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गलगलिया के 50 से अधिक बच्चे पढ़ाई करने जाते हैं नेपाल, भारतीय छात्रों का नामांकन शुल्क होता है माफ, स्कॉलरशिप की है सुविधा।

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

बेहतर पढ़ाई और कम शुल्क के कारण सीमावर्ती क्षेत्र के गलगलिया व आस-पास से 50 से अधिक बच्चे नेपाल में पढ़ाई करने जाते हैं। इनमें वर्ग 01 से 12 वीं वर्ग तक के बच्चे शामिल हैं। हां वहां हिंदी भाषा की पढ़ाई नहीं होती। ऐसे बच्चे अपने घर में हिंदी सीखते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के अभिभावकों में नेपाल के स्कूलों के प्रति एक अलग क्रेज है। भारतीय क्षेत्र से करीब पांच किलोमीटर दूर नेपाल स्थित सिद्धार्थ शिशु सदन ( भद्रपुर ) की स्कूल बस प्रतिदिन आती है। भारतीय सीमा से सटे गलगलिया और बंगाल के डेंगूजोत इलाके के बच्चे नेपाल जाते हैं। हालांकि भारतीय क्षेत्र में भी सीबीएसई के बेहतर स्कूल हैं, बावजूद नेपाल के स्कूल पसंद आने के कई कारण हैं। अभिभावकों के अनुसार भारतीय छात्रों का नेपाल के स्कूल में नामांकन शुल्क माफ किया जाता है।

भारत के स्कूलों में लगभग दो हजार से ढाई हजार रुपये मासिक शुल्क है, वहीं नेपाल के सिद्धार्थ शिशु सदन स्कूल में यह 1200 रुपये के आसपास है। सूरज साह व अनिल यादव ने बताया कि नेपाल के स्कूल में सीबीएसई बोर्ड की तरह एनएबी ( नेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड ) से पढ़ाई कराई जाती है। पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी रहता है। अभिभावक बताते हैं कि आजकल अंग्रेजी का महत्व अधिक है। नेपाल के स्कूल में कम शुल्क का मुख्य कारण नेपाली मुद्रा की तुलना में रुपये का मजबूत होना भी है। 0.62 रुपये के बराबर 01 रुपया नेपाली होता है।

टॉपर तीन स्टूडेंट्स को मिलती है स्कॉलरशिप की सुविधा।

भद्रपुर के सिद्धार्थ शिशु सदन जैसे भारतीय क्षेत्र के निजी विद्यालयों में नामांकन शुल्क 10 हजार से 20 हजार रुपये तक है। नेपाल के स्कूलों में इसकी जगह नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। कक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने पर छात्रवृत्ति मिलती है। एक परिवार के दो बच्चों के नामांकन के बाद तीसरे बच्चे से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। क्लास में टॉपर तीन स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप भी दिया जाता है। पहला टॉपर का एक साल का सारा फीस माफ हो जाता है। दूसरा टॉपर का 50% माफ हो जाता है तथा तीसरा टॉपर 30% फीस माफ होता है। स्कूल में पूर्ण रूप से इंग्लिश में बोलचाल की जाती है। वहीं नेपाल बोर्ड से पढ़े ऐसे छात्रों के बिहार और सीबीएसई बोर्ड में नामांकन में काफी परेशानी होती है। नेपाल बोर्ड से प्रमाण पत्र लेने वाले छात्रों को बिहार बोर्ड व सीबीएसई बोर्ड के राज्य मुख्यालय से अनुमति लेनी होती है, एमएम तभी उनका नामांकन हो पाता है ।

भारतीय क्षेत्र से 50 से अधिक बच्चे प्रतिदिन पढ़ाई करने आते हैं । उन बच्चों के लिए नामांकन एवं मासिक शुल्क के साथ अन्य विशेष सुविधाएं भी दी जाती हैं । हिंदी की पढ़ाई भी ऐच्छिक विषय के रूप में जल्द शुरू की जाएगी।

श्याम देवन, प्रिंसिपल, सिद्धार्थ शिशु निकेतन (भद्रपुर)

बिहार में नेपाल बोर्ड के प्रमाण पत्र पर नामांकन का प्रविधान नहीं है। विभाग से निर्देश प्राप्त कर ही इसमें कोई पहल की जा सकती है।

सुभाष कुमार गुप्ता, जिला शिक्षा पदाधिकारी, किशनगंज।

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