सारस न्यूज, गलगलिया।
दीपावली की आहट मिलते ही सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया में जुआरियों ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। पैसे बनाने की होड़ में जुआ खेलने व खिलाने का धंधा कुछ दिन से जोर पकड़ लिया है। दशहरा के सप्तमी पूजा से ही जुआ खेलने के लिए गुप्त स्थानों की तलाश होने लगती है। हालांकि खेल कहां होगा यह लक्ष्मी पूजा के बाद ही तय हो जाता है। लेकिन ट्रायल के तौर पर यह खेल दशहरा समाप्त होते ही शुरू हो जाती है। इस खेल में किसके भाग्य का उदय होता है और कौन अपनी पूंजी को भी डूबा बैठते हैं ये तो खेलने वाला ही जानें, लेकिन जानकार सूत्रों के मुताबिक गलगलिया में दीपावली के मौके पर जुआ के खेल में लाख से अधिक की राशि दांव पर लगती है।
सीमावर्ती क्षेत्र में यह प्रसिद्ध है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी माता की असीम कृपा होती है। इस दिन कोई भी रोजगार करने से दिन दूनी रात चौगुनी धन की वृद्धि होती है। बस इसी ख्वाब में दीपावली की रात जुआ का खेल यहां बड़े पैमाने पर होता है। सट्टा व जुआ के गंदे खेल में बच्चे भी अछूते नहीं है। छोटे उम्र के बच्चे भी जुए व सट्टे के कारोबार में शामिल हैं। जिससे उनका भविष्य बर्बाद हो रहा है। ज्ञात हो कि दीपावली के पूर्व जुआ को बढ़ावा देने वाले लोगों के चेहरे की रौनक बढ़ गयी है। कई स्थानों पर तो रसूखदारों के द्वारा उनके घरों पर भी कमीशन लेकर जुआ खिलवाया जाता है। यह खेल केवल गलगलिया बाजार क्षेत्र में ही नही बल्कि आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यापक पैमाने पर होती है। इस खेल में स्थानीय लोगों की भागीदारी को देखते हुए जिम्मेदार भी मौन रहती है।वहीं जिन लोगों द्वारा जुआ का आयोजन किया जाता है वह अच्छी प्रवृति के नही होते हैं। ऐसे में स्थानीय लोग विरोध करने के बजाय चुप रहते हैं। लोगों का कहना है कि जुआरी समाज के लोकलाज को त्याग कुप्रथा को बढ़ावा देते हैं। खेल की शुरूआत रात के आठ बजे से शुरू होती है जो सुबह तक चलती है। बताया जा रहा है कि दीपावली और छठ तक इस खेल को जारी रखने के लिए जुआरियों के ठेकेदार लगातार प्रयत्नशील हैं। जबकि सुनसान गलियों एवं नुक्कड़ों पर जुआरियों का मजमा दशहरा के पहली पूजा से ही शुरू हो गया है।