विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
गलगलिया थाना क्षेत्र स्थित आदिवासी गाँव चुरली के जन्मवीर, बाघा टोला, बेसरबाटी, ईडल घटटु, बिरानगछ, माली टोला सहित अन्य गांवों में आदिवासियों द्वारा परंपरागत तरीके से 06 दिवसीय सोहराय पर्व का समापन नृत्य गीत व संगीत के साथ पारंपरिक हथियार तीर-धनुष से निशाना साधकर उत्सवी माहौल में किया गया।
मांझी परगना संथाल समाज के अध्यक्ष सुबोध टुडू, सचिव मुकेश हेम्ब्रम, ग्रामीण लखीराम मुर्मू, रमेश सोरेन, चतुर हासदा, महावीर मुर्मू, रविलाल मरांडी आदि ने बताया कि संथाल परगना में पूस माह के नौ से चौदह जनवरी तक गांवों से निकलने वाली मांदर, टमाक, झांझर व बांसुरी की तरंग लोगों को न सिर्फ अपनी ओर खींच लेती है वरन सोहराय का उत्साह चरम सीमा पर होता है। पर्व की पारंपरिक महत्ता इस रूप में ज्यादा है कि यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। संथाल संस्कृति में रची-बसी इस पर्व को वंदना भी कहा जाता है। मानव जीवन व प्रकृति के बीच अन्योन्याश्रय संबंध को परिलक्षित करने वाला सोहराय गोड टांडी से शुरू होकर बेझा टांडी में समाप्त होता है। छह दिवसीय इस पर्व में प्रत्येक दिन लोग अलग-अलग तरह से पूजा-अर्चना कर सोहराय की महत्ता को सिद्ध करते हैं।
छह दिनों तक चलने वाले इस पर्व में समुदाय के सभी बच्चे, बुढे, महिलाएं और पुरूष अपने समाज के बीच के मतभेदों को भूलाकर नृत्य-संगीत कार्यक्रमों मे लीन रहते हैं। इस त्योहार में समुदाय के लोग नृत्य संगीत के साथ परंपरागत रूप से अपने आराध्य देव को बलि प्रदान करते हैं।
पारंपरिक हथियारों के साथ शिकार कर होता है पर्व का समापन
छठे दिन को बेझा-हिलाक अर्थात शिकार का दिन कहते हैं। इस दिन पारंपरिक हथियारों के साथ शिकार कर लाए गये जीवों के मांस का बांटकर पूजा-अर्चना करते हैं और खा-पीकर नाचते गाते हैं। इसके उपरांत बेझा टांडी जाकर केला में रोटी बांधकर लटका दिया जाता है। नवयुवक इस थम्ब पर निशाना साधते हैं। अच्छे निशानेबाज को सम्मानित करने की परंपरा है। वहीं सामूहिक नृत्य के साथ छह दिनों तक चलने वाला सोहराय समाप्त हो जाता है।
सुख समृद्धि और स्वस्थ्य रहने की कामना
संताली भाषा में इस पर्व के प्रथम दिन को उम दूसरे दिन को बोगा तीसरे दिन को खुंटौव चौथे दिन को जाले और होकोकाटग और पांचवे दिन को सकरात कहा जाता है। पर्व को संपन्न कराने में ग्राम प्रधान पुराणिक नायकी कुड़म, नायकी गोडि़त अहम भूमिका निभाते हैं। पर्व की शुरूआत मोड़ टांगी से किया जाता है। इसके बाद प्रत्यके गांव के लोग देव स्थल मांझी थान में पूजा अर्चना कर गांव समाज के साथ पशु पक्षियों के सुख समृद्धि और स्वस्थ्य रहने की कामना करते हैं।