सारस न्यूज टीम, गलगलिया।
भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया सहित अन्य आसपास के इलाकों में शारदीय नवरात्र के मद्देनजर आदिवासी पुरुषों द्वारा किए जाने वाले दसाई नृत्य शुरू हो चुका है। दुर्गापूजा के अवसर पर आदिवासी समाज के युवा धोती पहनकर और माथे पर मौर पंख बांध हाथ में भुवांग, ढोलक, घंटी आदि लेकर गलगलिया बाजार और ग्रामीण क्षेत्र के पूजा पंडालों में दसाई नृत्य करते देखे गए। लेकिन समय के साथ इस आधुनिक युग मे उनमें भी इस नृत्य को लेकर उत्साह कम हो चुका है। अब धीरे-धीरे समाज से यह नृत्य प्राय विलुप्त हो गया है।
हालांकि आज भी समाज की संस्कृति से जुड़ी दसाई नृत्य यहां देखने को मिल रहा है। दसाई नृत्य की कला उनकी समृद्ध संस्कृति का हिस्सा रहा है। दसाई नृत्य में भाग लेने वाले पुरुष पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर नृत्य करते हैं। महिला रूप में ही वे नृत्य करते हुए घर घर जाते हैं। इस नृत्य में ढोलक, थाली, घंटी आदि का इस्तेमाल किया जाता है। ढोलक, थाली, घंटी, भुआंग आदि जब एक साथ स्वर में बजते हैं तो इसकी आवाज और दिलकश हो उठती है। साथ ही माथे पर मोर का पंख सजा कर झूमते आदिवासी नृत्य को आकर्षक प्रदान करते हैं। गलगलिया से सटे नया हाट निवासी शिक्षक सुजीत मुर्मू बताते हैं कि इस कला का जन्म कैसे हुआ आज के युवाओं को इसकी जानकारी नहीं है।
दरअसल इसका जन्म क्रांतिकारियों को ढूंढने के लिए हुआ था। जब बाहरी आक्रमणकारियों ने आदिवासी समुदाय के क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया। सभी आदिवासी पुरुषों को इलाके से खदेड़ दिया। उसी दौरान क्रांतिकारियों को खोजने के लिए आदिवासी पुरुष महिला रूप धारण कर नृत्य करते हुए अलग-अलग टोलियों में निकलते थे। इस नृत्य में शामिल पुरुष साड़ी पहनकर माथे पर मोर का पंख लगाकर खुद को औरत की तरह सजाते हैं।
दसाई नृत्य हाय रे हाय से शुरू होता है, जो दुख का प्रतीक है। यानी क्रांतिकारियों को बंदी बनाने का दुख इसमें झलकता है। आगे चलकर गाने में देहेल देहेल शब्द का प्रयोग किया जाता है। जो विजय का प्रतीक है। अर्थात बाहरी आक्रमणकारियों पर विजय प्राप्त करने का संकल्प इसमें दिखता है। दसाई नृत्य में मां दुर्गा का जिक्र भी आता है। आदिवासियों के कैलेंडर के मुताबिक दसाई एक महीने का नाम भी है। इसी महीने में इस नृत्य का आयोजन विजयादशमी से ठीक पहले पांच दिनों के लिए किया जाता है। गाने में सर्वप्रथम देवी दुर्गा की आराधना की जाती है।
दसाई नृत्य को लेकर आदिवासी लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। लोग कई दिन पहले से ही इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। उन्होंने बताया कि हालांकि पहले की तरह अब नई पीढ़ी के लोगो मे इस नृत्य को लेकर अब उत्साह नहीं है। लेकिन इस वर्ष भी सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया एवं आसपास के क्षेत्रों में दसाई नृत्य की धूम मची हुई है।