधिकांश समय मीटिंग व अन्य सरकारी विभागीय कार्यों में ही बीतता है। विशेषज्ञों में हड्डी रोग विशेषज्ञ व स्त्री एवं महिला रोग विशेषज्ञ शामिल है। अभी जिले में भीषण गर्मी पड़ रही है। अधिकांश लोग बुखार, सर्दी, जुकाम की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। इनमें बच्चों और बुजुर्गों की संख्या भी है।
अन्य पदों पर भी कर्मियों की भारी कमी, जो इस प्रकार है जिले वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए सरकारी अस्पतालों में विभिन्न श्रेणियों के लिए कुल 1414 पद स्वीकृत हैं।इसके विरुद्ध महज 589 पद पर ही सरकारी कर्मी तैनात हैं। स्वीकृत 106 चिकित्सक के विरुद्ध 69 चिकित्सक, स्वीकृत 125 ए ग्रेड नर्स के विरुद्ध 36, स्वीकृत पद 659 एएनएम पद के विरुद्ध 316 एएनएम ही कार्यरत हैं। जिले के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्वच्छता निरीक्षक के स्वीकृत आठ पद के विरुद्ध शून्य, मलेरिया निरीक्षक के स्वीकृत पद तीन के विरुद्ध शून्य, निगरानी निरीक्षक की स्वीकृत पद तीन के विरुद्ध शून्य, एक भी खाद्य निरीक्षक नहीं स्वीकृत फार्मासिस्ट के पद पर भी कई पद रिक्त हैं।
गंभीर रूप से मरीज नहीं आते अस्पताल, जांच सुविधा नहीं मरीजों और उनके परिजनों में यह धारणा बन गई है। मामला थोड़ा भी गंभीर हो या विशेष जांच की जरूरत हो तो मरीज सदर अस्पताल नहीं आना चाहते। संपन्न लोग निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं तो कमजोर वर्ग अन्य नि:शुल्क अस्पताल की ओर। अस्पताल में विभिन्न तरह के जांच की भी सुविधा नहीं रहने के कारण मरीज यहां कम आते हैं।
नई सरकार के बाद रिक्त पदों पर बहाली की आस चिकित्सकों सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के रिक्त पदों को भरे जाने को लेकर अब लोगों की आस नई सरकार से है। पूर्व से ही कई बार सिविल सर्जन सहित वरीय अधिकारियों के द्वारा चिकित्सकों की कमी का मामला पत्र द्वारा व मीटिंग के द्वारा उठाया जाता रहा है। नई सरकार गठन के बाद अब रिक्त पदों पर बहाली की आस जगी है।
विभाग सहित मंत्री को वस्तुस्थिति से कराया गया अवगत, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए प्रयास जारी सिविल सर्जन डॉ. कौशल किशोर ने कहा कि चिकित्सकों की कमी पूरे राज्य में है। हमारे यहां भी स्वीकृत पद से काफी कम चिकित्सक हैं। लेकिन नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने का हरसंभव प्रयास जारी है। चिकित्सकों की बहाली के लिए विभाग को बार बार लिखा जा रहा है। सीमित संसाधनों के बावजूद स्वास्थ्य सेवा में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती जा रही है। मरीज संतुष्ट होकर वापस घर जा रहे हैं।
सारस न्यूज टीम, किशनगंज।
जिले में चिकित्सकों की भारी कमी है। कुल स्वीकृत 133 पद हैं। लेकिन तैनाती महज 69 डॉक्टरों की ही है। मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल की स्थिति और बुरी है। यहां स्वीकृत पद 33 की जगह महज 13 डॉक्टर हैं। इन्हीं 13 चिकित्सकों को तीन शिफ्ट में ड्यूटी करना पड़ता है। सुबह आठ बजे से 12 बजे तक ओपीडी का टाइम है। इस दौरान औसतन 250 मरीज आते हैं।
ओपीडी में भीड़ को देखते हुए डॉक्टर की तैनाती की जाती है। ओपीडी में औसतन दो चिकित्सकों की ड्यूटी होती है। मतलब 240 मिनट में 250 से अधिक मरीज। मरीज के मुंह से मर्ज सुनते ही पर्चा तैयार कर देना डॉक्टर की मजबूरी होती है। उसमें दवा भी वैसी ही जो अस्पताल में उपलब्ध हो। अधिकांश मरीज मौसमी बीमारियों के आते हैं। थोड़ी सी गंभीर बीमारी या मामला गंभीर हो तो मरीज को तत्काल रेफर कर दिया जाता है।
चार विशेषज्ञ चिकित्सक हैं। लेकिन प्रशासनिक दायित्व के कारण इन चिकित्सकों का अधिकांश समय मीटिंग व अन्य सरकारी विभागीय कार्यों में ही बीतता है। विशेषज्ञों में हड्डी रोग विशेषज्ञ व स्त्री एवं महिला रोग विशेषज्ञ शामिल है। अभी जिले में भीषण गर्मी पड़ रही है। अधिकांश लोग बुखार, सर्दी, जुकाम की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। इनमें बच्चों और बुजुर्गों की संख्या भी है।
अन्य पदों पर भी कर्मियों की भारी कमी, जो इस प्रकार है जिले वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए सरकारी अस्पतालों में विभिन्न श्रेणियों के लिए कुल 1414 पद स्वीकृत हैं।इसके विरुद्ध महज 589 पद पर ही सरकारी कर्मी तैनात हैं। स्वीकृत 106 चिकित्सक के विरुद्ध 69 चिकित्सक, स्वीकृत 125 ए ग्रेड नर्स के विरुद्ध 36, स्वीकृत पद 659 एएनएम पद के विरुद्ध 316 एएनएम ही कार्यरत हैं। जिले के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्वच्छता निरीक्षक के स्वीकृत आठ पद के विरुद्ध शून्य, मलेरिया निरीक्षक के स्वीकृत पद तीन के विरुद्ध शून्य, निगरानी निरीक्षक की स्वीकृत पद तीन के विरुद्ध शून्य, एक भी खाद्य निरीक्षक नहीं स्वीकृत फार्मासिस्ट के पद पर भी कई पद रिक्त हैं।
गंभीर रूप से मरीज नहीं आते अस्पताल, जांच सुविधा नहीं मरीजों और उनके परिजनों में यह धारणा बन गई है। मामला थोड़ा भी गंभीर हो या विशेष जांच की जरूरत हो तो मरीज सदर अस्पताल नहीं आना चाहते। संपन्न लोग निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं तो कमजोर वर्ग अन्य नि:शुल्क अस्पताल की ओर। अस्पताल में विभिन्न तरह के जांच की भी सुविधा नहीं रहने के कारण मरीज यहां कम आते हैं।
नई सरकार के बाद रिक्त पदों पर बहाली की आस चिकित्सकों सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के रिक्त पदों को भरे जाने को लेकर अब लोगों की आस नई सरकार से है। पूर्व से ही कई बार सिविल सर्जन सहित वरीय अधिकारियों के द्वारा चिकित्सकों की कमी का मामला पत्र द्वारा व मीटिंग के द्वारा उठाया जाता रहा है। नई सरकार गठन के बाद अब रिक्त पदों पर बहाली की आस जगी है।
विभाग सहित मंत्री को वस्तुस्थिति से कराया गया अवगत, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए प्रयास जारी सिविल सर्जन डॉ. कौशल किशोर ने कहा कि चिकित्सकों की कमी पूरे राज्य में है। हमारे यहां भी स्वीकृत पद से काफी कम चिकित्सक हैं। लेकिन नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने का हरसंभव प्रयास जारी है। चिकित्सकों की बहाली के लिए विभाग को बार बार लिखा जा रहा है। सीमित संसाधनों के बावजूद स्वास्थ्य सेवा में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती जा रही है। मरीज संतुष्ट होकर वापस घर जा रहे हैं।
Leave a Reply